New Criminal Laws: नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद कितनी बदली वर्दी वालों की ड्यूटी? पुलिस को अब क्या अलग करना होगा
Basic Duties Of Police Officers: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 173 के अनुसार, कोई पुलिस अधिकारी क्षेत्राधिकार की कमी या विवादित क्षेत्राधिकार के आधार पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता है. वहीं, धारा 185 के तहत किसी पुलिस अधिकारी द्वारा की गई तलाशी के दौरान अपराध स्थल की वीडियोग्राफी अनिवार्य है.
How Police Duties Changed: देश के आपराधिक कानूनों में पूरी तरह से बदलाव के साथ ही पुलिस अधिकारियों को रूटीन कामों के कुछ प्रमुख पहलुओं को फिर से सीखने के लिए पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (BPRD) द्वारा मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOP) दी गई हैं. इनमें पुलिस अफसरों की बेसिक ड्यूटी जैसे किसी अपराध पर कैसे रिएक्शन दें, उनमें कौन सा कानून लागू होगा और सबूत को कैसे जल्दी रिकॉर्ड में लाया जाए वगैरह बताया गया है.
एक जुलाई से देश में नए आपराधिक कानून लागू
एक जुलाई से देश में नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 ने भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973; और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IAA), 1872 का स्थान ले लिया है. आइए, जानतें है कि नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद पुलिस की बेसिक ड्यूटी में क्या बदलाव होगा?
पुलिस अधिकारी कैसे दर्ज करेंगे एफआईआर?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 173 के अनुसार, कोई पुलिस अधिकारी अधिकार क्षेत्र की कमी या विवादित क्षेत्राधिकार के आधार पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता है. वह जीरो एफआईआर दर्ज करने और ऐसे मामले को संबंधित पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है.
अगर सूचना देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिनों के भीतर हस्ताक्षर किया जाए तो जानकारी मौखिक या लिखित के अलावा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी दी जा सकती है और इसे प्रभारी अधिकारी को रिकॉर्ड पर लेना होगा. सूचना का इलेक्ट्रॉनिक तरीका अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम पोर्टल, पुलिस वेबसाइट या आधिकारिक तौर पर प्रकाशित ईमेल आईडी जैसी एजेंसियों द्वारा तय किया जाना चाहिए.
अब साक्ष्य कैसे जुटाया करेंगे पुलिस अधिकारी?
पुलिस अधिकारियों को डिजिटल साक्ष्य एकत्र करने के बारे में विस्तार से सिखाया जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक, किसी भी अधिकारी के पुलिस कार्य के किसी भी पहलू के संबंध में किसी भी संदेह को हल करने के लिए मास्टर ट्रेनरों को प्रशिक्षित किया गया है ताकि बाद में कोई विसंगति न पैदा हो.
एक पुलिस अधिकारी द्वारा की गई तलाशी के दौरान धारा 185 के तहत अपराध स्थल (धारा 176) की वीडियोग्राफी अनिवार्य है. धारा 105 में किसी स्थान की तलाशी लेने या किसी संपत्ति पर कब्ज़ा करने की प्रक्रिया बताई गई है. जांच अधिकारियों (IO) को ऐसे कार्यों के निर्वहन के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और उचित प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा.
आईओ को किसी अपराध में पीड़ित के बयान को केवल ऑडियो फॉर्म के माध्यम से रिकॉर्ड करने के बजाय एक वीडियो शूट करना सिखाया जाएगा. इसके अलावा सात साल और उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए अनिवार्य रूप से फोरेंसिक एक्सपर्ट को बुलाना होगा.
ई-साक्ष्य को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा कई फोटो और वीडियो कैप्चर करने की इजाजत देने के लिए डिजाइन किया गया है. इस ऐप का इस्तेमाल करके गवाहों की तस्वीरें और आईओ की सेल्फी ली जा सकती हैं. डेटा की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए हरेक आइटम को जियो-टैग और टाइम-स्टैम्प किया गया है.
आरोपी की गिरफ्तारी के प्रावधान क्या हैं?
बीएनएसएस की धारा 37 के तहत प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक पुलिस अधिकारी की आवश्यकता होती है, जो सहायक उप-निरीक्षक के पद से नीचे का न हो और गिरफ्तार लोगों के बारे में जानकारी बनाए रखने और प्रमुखता से प्रदर्शित करने के लिए जिम्मेदार हो. इसलिए, पुलिस स्टेशनों और जिला नियंत्रण कक्षों के बाहर नाम, पते और अपराध की प्रकृति वाले बोर्ड (डिजिटल मोड सहित) लगाए जाने चाहिए.
बीमार और कमजोर या बुजुर्ग व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए, धारा 35(7) में कहा गया है कि तीन साल से कम कारावास की सजा वाले अपराध वाले आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए उपाधीक्षक (DSP) के पद से नीचे के अधिकारी की अनुमति अनिवार्य नहीं है. आईओ अब कुछ मामलों में सावधानी से हथकड़ी का इस्तेमाल कर सकता है.
पुलिस अफसरों के लिए नई समयसीमा क्या हैं?
बीएनएसएस की धारा 184(6) के तहत बलात्कार के मामलों में, रजिस्टर्ड मेडिकल अफसर को सात दिनों के भीतर मेडिकल रिपोर्ट आईओ को फॉरवर्ड करना अनिवार्य है. फिर आईओ इसे संबंधित मजिस्ट्रेट को आगे भेजेगा.
POCSO के मामले में, अपराध की जानकारी दर्ज करने के दो महीने के भीतर जांच पूरी करना आवश्यक है. पहले यह समय सीमा केवल भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार के मामलों के लिए थी.
अधिकारी, जो पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद से नीचे का नहीं होगा, यह तय करेगा कि बीएनएस की धारा 113 के तहत मामला दर्ज किया जाए या नहीं. यह धारा 'आतंकवादी अधिनियम' या यूएपीए को परिभाषित करता है.
ये भी पढ़ें - Delhi Electricity: दिल्ली में बिजली का बिल जेब पर देगा 'शॉक', बढ़े हुए नए रेट कितना बिगाड़ेंगे हिसाब-किताब? समझिए INSIDE STORY