Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र, पंजाब और हरियाणा सरकारों को दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त कदम उठाने में नाकाम रहने के लिए कड़ी फटकार लगाई. राजधानी दिल्ली और उसके आसपास हर साल सर्दियों के मौसम में होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वायु प्रदूषण रोकने के लिए बैठकों के अलावा जमीन पर कुछ भी ठोस नहीं हो रहा है.


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पराली जलाने को लेकर किसानों-अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं?


सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) और पंजाब तथा हरियाणा सरकारों को इस बात के लिए आड़े हाथों लिया कि उन्होंने पराली जलाने को लेकर किसानों और उनके खिलाफ कार्रवाई करने वाले अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कमीशन ने खुद अपने निर्देशों पर अमल सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में कमीशन नाकामयाब रहा है. ऐसा लगता है कि मीटिंग और चर्चा के अलावा जमीन पर कुछ नहीं हो रहा है.


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले 15 दिनों में ही पंजाब में पराली लगाने की 129 और हरियाणा में 81 घटना हुई है. कमीशन ने पराली जलाने के आरोप में अभी तक किसी के खिलाफ मुकदमा नहीं दर्ज किया है.


सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय बेंच का CQAM से हलफनामे पर सवाल


जस्टिस एएस ओका ने कहा, "हर कोई जानता है कि चर्चा के अलावा कुछ नहीं हो रहा है. यही इसकी कठोर वास्तविकता है." सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस ए अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह भी शामिल थे. पिछले सप्ताह कोर्ट ने सीएक्यूएम से हलफनामा दाखिल करने को कहा था, जिसमें दिल्ली में खराब एयर क्वालिटी वाले दिनों के पीछे प्रमुख कारणों में से एक पराली जलाने से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण हो. 


नौ महीनों में पैनल की महज 3 बैठक, पराली जलाने पर चर्चा ही नहीं


एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को पैनल की संरचना के बारे में बताया तो जस्टिस ओका ने कहा कि पिछले नौ महीनों में पैनल की केवल तीन बार बैठक हुई और पराली जलाने पर कोई चर्चा नहीं हुई. उन्होंने कहा, "पिछली बैठक 29 अगस्त को हुई थी. पूरे सितंबर में कोई बैठक नहीं हुई. आपने कहा कि इस समिति में आईपीएस अधिकारी वगैरह शामिल हैं जो निर्देशों को लागू करेंगे. अब प्रवर्तन के मामले में 29 अगस्त के बाद एक भी बैठक नहीं हुई है."


जब तक मुकदमा नहीं होगा, कोई भी इसके बारे में चिंता नहीं करेगा...


जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि सुरक्षा और प्रवर्तन पर उप-समिति की बैठक 11 सदस्यों ने क्यों आयोजित की. उन्होंने पूछा "क्या यही गंभीरता दिखाई जा रही है?" जस्टिस ओका ने कहा कि केवल कुछ बैठकें ही हो रही हैं. कोर्ट ने कहा, "आपके आदेशों का जमीनी स्तर पर अमल कहां हो रहा है? जब तक मुकदमा नहीं होगा, कोई भी इसके बारे में चिंता नहीं करेगा."


वायु प्रदूषण का स्तर कम होने से नहीं उठाए कदम, सरकार ने दी दलील


सरकार के वकील ने जवाब दिया कि उन्होंने सरकारी कर्मचारी के आदेशों की अवहेलना से संबंधित धारा के तहत एफआईआर दर्ज की है. इस पर कोर्ट ने जवाब दिया, "आपने मुकदमा चलाने के लिए सबसे नरम प्रावधान लिया है. सीएक्यूएम एक्ट की धारा 14, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 15 है, जिसमें कठोर शक्तियां हैं." सरकारी वकील ने कहा कि उन्होंने कठोर कदम नहीं उठाए क्योंकि वायु प्रदूषण का स्तर कम हो गया था.


पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 15 को क्यों नहीं लागू किया गया?


जस्टिस ओका ने पूछा, "आपको अपने आदेशों को लागू करना चाहिए. यह सब हवा में है. लक्ष्य, कार्ययोजनाएं, क्षेत्रीय बैठकें हैं, लेकिन अधिनियम के बुनियादी प्रावधानों को बिल्कुल भी लागू नहीं किया गया है. 2024 में, पराली जलाने के 129 मामले हैं, इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 15 को क्यों नहीं लागू किया गया और सरकार के अधिकारियों के खिलाफ इसी तरह की कार्रवाई क्यों नहीं की गई?" 


वायु प्रदूषण की रोकथाम पर हलफनामा दाखिल करे पंजाब और हरियाणा 


अदालत ने कहा कि पराली जलाने वालों पर नाममात्र का मुआवजा लगाया गया था. बेंच ने साफ कहा, "बैठकें आयोजित करने से तब तक कोई फायदा नहीं होगा जब तक कि जमीनी स्तर पर आप यह न दिखा दें कि कार्रवाई की गई है." अगस्त में हुई मीटिंग में 24 में से सिर्फ 5 लोगों ने हिस्सा लिया. कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकार से कहा कि वो वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए उसकी ओर से दिए निर्देशों पर अमल सुनिश्चित करें. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों से हलफनामा दायर करने को कहा. 


पराली हटाने वाली मशीनों का मुफ्त में भी इस्तेमाल नहीं कर रहे किसान


इसके बाद चर्चा उन मशीनों पर आ गई जिनका इस्तेमाल पराली हटाने के लिए किया जा सकता है ताकि खेतों में आग न लगे. पंजाब सरकार के वकील ने कहा, "समस्या यह है कि मशीन उपलब्ध है, इसे उस किसान को मुफ्त में दिया जा रहा है जो इसका इस्तेमाल करना चाहता है. किसान इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि पंजाब में 70 प्रतिशत किसानों के पास 10 एकड़ से कम जमीन है. (उन्हें) ड्राइवर रखना होगा और उस मशीन में डीजल का इस्तेमाल करना होगा जो वे करने को तैयार नहीं हैं." 


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'जब तक जमीनी स्तर पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं होती, मुद्दा हल नहीं होगा'


राज्य ने प्रस्ताव दिया कि किसानों को इन मशीनों को चलाने का खर्च दिया जाए. इसके बाद अदालत ने कहा, "तो आप हमें यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जब तक हमें भारत की केंद्र सरकार से पैसे नहीं मिलते हम कुछ नहीं करेंगे? जब तक जमीनी स्तर पर दंडात्मक कार्रवाई शुरू नहीं होती, यह मुद्दा हल नहीं होगा... कोई डर नहीं है. मशीनें तो हैं लेकिन वे मशीनों का इस्तेमाल नहीं करने जा रहे हैं. यह इतना ही सरल है." सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी.


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