नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की एक सदस्य ने बुधवार को कहा कि विवाह के लिए लड़का - लड़की दोनों की कानूनी उम्र एक समान होनी चाहिए. ‘बाल विवाह पर राष्ट्रीय सम्मेलन’ में वक्ताओं ने कानूनी उम्र सीमा से कम आयु में विवाह की बुराई पर सख्त कानून की जरूरत पर जोर दिया.


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आयोग की सदस्य ज्योतिका कालरा ने कहा कि विवाह की एक समान आयु तय करने के लिए एक कानून बनाए जाने की जरूरत है, जो उच्चतम न्यायालय और विधि आयोग सहित उच्चतम स्तर पर जाहिर किए गए विचारों के अनुरूप हो.


उन्होंने कहा कि विवाह की कानूनी उम्र लड़कों के लिए 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस अंतर का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक आंकड़ा नहीं है. यह विसंगति बच्चों और उनके विवाह को प्रभावित कर रही है. 


कालरा ने कहा कि विवाह का पंजीकरण अनिवार्य बनाया जाना चाहिए. उच्चतम न्यायालय और विधि आयोग ने इस बात का जिक्र किया है लेकिन यदि यह स्पष्ट नहीं है तो सभी राज्यों ने आवश्यक प्रावधान किए हैं. उन्होंने कहा कि भारत में बाल विवाह सामाजिक - आर्थिक कारकों, खासतौर पर साक्षरता के अभाव से जुड़ा हुआ है. आयोग के महासचिव अंबुज शर्मा ने कहा कि यह शर्म का विषय है कि भारत में बाल विवाह की दर बहुत अधिक है. 


इस सम्मेलन का आयोजन एनएचआरसी ने साउथ एशिया इनिशएटिव टू इंड वायलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रेन (एसएआईईवीएसी) के सहयोग से किया है.