नई दिल्ली: जब आप सिनेमा हॉल में फिल्म देखने के लिए जाते हैं तो फिल्म शुरू होने से पहले एक डिस्क्लेमर आता है, सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट भी दिखाया जाता है. इसी तरह न्यूज़ चैनलों पर भी अपशब्दों का इस्तेमाल नहीं होता, कुछ न्यूज़ चैनलों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर चैनल इस मर्यादा का पालन करते हैं. अगर हम आपको कभी कोई संवेदनशील वीडियो दिखाते भी हैं तो उसके साथ एक डिस्क्लेमर लगाया जाता है, जबकि OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया पर ऐसा कुछ नहीं होता है इसीलिए ऑनलाइन कंटेंट में आपको भरपूर हिंसा और गाली गलौज सुनाई देती है.


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यानी पारंपरिक मीडिया तो नियमों से बंधा हुआ है लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के साथ ऐसा नहीं है. भारत के ज्यादातर लोग अब OTT प्लेटफॉर्म देख रहे हैं. इस समय हर 4 में से 3 भारतीय OTT प्लेटफॉर्म पर ही फिल्में देखना पसंद करते हैं.


न्यूज़ चैनलों पर नियंत्रण से पहले डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने की ज़रूरत
भारत में एक ऐसी घोषणा हुई है, जिसका असर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिखाए जाना वाले कंटेट पर पड़ सकता है. सरकार के नए फ़ैसले के मुताबिक भारत में इस समय जितने भी OTT प्लेटफॉर्म हैं, उनका नियंत्रण अब भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास होगा. इस नोटिफिकेशन पर देश के राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए हैं और अब ऑनलाइन जो भी कंटेंट आप देखते हैं उस पर सरकार की कड़ी नज़र रहेगी. कुछ दिनों पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी साफ किया था कि न्यूज़ चैनलों पर नियंत्रण करने से पहले डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने की ज़रूरत है.


भारत में इस समय न्यूज़ चैनलों पर दिखाए जाने वाले कंटेंट को रेगुलेट करने वाली संस्था News Broadcasting Standards Authority यानी NBSA है. प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ ​​इंडिया है. फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड है. लेकिन डिजिटल मीडिया पर कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए ऐसी कोई संस्था नहीं है.


न्यूज़ चैनलों को NBSA की तरफ से जारी की जाती हैं गाइडलाइंस
फिल्में अक्सर सेंसर बोर्ड के पास फंस जाती है. फिल्मों के कई सीन काटने पड़ते हैं, उन्हें सेंसर करना पड़ता है. न्यूज़ चैनलों को समय समय पर NBSA की तरफ से गाइडलाइंस जारी की जाती हैं और हमें इन गाइडलाइंस का पालन करना होता है. उदाहरण के लिए न्यूज़ चैनल आपको डेड बॉडी की तस्वीरें नहीं दिखा सकते, खून नहीं दिखा सकते, आत्महत्या के मामले की रिपोर्टिंग करते हुई भी बहुत सारे दिशानिर्देशों का पालन करना होता है. हालांकि ये बात अलग है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कई न्यूज़ चैनलों ने इन गाइडलाइंस का उल्लंघन किया. लेकिन फिर भी ज़्यादातर मौकों पर हमें मर्यादा में रहते हुए अपना काम करना पड़ता है. लेकिन डिजिटल मीडिया पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है और वहां बिना किसी सेंसर के आपको सबकुछ दिखाया जाता है और ये कंटेट के छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक के लिए उपलब्ध है.


अब आपको सवाल और जवाब के फॉर्मेट में ये बताते हैं कि इस फैसले का असर किस पर पड़ेगा और किस पर नहीं.


सवाल: क्या भारत सरकार की इस घोषणा का असर सिर्फ OTT Platforms पर होगा?


- अब OTT प्लेटफॉर्म के साथ ऑनलाइन न्यूज़ प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के करेंट अफेयर्स वाले कंटेट को भी नियंत्रित किया जाएगा.


सवाल: क्या इससे पहले देश में ऑनलाइन कंटेंट को नियंत्रित किया जाता था?


- डिजिटल कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए देश में अबतक कोई कानून या स्वतंत्र संस्था नहीं थी. इसी वर्ष सितंबर महीने में OTT प्लेटफॉर्म की 17 कंपनियों ने अपने कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए एक समझौता किया था. हालांकि इसमें OTT प्लेटफॉर्म खुद अपने कंटेंट पर नज़र रख रहे थे.


सवाल: दुनिया के बाकी देशों में डिजिटल कंटेंट के लिए क्या नियम हैं?


- सिंगापुर में वहां की मीडिया पर नज़र रखने वाली एक संस्था OTT Platforms को भी नियंत्रित करती है.


- ऑस्ट्रेलिया में Broadcasting Services Act 1992 की मदद से OTT Platforms पर नियंत्रण रखा जाता है.


- ब्रिटेन में भी इसके लिए एक संस्था बनाने पर विचार किया जा रहा है. यानी भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश नहीं होगा.