Mughal emperor Shahjahan:  युद्ध के मैदान और हरम से मुगल बादशाहों का खास नाता रहा है. इसके साथ ही खानपान के क्षेत्र में भी अलग तरह के प्रयोग किये. बाबर के पास समय की कमी थी लिहाजा वो खास प्रयोग नहीं कर पाया. हुमायूं अपने पूरे शासनकाल में लड़खड़ाता रहा. अकबर को पर्याप्त समय मिला और उसने कई प्रयोग किए. अकबर के बाद जहांगीर के समय में नूरजहां ने अलग अलग तरह के शराब को खास अंदाज में पेश करने की कला पर काम किया. इन सबके बीच हम बात मुगल बादशाह शाहजहां की करेंगे. अपने पूर्वजों की तरफ शाहजहां का हरम से नाता रहा. हालांकि जहांगीर और अकबर की तुलना में वो अपनी बेगम के लिए वफादार रहा. इन सबके बीच उसके खाने पीने के टेस्ट के बारे में बात करेंगे.


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खाने में मसाले का इस्तेमाल
मुगल बादशाह शाहजहां का मसालों के प्रति आकर्षण क्यों बढ़ा उसके पीछे की कहानी दिलचस्प है. दरअसल शाहजहां के शासनकाल में दिल्ली में संक्रामक फ्लू फैला और उसके बाद खानपान में बड़ा बदलाव नजर आया. फ्लू का असर कम से कम हो इसलिए शाही खानसामा और शाही हकीम ने मिलकर खाने में नया प्रयोग किया, स्ट्यू में मसाले का अत्यधिक प्रयोग किया ताकि शरीर गर्म रह सके और रोगों के खिलाफ लड़ने में मदद मिल सके. शाही हकीम ने सुझाव दिया था कि अग फ्लू जैसी स्थिति से लड़ना है तो उसके लिए मसालों का इस्तेमाल सही तरह से होना चाहिए. शाही हकीम की सलाह के बाद शाहजहां अधिक मसालों पर निर्भर हो गया जो आगे चलकर उसकी सेहत के लिए सही नहीं रहा.


यमुना का पीता था पानी


अगर शाहजहां की बात करें तो वो हमेशा यमुना नदी का पानी पिया करता था. यही नहीं उसे आम बेहद पसंद थे. इसके लिए खास बागों से ताजी सब्जियां, नीबू, अनार, प्लम्स और तरबूज मंगाए जाते थे. यही नहीं उसने अपने खानसामों को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि ज्यादा से ज्यादा धनिया, जीरा और हल्दी का इस्तेमाल किया जाए. इसके पीछे की वजह से बारे में इतिहासकार स्वास्थ्य बताते हैं. इसके साथ ही उसे निहारी का भी जनक माना जाता है. शाहजहां का मानना था कि हिंदुस्तान की आबोहवा में अगर मसाले का उपयोग नहीं किया गया तो स्वास्थ्य सही नहीं रहेगा.