भारत मौसम विभाग (IMD) ने गुरुवार को केरल और पूर्वोत्तर भारत में मॉनसून की एंट्री की पुष्टि कर दी है.  IMD के मुताबिक, पूर्वानुमान से दो दिन पहले ही केरल में मॉनसून की एंट्री हो गई है. और जून से सितंबर तक सामान्य से अधिक बारिश होने की उम्मीद है. पिछले सात साल में यह पहली बार है जब मॉनसून पूर्वानुमान से पहले ही एंट्री कर गई है.


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आखिरी बार 30 मई 2017 को मॉनसून पूर्वानुमान से पहले दस्तक दी थी. हालांकि, केरल और पूर्वोत्तर भारत में पिछले कुछ दिनों से प्री-मॉनसून बारिश हो रही है. लेकिन मौसम विभाग ने सभी शुरुआती मापदंडों को पूरा करने के बाद ही मॉनसून की एंट्री की घोषणा की है. इस तरह से इस साल मॉनसून पूर्वानुमान 1 जून की तुलना में दो दिन पहले ही दस्तक दे दी.


आइए समझते हैं कि मॉनसून क्या है और पूर्वानुमान से पहले इसकी एंट्री देश के लिए कैसे गुड न्यूज है. इसके अलावा एक नजर हम इस पर भी डालेंगे कि मॉनसून यह कहां से आता है और कहां जाता है. 


समय से पहले मॉनसून का आना कैसे 'गुड न्यूज'?


भारत एक कृषि प्रधान देश है और देश की कृषि में इस मॉनसून की भूमिका काफी अहम है. क्योंकि अधिकांश खरीफ फसल की बुआई जून और जुलाई के महीने में होती है. भारत में होने वाली कुल वर्षा का लगभग 70 प्रतिशत दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में होती है. भारत की लगभग आधी कृषि भूमि वार्षिक जून-सितंबर की बारिश पर निर्भर है. कृषि क्षेत्र भारत की जीडीपी में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है. इसके अलावा पीने के पानी और औद्योगिक उपयोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए जलाशयों को भरने में भी दक्षिण-पश्चिम मॉनसून का अहम योगदान होता है. 



दिल्ली-मुंबई में कब आएगा मॉनसून? 


माना जा रहा है कि जून के अंत तक मॉनसून दिल्ली पहुंच जाएगा. दिल्ली-NCR समेत पूरा उत्तर भारत भीषण गर्मी की चपेट में है. ऐसे में भारत में मॉनसून की एंट्री से राहत की उम्मीद जगी है. मौसम पूर्वानुमान संबंधी वेबसाइट स्काईमेट के महेश पलावत का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी में 27 जून तक मॉनसून आने की संभावना है. हालांकि, आईएमडी ने 31 मई से 2 जून तक दिल्ली में 25-35 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं के साथ हल्की बारिश की भविष्यवाणी की है. वहीं, आईएमडी मुंबई के निदेशक का कहना है कि केरल पहुंचने के बाद मॉनसून को महाराष्ट्र खासकर मुंबई को कवर करने में 8-10 दिन लगेंगे. 


मॉनसून क्या है?


नेशनल ज्योग्राफिक मैगजीन के अनुसार, मॉनसून किसी क्षेत्र की प्रचलित या सबसे तेज हवाओं की दिशा में होने वाला एक मौसमी परवर्तन है. यह हमेशा ठंडे से गर्म क्षेत्रों की ओर बहता है. भारत में जून से सितंबर तक का मॉनूसन तब आता है जब दक्षिण-पश्चिम हिंद महासगर से गर्म और नम हवा भारतीय उपमहाद्वीप की ओर बढ़ती है.


मॉनसून के आगमन में भूमि और पानी के अलग-अलग तापमान मददगार साबित होते हैं. गर्मी के महीनों में जैसे ही भारतीय भूभाग गर्म होता है. गर्म हवा ऊपर उठती है. इससे कम दबाव का क्षेत्र बनता है जबकि हिंद महासागर में इसकी तुलना में ज्यादा तापमान होता है. चूंकि, प्रकृति (नेचर) निर्वात को पसंद नहीं करती है. ऐसे में यह समुद्र से जमीन की ओर हवाओं को धकेलना शुरू करती है. जिससे मॉनसून के आगमन की प्रक्रिया शुरू होती है.


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मॉनसून कहां से आता है और कहां जाता है?


भारतीय मॉनसून के दो भाग हैं. पहला तब होता है जब बारिश के बादल प्रायद्वीपीय भारत से उत्तरी मैदानी इलाकों की ओर बढ़ते हैं जिससे भारत के अधिकांश भूभाग में बारिश होती है. दूसरा तब होता है जब ये बारिश वाले बादल मॉनसून के अंत में भारत के उत्तर में स्थित हिमालय से टकराते हैं और हिंद महासागर की ओर लौटते हैं. इसे पूर्वोत्तर मॉनसून कहते हैं. इस मॉनसून में अक्तूबर से दिसंबर के बीच तमिलनाडु समेत कुछ हिस्सों में बारिश होती है.


मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट के मुताबिक, मॉनसून की उत्तरी सीमा या NLM भारत की सबसे उत्तरी सीमा है. जहां तक किसी भी मॉनसून में बारिश होती है. यह भारत के भूभाग पर आगे बढ़ रहे मॉनसूनी बादलों की गतिविधि पर नजर रखने का एक तरीका है. भारत मौसम विज्ञान का कहना है कि मॉनसून दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता है और 15 जुलाई के आसपास तक पूरे देश को कवर कर लेता है.


केरल से ही क्यों होती है भारत में मॉनसून की एंट्री? 


भारत में मॉनसून की एंट्री केरल के रास्ते होती है. क्योंकि दक्षिण पश्चिम मॉनसून अरब सागर से आती है और भारत के किसी भी अन्य हिस्से से पहले केरल के पश्चिमी घाट से टकराती है. भारत मौसम विज्ञान देश में मॉनसून की शुरुआत की घोषणा तब करता है जब केरल में मौजूद वेदर स्टेशनों में से लगभग 60 प्रतिशत में लगातार दो दिनों तक 2.5 मिमी या उससे अधिक बारिश दर्ज की जाती है.