भारत में जब जब अयोध्या, मथुरा और काशी की बात होती है तब एक नारा जरूर याद आता है कि अयोध्या तो बस झांकी है, काशी–मथुरा अभी बाकी है. जहां एक ओर अयोध्या में कोर्ट के आदेश के बाद रामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है तो दूसरी ओर काशी और मथुरा का तो मामला अभी न्यायालय में लंबित है और हिंदू पक्ष वर्षों से इन दोनों जगहों पर फिर से भव्य मंदिर निर्माण की मांग कर रहा है, जिसे सैकड़ों वर्ष पहले इस्लामिक आक्रांताओं ने नष्ट करके मस्जिद का निर्माण करवा दिया था.


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लेकिन इस सबके बीच हो सकता है कि आपके मन में भी एक सवाल होगा कि जब इस्लामिक अक्रांता हिंदू मंदिरों का विध्वंस करते थे तो उसमे स्थापित मूर्तियों का क्या करते थे. यह बात हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बीते दिनों आगरा की जिला अदालत में याचिका दायर करके दवा किया गया कि मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के विध्वंस करके के बाद क्रूर बादशाह औरंगजेब ने उस मंदिर में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों को आगरा की बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों में दफन करवा दिया था और ऐसे में हिंदू पक्ष को ये मूर्तियां वापस दी जाएं. 


आगरा की तरह ही पिछले साल दिसंबर में मथुरा की जिला अदालत में भी इसी तरह के दावे के साथ याचिका दायर की गई थी और मस्जिद की सीढ़ियों में दफन मूर्तियों को वापस करने की मांग की गई थी और ये दोनों मामले अभी मथुरा और आगरा की अदालतों में लंबित हैं.


जी मीडिया के पास फारसी में लिखे क्रूर बादशाह औरंगजेब के मथुरा के कृष्ण मंदिर को तोड़ने के फरमान की Exclusive Copy है, जिसे उसके दरबारी इतिहासकार साकी मुस्ताद खान ने 1658 से 1707 तक औरंगजेब के फरमानों को इकट्ठा करके Masir i Alamgiri नाम की किताब में Compile करके रखा था. 


फरमान में क्या लिखा है?


किताब के पेज नंबर 60 पर लिखा है कि रमजान के पाक महीने में 27 जनवरी 1670 को पैगम्बर के मजहब को पुनर्जीवित करने वाले "बादशाह" के आदेश पर मथुरा स्थित मंदिर जिसे केशव देव मंदिर भी कहा जाता है उसका विध्वंस कर दिया गया और जहां मंदिर बना था उस स्थान पर भव्य मस्जिद का निर्माण भी बेहद कम समय में कर दिया गया साथ ही मथुरा के उस मंदिर में मौजूद सभी छोटी बड़ी मूर्तियों और आभूषणों को आगरा लाकर बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों पर दफन कर दिया गया ताकि इन्हे लगातार (पैरों से) दबाया जा सके.


अब सवाल यह उठता है कि आगरा की बेगम साहिब मस्जिद कौन सी है क्योंकि आज आगरा में इस नाम की कोई मस्जिद नहीं है लेकिन हिंदू पक्ष आगरा की जामा मस्जिद को ही बेगम साहिब मस्जिद बता रहा है, जहां भगवान श्रीकृष्ण के मूर्ति विग्रह दफन हैं. ऐसे में हिंदू पक्ष के दावे की हमने और ऐतिहासिक पड़ताल की और गहन पड़ताल करने के बाद हमें एक किताब मिली Travels in the Mogul Empire 1656-1668 जिसे फ्रांसीसी डॉक्टर Francois Bernier ने शाहजहां के शासनकाल में लिखा था.
 
