Biggest Harem: मुगल नहीं, इस साम्राज्य में था संसार का सबसे बड़ा हरम, घोड़ों से कम थी लड़कियों की कीमत
Mughal Harem: खिलजी वंश में एक शासक पैदा हुआ. नाम था गयासुद्दीन खिलजी. उसने 1439 से 1509 ई. तक राज किया. उसने एक जहाज महल बनाया था, ताकि महिलाओं को रखा जा सके. वहीं अलाउद्दीन खिलजी (1266-1316 ई.) के शासनकाल में मलिक कफूर के साथ उसके संबंधों पर भी चर्चा होती है. चीन यात्रा के दौरान यात्री मार्को पोलो ने मंगोल शासक कुबलाई खान की अय्याशियों के बारे में लिखा है.
Stories of Harem: जैसे ही हरम शब्द का जिक्र होता है, एक अलग ही तस्वीर हमारे जहन में उभर आती है. हरम को लेकर हमेशा से न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी इतिहासकार भी काफी आकर्षित रहे हैं. ऐसा माना जाता था कि जिसके हरम में जितनी ज्यादा हसीनाएं, वह उतना ही महान बादशाह. इसलिए कलाकारों ने भी हरम के चित्र उकेरे हैं. जबकि लेखकों ने उपन्यास और कहानियां लिखी हैं.
खिलजी वंश में एक शासक पैदा हुआ. नाम था गयासुद्दीन खिलजी. उसने 1439 से 1509 ई. तक राज किया. उसने एक जहाज महल बनाया था, ताकि महिलाओं को रखा जा सके. वहीं अलाउद्दीन खिलजी (1266-1316 ई.) के शासनकाल में मलिक कफूर के साथ उसके संबंधों पर भी चर्चा होती है. चीन यात्रा के दौरान यात्री मार्को पोलो ने मंगोल शासक कुबलाई खान की अय्याशियों के बारे में लिखा है.
कुबलाई खान की चार बीवियां और 7 हजार रखैल थीं. रखैलों को वह हर दो साल में बदलकर नई महिलाओं को ले आता था. मार्को पोलो के मुताबिक, इसके लिए विशेष प्रक्रिया होती थी. लड़कियों के हर अंग का मुआयना किया जाता था. कहा जाता है कि अकबर के हरम में 5 हजार और जहांगीर के हरम में 6 हजार महिलाएं थीं.
संसार का सबसे बड़ा हरम
लेकिन क्या आप जानते हैं कि संसार का सबसे बड़ा हरम कौन सा था, जहां बेहद ऊंची कीमत पर घोड़ों को खरीदा जाता था लेकिन लड़कियों की कीमत उसकी आधी भी नहीं होती थी. इस हरम का नाम था ओटोमन साम्राज्य का सेराग्लियो हरम. बताया जाता है कि इस हरम में तो हजारों महिलाएं को बाहर की दुनिया देखना तक नसीब नहीं होता था. वह अंदर ही मर जाया करती थीं.
ओटोमन शासक सुल्तान महमूद शहर बसाने का शौकीन था. उसने महिलाओं का ही एक शहर बसा दिया था. लेखक अलेव लैटर क्रोतिएर ने एक किताब लिखी है. नाम है Harem-Behind the Veil. इसमें उन्होंने लिखा है कि बादशाह के दरबार के लिए सुंदर लड़कियों को गुलामों के बाजार से खरीदा जाता था. इन लड़कियों को विदेशी या फिर सेनापति ही बादशाह को तोहफा देने के लिए खरीदते थे. कई बार तो सुल्तान की वालिदा कुर्बान बैरम के मौके पर बेटे को गुलाम औरतें खरीदकर दे देती थीं.
क्रौतिएर ने लिखा है, ये गैर-मुस्लिम लड़कियां होती थीं. काकेकश इलाके की. गुलामों के बाजार में इनकी जबरदस्त डिमांड रहती थी. इन लड़कियों को या तो इनके मां-बाप बेच देते थे या फिर इनको उठाकर लाया जाता था. उस दौर में जहां घोड़े 5000 कुरुष में बिका करते थे. वहीं लड़कियां 1000-2000 कुरुष में आ जाती थीं.
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