मुगल साम्राज्य को स्थापित करने वाले बाबर का भी खराब समय आएगा, ऐसा उसने कभी सोचा नहीं था. ये वो समय था जब बाबर एक युद्ध हार चुका था और उसे उसकी सेना के साथ कैद कर लिया गया था. उसकी सेना में शामिल लोगों के लिए खाने के लाले पड़ गए थे. इस स्थिति में उसकी बहन उसके लिए इश्वर बनकर आई और उसे बचाया. ये कहानी बेहद दिलचस्प है.


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शायबानी खान का नाम 15वीं शताब्दी के सबसे क्रूर शासकों में की जाती थी. उसकी सेना बिजली की तरह दुश्मन पर हमला करती थी और सेकेंडों में विरोधी सेना का खत्मा कर देती थी. शायबानी और बाबर के बीच युद्ध हुआ, इस युद्ध में बाबर ही हार हुई. शायबानी ने बाबर को 6 महीने तक कैद करके रखा. समरकंद में कैद उसके लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी मुश्किल हो गया.


बहन के लिए शायबानी ने दिखाई बाबार पर दया


इस बीच शायबानी बाबर पर दया दिखाने के लिए तैयार हो गया लेकिन उसने बाबर के सामने शर्त रखी कि अगर वो अपनी बहन खानजादा बेगम की शादी उसके साथ करवा दे तो वो बाबर को छोड़ देगा. इस बात पर बाबर की बहन खानजादा ने खुद को शायबानी के हवाले कर दिया. उसने शायबानी से शादी कर ली.


शायबानी और खानजादा ने खुर्रम नाम के बच्चे को जन्म दिया, लेकिन बच्चे की मौत की वजह से दोनों के रिश्ते खराब हो गए. दोनों अलग हो गए. इसके बाद खानजादा की शादी फौजी सैयद से हो गई, लेकिन शाह इस्माइल के साथ हुई जंग में फैजी की मौत हो गई और उसकी पत्नी खानजादा को शाह इस्माइल ने कैद कर लिया. हालांकि, जैसे ही उसे पता चला कि ये बाबर की बहन है तो उसने खानजादा को कैद से रिहा कर दिया और बाबर के साथ दोस्ती कर मध्य एशिया के इलाकों पर कब्जा करने में मदद की. 1513 में शाह इस्माइल की मदद से बाबर ने समरकंद पर तीसरी कोशिश में कब्जा कर लिया.


हालांकि, शाह इस्माइल की महज 36 साल की उम्र में मौत हो गई. दरअसल, वो उस्मानी साम्राज्य के साथ हुई चल्दिराणि के युद्ध के बाद से अवसाद से भर गया था और उदास रहने लगा था. वो नशा करने लगा था. इस वजह से उसने लड़ना भी बंद कर दिया था. उसने 1501 में ईरान में सफविद साम्राज्य की स्थापना की जिसने 200 वर्षों तक राज किया.


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