चेन्नई: तमिलनाडु विधानसभा के आज शुरू हो रहे सत्र में जल्लीकट्टू मुद्दा के छाए रहने की संभावना है और अन्नाद्रमुक सरकार इस खेल के आयोजन के लिए अध्यादेश की जगह एक विधेयक लाने एवं पीसीए कानून में संशोधन करने की तैयारी में है। इस सत्र के संक्षिप्त रहने की संभावना है और यह ऐसे समय हो रहा है जब राज्य में जल्लीकट्टू को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन देखा गया।


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विधानसभा सत्र पिछले साल पांच दिसंबर को मुख्यमंत्री जे. जयललिता के निधन के बाद पहली बार हो रहा है। ओ. पन्नीरसेल्वम की अगुवाई वाली अन्नाद्रमुक सरकार पशुओं के साथ क्रूरता रोधी कानून में संशोधन के लिए विधेयक लाने की तैयारी में है और मुख्य विपक्षी द्रमुक और इसकी सहयोगी कांग्रेस एवं आईयूएमएल द्वारा इस विधेयक को समर्थन दिए जाने की संभावना है।


पनीरसेल्वम ने कहा कि तमिलनाडु के सभी हिस्सों में जल्लीकट्टू का आयोजन किया गया और स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा इसके लिए सभी एहतियाती कदम उठाए गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने जहां आयोजन के स्थाई समाधान की मांग की और नारे लगाते हुए कहा कि अध्यादेश केवल अस्थाई उपाय है वहीं पनीरसेल्वम ने कहा, ‘राज्य सरकार का जल्लीकट्टू अध्यादेश का रास्ता स्थाई, सशक्त और टिकाउ है और इसे आगामी विधानसभा सत्र में कानून बनाया जाएगा।’ उन्होंने कहा कि अध्यादेश लागू होने के बाद कोई प्रतिबंध नहीं है।


आलंगनल्लूर में जल्लीकट्टू का उद्घाटन करने की घोषणा करने वाले पनीरसेल्वम को प्रदर्शनकारियों के विरोध के चलते मदुरै के एक होटल में रहना पड़ा। उसके बाद उम्मीद थी कि पनीरसेल्वम डिंडीगुल के नाथम कोविलपट्टी में जल्लीकट्टू का उद्घाटन कर सकते हैं लेकिन वहां भी प्रदर्शन शुरू हो गये। इस बीच तमिलनाडु सरकार ने राज्य में जल्लीकट्टू की अनुमति वाले अपने अध्यादेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिये जाने की संभावना को देखते हुए एक कैविएट दाखिल की है। द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एम के स्टालिन ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि प्रदर्शनकारियों से बातचीत करें और इस बात पर जोर देना बंद करें कि अध्यादेश लागू करने से स्थाई समाधान निकल जाएगा।