सुप्रीम कोर्ट में एक दंपति ने अपने 30 साल के जवान बेटे को इच्छामृत्यु देने की गुहार लगाई है. वह सिर में चोट लगने के बाद 2013 से अस्पताल में अचेत अवस्था (वेजिटेटिव स्टेट) में है. इच्छामृत्यु का मतलब होता है कि शख्स को जीवन रक्षक प्रणाली से हटा लिया जाएगा या उसका इलाज नहीं होता है और मरीज को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. हालांकि इस केस में मरीज हरीश राणा वेंटिलेटर पर नहीं हैं. उनके इलाज में बुजुर्ग मां-बाप को मकान भी बेचना पड़ा है. जरा सोचिए उस मां-बाप का दर्द कितना बड़ा होगा कि उन्हें अपने बेटे के लिए मौत मांगनी पड़ रही है. 


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ट्यूब के जरिए नाक के रास्ते पेट तक खाना और दवा पहुंचाई जा रही है. इच्छामृत्यु का मतलब होगा कि उस ट्यूब को हटा लिया जाए. यह तब है जब अपने माता-पिता की हरीश इकलौती संतान हैं. 


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा


सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेंसिया) की अनुमति देने के बजाय वह मरीज को उपचार और देखभाल के लिए सरकारी अस्पताल या इसी तरह के स्थान पर शिफ्ट करने की संभावना तलाशेगी. शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के निष्कर्षों से सहमति जताई, जिसने माता-पिता की इस याचिका पर विचार करने के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने से इनकार कर दिया था कि उनके बेटे को निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी जाए. 


निष्क्रिय इच्छामृत्यु के तहत जीवन रक्षक प्रणाली हटाकर या उपचार बंद कर किसी मरीज को मरने दिया जाता है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि मरीज हरीश राणा को जीवन बचाने के लिए वेंटिलेटर पर नहीं रखा गया या अन्य यांत्रिक सहायता नहीं दी जा रही है, बल्कि उसे भोजन नली के जरिए खाना दिया जा रहा, इसलिए उसे उसकी हालत पर छोड़ देना ठीक नहीं होगा. 


मां-बाप ने मकान भी बेचा


अदालत ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि एक इमारत की चौथी मंजिल से गिरने के बाद से मरीज 11 साल से अचेतावस्था में है और उसके बुजुर्ग माता-पिता को उपचार के माध्यम से जीवन निर्वाह करना कठिन हो रहा है क्योंकि उन्होंने अपना मकान भी बेच दिया है. 


पीठ ने कहा कि राणा को निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देने के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने की माता-पिता की याचिका को उच्च न्यायालय ने सही रूप से खारिज किया क्योंकि कोई भी चिकित्सा पेशेवर किसी ऐसे मरीज को कोई पदार्थ देकर मौत का कारण नहीं बनेगा, जो बिना किसी यांत्रिक या वेंटिलेटर सहायता के जीवित है. 


कोर्ट बोला, यह कठिन मामला


पीठ ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि मरीज के माता-पिता अब वृद्ध हो चुके हैं और इतने साल से बिस्तर पर पड़े अपने बेटे की देखभाल नहीं कर सकते और क्या उसे अपनी हालत छोड़ देने के अलावा कोई मानवीय समाधान मिल सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इसलिए, हम केंद्र को नोटिस जारी करते हैं और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी से हमारी सहायता करने का आग्रह करते हैं. हम देखेंगे कि क्या उसे कहीं और रखा जा सकता है. यह बहुत जटिल मामला है.’ 


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बाद में, पीठ ने एक अन्य मामले में अदालत में उपस्थित भाटी से पूछा कि क्या राणा को किसी अस्पताल में भर्ती कराने की कोई संभावना है, जहां उसकी देखभाल की जा सके. विधि अधिकारी ने कहा, ‘मैं इस पर गौर करूंगी. मैं इस बारे में पता करूंगी और अदालत की सहायता करूंगी.’


जुलाई में उच्च न्यायालय ने राणा के मामले को मेडिकल बोर्ड को भेजने से इनकार कर दिया था. याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता (करीब 30 साल का) पंजाब विश्वविद्यालय का छात्र था और 2013 में अपने पेइंग गेस्ट आवास की चौथी मंजिल से गिरने के कारण उसके सिर में चोटें आई थीं. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के परिवार ने उसका इलाज करने की पूरी कोशिश की है, लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. (भाषा, फोटो- lexica AI)


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