प्रवीण कुमार


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जम्मू-कश्मीर में पांच चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव का बिगुल बच चुका है। इस चुनाव में अहम सवाल यह है कि क्या भाजपा मिशन-44 में सफल हो पाएगी? अगर जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा बनती है, तो क्या भाजपा पीडीपी या दूसरी छोटी पार्टियों के साथ मिलकर सत्ता साझा करेगी? अगर भाजपा वहां दूसरी पार्टियों के साथ सरकार बनाती है, तो क्या वहां मुख्यमंत्री पद गठबंधन सहयोगियों के पास बारी-बारी से रहेगा और क्या ऐसे में जम्मू-कश्मीर को पहला हिंदू मुख्यमंत्री मिलेगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब अगले महीने की 23 तारीख को मिल जाएगा।


विधानसभा की 87 सीटों में से 46 कश्मीर के हिस्से आती हैं, जबकि जम्मू संभाग में 37 और लद्दाख में 4 सीटें आती हैं। भाजपा को लगता है कि इस बार जम्मू और लद्दाख की 41 सीटों में से अधिकांश पर हाथ साफ कर वह कांग्रेस को धूल चटा सकती है। इसके बाद यदि भाजपा किसी सीमा तक घाटी में सेंध लगाने में कामयाब हो जाती है तो समझ लेना चाहिए उसका मिशन 44+ पूरा हो सकता है। इसके उलट पीडीपी का मानना है कि यदि वह जम्मू संभाग में अपने प्रभाव को कुछ सीमा तक बचाने में कामयाब हो गई तो वह भी सत्ता के करीब अपने ही बूते पहुंच सकती है।


जम्मू-कश्मीर में भाजपा मोदी लहर पर सवार होकर, विकास और बेहतर प्रशासन का वादा कर अपना जनाधार बनाना चाह रही है। वर्ष 2008 में भाजपा ने जम्मू में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 11 सीटें जीती थीं। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जम्मू की दोनों और लद्दाख की इकलौती सीट जीत ली। शेष तीन सीटें पीडीपी के कब्जे में आईं। इस तरह से भाजपा की रणनीति जम्मू और लद्दाख में अधिकतम सीटें जीतकर मोलभाव की स्थिति में आने और सरकार का हिस्सा बनने की है। उसकी योजना सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस जैसी छोटी पार्टियों के साथ चुनाव बाद गठबंधन बनाने की भी है।


चुनावी अंकगणित और सर्वे
पिछले विधानसभा के आंकड़ों पर गौर करें तो 87 सीटों वाली विधानसभा में नेशनल कांफ्रेंस को 28, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को 21, कांग्रेस को 17, भाजपा को 11 और अन्य को 10 सीटें मिली थीं। इंडिया टीवी-सी वोटर के एक सर्वे के मुताबिक, पीएम नरेंद्र मोदी के मिशन-कश्मीर के बावजूद भाजपा के कश्मीर में दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में ही उभरने के संकेत मिल रहे हैं। सर्वे के अनुसार, पीडीपी को जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 87 में से 28 से 34 सीटें मिल सकती हैं। आतंकवाद का दंश झेल रहे इस राज्य में भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है। सर्वे के अनुसार भाजपा को यहां 24 से 30 सीटें मिल सकती हैं। राज्य की सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस की झोली में 8-14, कांग्रेस के हिस्से 5-11 और अन्य की झोली में 7-13 सीटें जा सकती हैं। यह पोल सर्वे नवंबर के तीसरे हफ्ते में किया गया है।


अगर सर्वे का अनुमान सही होता है तो सूबे का हाल महाराष्ट्र जैसा हो जाएगा। भाजपा, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस तीनों एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। तीनों दल एक-दूसरे के खिलाफ जोर-शोर से आरोप-प्रत्यारोप भी लगा रहे हैं। लेकिन चुनाव के बाद भाजपा और पीडीपी सरकार बनाने के लिए एक-दूसरे का दामन थाम लें इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। दरअसल पीडीपी और भाजपा दोनों का वोट बैंक में कोई टकराव नहीं है। घाटी में मोदी और भाजपा का ज्यादा दखल नहीं है। यहां मोदी और भाजपा के खिलाफ जो पार्टी जितना प्रचार करेगी उसे उतना फायदा होगा। इसीलिए पीडीपी घाटी में मोदी और भाजपा के खिलाफ अभियान चलाकर अधिक से अधिक सीटें हासिल करना चाहती है।


