निठारी कांड: कैसे रातों रात पलट गई थी फांसी की सजा, कई बार फंदे पर लटकने से बचा था कोली
Surendra Koli: 12 सितंबर 2014 को कोली को फांसी दी जानी थी लेकिन 8 सितंबर की रात को सुप्रीम कोर्ट ने कोली की फांसी पर 1 हफ्ते की रोक लगी दी थी. इसके अगले महीने सुप्रीम कोर्ट ने कोली की फांसी की सजा को बरकरार रखा था. फिर 2015 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक और फैसला सुनाया जिसके बाद इस मामले में तारीखों का सिलसिला शुरू हो गया.
Nithari Kand: चर्चित निठारी कांड में सोमवार को इलाहबाद हाईकोर्ट ने आरोपी सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को निर्दोष करार दिया. इसके बाद यह मामला एक फिर चर्चा में आ गया. शायद कम लोगों को मालूम होगा कि इस मामले में सुरेंद्र कोली की किस्मत ने उसे दो बार फांसी के फंदे पर चढ़ने से बचाया. एक बार तो उसकी फांसी की सजा रातों रात पलट गई. अब इस मामले में सबूतों के अभाव के चलते उसे निर्दोष दिया गया है. इस मामले में गाजियाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में कुल 19 मामलों में 15 साल तक सुनवाई चली है. आइए जानते हैं कब उसकी फांसी की सजा पलट दी गई.
निठारी गांव में मौजूद वो D-5 कोठी
दरअसल, यह घटना 2006 में हुई जब नोएडा के निठारी गांव में मौजूद D-5 नामक कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली पर आरोप लगे कि बच्चों का अपहरण कर उनको मौत के घाट उतार दिया गया. जिस समय बच्चे गायब हो रहे थे ठीक उसी वक्त 7 मई 2006 को निठारी की एक युवती को पंढेर ने नौकरी देने के बहाने कोठी में बुलाया था. इसके बाद युवती वापस घर नहीं लौटी. युवती के पिता ने नोएडा के सेक्टर 20 थाने में बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इसके बाद फिर इस मामले का खुलासा होना शुरू हुआ. पुलिस ने जब जांच की तो मनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पीछे नाले में 19 बच्चों और महिलाओं के कंकाल मिले थे.
तारीखों का सिलसिला कुछ यूं चला
वह तारीख 29 दिसंबर, 2006 थी जब पुलिस को नोएडा के निठारी में D-5 बंगले के पीछे नाले से महिलाओं और बच्चों के 19 कंकाल मिले थे. पुलिस ने कोठी के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार किया था. बाद में ये मामला CBI को ट्रांसफर कर दिया गया.
- 8 फरवरी, 2007 को CBI की स्पेशल कोर्ट ने मनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को 14 दिनों के लिए CBI की कस्टडी में भेजा.
- 13 फरवरी, 2009 को विशेष अदालत ने कोली और पंढेर को एक लड़की के साथ दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई.
- 10 सितंबर, 2009 को ट्रायल कोर्ट ने भी पंढेर और कोली को मौत की सजा सुनाई, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पंढेर को दोषमुक्त करार दिया और कोली की फांसी की सजा बरकरार रखी.
- 7 जनवरी, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने कोली की फांसी की सजा पर रोक लगाई.
- 20 जुलाई, 2014 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने फांसी की सजा के दोषियों की दया याचिका रद्द की, जिनमें सुरेंद्र कोली की याचिका भी शामिल थी.
- 12 सितंबर, 2014..ये वो तारीफ थी जिस दिन कोली को फांसी दी जानी थी, हालाकि 8 सितंबर की रात को सुप्रीम कोर्ट ने कोली की फांसी पर 1 हफ्ते की रोक लगी दी थी. इसके अगले महीने सुप्रीम कोर्ट ने कोली की फांसी की सजा को बरकरार रखा था. वर्ष 2015 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने कोली की फांसी की सज़ा पर ये कहते हुए रोक लगा दी थी कि उसकी दया याचिका पर फैसला लेने में काफी देर कर दी गई है. इसलिए अब फांसी देना सही नहीं होगा.
- 22 जुलाई, 2017 को CBI कोर्ट ने मनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को दोषी करार दे दिया.
- 24 जुलाई, 2017 को सीबीआई कोर्ट ने दुष्कर्म और हत्या के एक और मामले में दोनों को दोषी करार दिया.
- 16 अक्टूबर, 2023 को इलाहबाद हाई कोर्ट ने मनिंदर सिंह पंढेर पर चल रहे सभी मामलों में उन्हें बरी करने का फैसला सुनाया है. जबकि सुरेंद्र कोली को कोर्ट ने 12 मामलों में बरी किया. अब भी कोली पर एक केस चल रहा है.
इतना लंबा चला मामला
एक रिपोर्ट के मुताबिक यह मामला इतना लंबा चला और सुरेंद्र कोली क़ानून का इतना जानकार हो गया कि वह खुद ही अपनी पैरवी करने लगा. केस से जुड़े लोग बताते हैं कि कोली कानून का इतना जानकार हो गया था कि काेर्ट में अपनी पैरवी खुद भी करने लगता था. बहस के दौरान अपने पक्ष में इस तरह दलील रखता था कि बड़े-बड़े सोचने पे मजबूर हो जाते थे. शायद इसका भी फायदा उसने उठाया. फिलहाल इलाहाबाद कोर्ट ने दोनों की सजा को रद्द करते हुए यही कहा कि जांच एजेंसियों के पास पर्याप्त सबूत नहीं है.