काठमांडू: नेपाल (Nepal) कालापानी (Kalapani) पर अपने कब्जे को पक्का करने के लिए अपने नए दोस्त चीन (China) की तर्ज पर काम करने की तैयारी में है. खुफिया सूत्रों के मुताबिक नेपाल अपने नए नक्शे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने के लिए कई तरह की रणनीतियों पर काम कर रहा है. इसमें नेपाल विभिन्न देशों में मौजूद अपने दूतावासों के जरिए बड़ा अभियान चलाने की योजना बना रहा है.


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नेपाल सरकार कालापानी के बारे में एक किताब जारी करने वाली है. इसमें कालापानी में नेपाल के दावे को पुख्ता करने के लिए कई तरह के सबूत पेश किए गए हैं. इसमें नेपाल ने अपने दावे को ऐतिहासिक सबूतों के साथ पेश किया है. इस किताब को सभी नेपाली दूतावासों को भेजा जाएगा और उनके जरिए इस किताब को पूरी दुनिया के कूटनीतिज्ञों में प्रचारित किया जाएगा.


नेपाल को उम्मीद है कि इससे दुनिया में उसके दावों के समर्थन में जनमत जुटाने में मदद मिलेगी. इस किताब को संयुक्त राष्ट्रसंघ में भी भेजा जाएगा. इसके साथ ही नेपाल गूगल के अधिकारियों से भी संपर्क करने की तैयारी में है ताकि कालापानी को गूगल मैप में नेपाल का ही हिस्सा दिखाए जाने पर उसे राजी किया जा सके.


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आपको बता दें कि नेपाल ने मई में अपना नया नक्शा जारी किया था जिसमें कालापानी, लिंपियाधूरा और लिपुलेख पास को नेपाल का हिस्सा बताया था. जबकि इन तीनों जगहों को भारत अपना हिस्सा बताता रहा है इसीलिए भारत ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई थी. लेकिन 18 जून को नेपाली संसद की स्वीकृति के बाद ये नक्शा नेपाल के संविधान का हिस्सा बन गया.


भारत और नेपाल के बीच में 1880 किमी की सीमा है जिसके 98 प्रतिशत हिस्से पर कोई विवाद नहीं है. इन तीन विवादित हिस्सों में कुल 370 वर्ग किमी का इलाका है जिस पर 1816 में ब्रिटिश शासन और नेपाल के बीच हुई सुगौली की संधि के बाद से भारत का कब्जा रहा है.


दरअसल ये इलाका रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है जो भारत, तिब्बत और नेपाल के ट्राई जंक्शन पर पड़ता है. भारत का कहना है कि नेपाल चीन के प्रभाव में आकर नया जमीन विवाद छेड़ना चाहता है और उन हिस्सों को विवादित बना रहा है जिन पर पहले कभी कोई विवाद नहीं रहा है.


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