इस किताब के पेज 11 पर Francois Bernier ने बताया है कि शाहजहां की बड़ी बेटी को बेगम साहिब कहा जाता है. जब इतिहास के पन्ने टटोले तो शाहजहां की बड़ी बेटी का नाम जहानारा था और ऐसे में जहानारा को ही बेगम साहिब की उपाधि हासिल थी और साथ ही जामा मस्जिद आगरा में रखे शिलालेख के मुताबिक जहानारा बेगम ने ही वर्ष 1644 में आगरा में जामा मस्जिद का निर्माण करवाया था.


औरंगजेब के दरबारी इतिहासकारों की तरह ही अंग्रेज अधिकारियों ने भी अपनी किताबों में इस घटना के बारे में लिखा है. अंग्रेज अधिकारी, ARCHEOLOGIST और मथुरा के कलेक्टर रहे FS GROWSE की 1874 ने Mathura A District Memoir (मथुरा अ डाइट्रिक्ट मेमोइर) नाम की एक किताब लिखी थी, जिसके पेज नंबर 67 पर औरंगजेब के कुर्कृत्यों का वर्णन करते हुए बताया गया है कि औरंगजेब का मन मथुरा के मंदिर का विध्वंस करके भी नहीं भरा था ऐसे में उसने मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर में मौजूद मूर्तियों को आगरा में स्थित कुदसिया बेगम की मस्जिद की सीढ़ियों पर लाकर दफन करवा दिए..ताकि लोग इस पर पैर रख कर चलें.  ऐसे में समकालीन ऐतिहासिक Sources ना सिर्फ हिंदू पक्ष के दावों पर मुहर लगा रहे हैं बल्कि उन्हें सटीक भी करार दे रहे हैं.


मथुरा श्रीकृष्ण जन्मस्थान की लड़ाई अब आगरा आ पहुंची है और विवाद का केंद्र है ये लाल पत्थर से बनी आगरा की बाजार के बीचों बीच बनी यह विशाल मस्जिद नाम है शाही जामा मस्जिद. क्योंकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पूरी की पूरी मस्जिद का निर्माण ही हिंदू मंदिरों के अवशेषों से हुआ है और इस बात का जिक्र इतिहासकार सीताराम गोयल ने अपनी किताब Hindu Temples What Happened to them में किया था.


हिंदू पक्ष की माने तो रोज नंद गोपाल की मूर्तियों को इस पर चढ़ने वाले कुचल रहे हैं. क्योंकि विवाद शाही जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर है और ऐसे में ये रही दक्षिणी द्वार की सीढ़ियां जो इस विशाल दरवाजे के आम दिनों में बंद रहने की वजह से चढ़ने उतरने के उपयोग में नहीं आती हैं लेकिन बगल में स्थित दुकानों का सामान इन पर पड़ा रहता है.


भगवान श्रीकृष्ण की आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों में दफन मूर्तियों को आजाद करने के लिए याचिका दायर करने वाले पक्षकारों को तो ये तो नहीं पता कि आखिर मूर्तियां किस ओर की सीढ़ी में दफन हैं लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य दिखाते हुए याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह ये आवाहन जरूर कर रहे हैं कि अगर जरूरत पड़ी तो दफन मूर्तियों को निकालने का खर्चा भी हिंदू पक्ष वहन कर लेगा. 


औरंगजेब के शासन काल से 400 वर्ष पहले इस्लामिक आक्रांता इल्तुतमिश ने भी कुछ ऐसा ही किया था. जब वर्ष 1234 में उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का विध्वंस करके इल्तुतमिश महाकाल मंदिर में स्थापित एक शिवलिंग और तांबे की मूर्ति को दिल्ली ले आया था और फिर इल्तुतमिश ने इन मूर्तियों को कुतुब परिसर में स्थित कुवतउल इस्लाम मस्जिद की सीढ़ियों के भीतर चुनवा दिया था ताकि मस्जिद में आने–जाने वाले लोग इस पर लात मार कर अपमान करें. इस घटना का जिक्र इल्तुतमिश के दरबारी इतिहासकार मिन्हाज ई सिराज ने अपनी किताब तबकात ए नसीरी में किया है.