चुनाव बाद भाजपा-पीडीपी सरकार की एक सूरत बन सकती है। एक संभावना भाजपा और नेशनल कांफ्रेंस की गठबंधन सरकार हो सकती है, लेकिन यह तभी संभव है जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर 35 सीटें जीते। सरकार बनने की एक तीसरी सूरत यह कि हरियाणा की तरह भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल हो जाए। रही सही कसर सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस पूरी कर देगी जिसकी बुनियाद पीएम नरेंद्र मोदी और सज्जाद लोन की नई दिल्ली में मुलाकात से रखी जा चुकी है।   


चुनाव के प्रमुख मुद्दे
22 जिलों में फैले विधानसभा क्षेत्रों में राजनीतिक पार्टियां जम्मू एवं कश्मीर के मतदाताओं को लुभाने की हर संभव कोशिश कर रही हैं। पुराने मित्र और गठबंधन साथी अब विरोधी बन गए हैं। कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस छह साल तक गठबंधन सरकार चलाने के बाद अलग हो चुकी है। आज वे कश्मीर में हो रही गड़बड़ी का आरोप एक-दूसरे पर मढ़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव की जीत से उत्साहित भाजपा कांग्रेस सहित नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरी है।


जम्मू, लद्दाख और कश्मीर घाटी की विविधता के कारण इसकी प्राथमिकताएं भी अलग-अलग हैं। पिछड़े और दूरवर्ती इलाकों में रहने वाले मतदाताओं के लिए सड़क, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और रोजगार मुख्य मुद्दा है। इसमें लद्दाख के लेह और कारगिल जिला, घाटी में कुपवाड़ा के सीमावर्ती इलाके, बारामुला और बांदीपोरा, और जम्मू के पुंछ, राजौरी, डोडा और किश्तवाड़ शामिल हैं। शहरी क्षेत्रों जैसे श्रीनगर, जम्मू, सांबा, कठुआ, उधमपुर और अन्य जिलों में लोगों के लिए राजनीतिक मुद्दा जैसे अनुच्छेद 370, स्वायत्तता और स्वशासन महत्वपूर्ण हैं। भ्रष्टाचार भी इनके लिए बड़ा मुद्दा है।  घाटी के अलगाववादी नेता 1990 के दशक से शुरू हुए आतंकवाद से चुनाव का बहिष्कार करते आ रहे हैं।


अनुच्छेद 370, विकास, भ्रष्टाचार, सत्ता में परिवारवाद, कश्मीरी पंडित, बाढ़, आर्थिक सुधार के उपाय, बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग आदि ऐसे मुददे हैं जिसे भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में बार-बार उठा रहे हैं। चुनावी माहौल जैसे-जैसे गर्म हो रहा है वैसे-वैसे अनुच्छेद 370 फिर से चुनावी मुद्दा बनता नजर आ रहा है। भाजपा इस मुद्दे पर बहस चाहती है जबकि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के नेता कहते हैं कि यह बहस का मुद्दा नहीं है।


कांग्रेस पार्टी के जम्मू कश्मीर के अध्यक्ष सैफुद्दीन सोज कहते हैं, '370 नहीं रखोगे तो रिश्ता कहां रहेगा कश्मीर का हिंदुस्तान से? ये बहस का मुद्दा हो ही नहीं सकता।' सोज का कहना है भाजपा इसे मुद्दा बनाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी अपने एक हालिया ट्वीट में इस पर सवाल उठाते हुए कहा था कि संविधान के अनुसार धारा 370 ही राज्य को भारत से जोड़ती है तो इसे हटाने का सवाल कहां पैदा होता है।