Yogendra Yadav-Suhas Palshikar Letter: शिक्षाविद योगेंद्र यादव और सुहास पलीशकर ने सोमवार को NCERT को खत लिखकर नई किताबों में उनके नाम होने पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि अगर उनके नाम वाली ये किताबें तुरंत नहीं हटाई जाती हैं तो वे केस करेंगे. पलशीकर और यादव ने कहा है कि किताबों की समीक्षा से उन्होंने खुद को अलग कर लिया था.


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खत में क्या बोले यादव और पलीशकर?


अपने खत में उन्होंने कहा कि वे नहीं चाहते कि एनसीईआरटी उनके नाम का आड़ लेकर छात्रों को पॉलिटिकल साइंस की ऐसी किताबें दें, जो राजनीतिक रूप से पक्षपाती, अकादमिक रूप से असमर्थ और शैक्षणिक रूप से गलत है. वे दोनों पॉलिटिकल साइंस की किताबों के लिए चीफ एडवाइजर थे. उन्होंने पिछले साल कहा था कि किताबों की सामग्री को घटाने की कवायद ने पुस्तकों को अकादमिक रूप से नामुनासिब बना दिया और किताबों से उनके नाम हटाए जाने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि किताबें पहले उनके लिए गौरव का सोर्स थीं जो अब शर्मिंदगी का सबब बन गई हैं. 


आखिर पूरा मामला है क्या?


हाल में बाजार में किताबों का जो अपडेटेड वर्जन सामने आया है, उसमें पलशीकर और यादव के नाम का जिक्र चीफ एडवाइजर के रूप में किया गया है. खत में कहा गया है, 'चुनिंदा तरीके से कंटेंट हटाने की पहले की परंपरा के अलावा, एनसीईआरटी ने अहम संशोधनों और फिर से लिखे होने का सहारा लिया है जो मूल किताबों की भावना के मुताबिक नहीं है. एनसीईआरटी को हममें से किसी से सलाह लिए बिना इन किताबों में छेड़छाड़ करने का कोई नैतिक या कानूनी अधिकार नहीं है, लेकिन हमारे साफ तौर से मना करने के बावजूद हमारे नाम के साथ इन्हें पब्लिश कर दिया गया.


खत में कहा गया, 'किसी भी चीज के लेखक होने के किसी शख्स के दावे के बारे में तर्क और बहस की जा सकती है. लेकिन यह हैरानी की बात है कि लेखक और संपादक के नाम ऐसी किताब के साथ जोड़े गए हैं जिन्हें अब वे अपना नहीं मान रहे हैं.' एनसीईआरटी पॉलिटिकल साइंस की 12वीं क्लास की अपडेटेड किताब से जुड़े विवाद के केंद्र में एक बार फिर से है क्योंकि इसमें बाबरी मस्जिद का जिक्र नहीं किया है बल्कि इसे तीन-गुंबद वाला ढांचा बताया है. 


किताब से हाल में हटाई गई सामग्री में शामिल हैं: गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक भाजपा की रथ यात्रा, कार सेवकों की भूमिका, बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के मद्देनजर सांप्रदयिक हिंसा, भाजपा शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन, और अयोध्या में जो कुछ हुआ उस पर भाजपा का खेद जताना. 


तुरंत बाजार से वापस मंगवाएं किताबें


पलशीकर और यादव ने खत में कहा है, 'हमारे नामों के साथ पब्लिश की गईं इन किताबों के नए एडिशन को तुरंत बाजार से वापस लिया जाए और अगर एनसीईआरटी तुरंत ऐसा नहीं करती है तो हम कानूनी उपाय का सहारा लेने को मजबूर होंगे.' यादव और पलशीकर ने जब किताबों से खुद को अलग किया था, तो एनसीईआरटी ने कॉपीराइट स्वामित्व के आधार पर इसमें बदलाव करने के अपने अधिकार का जिक्र किया और कहा था कि किसी एक सदस्य की ओर से इससे जुड़ाव खत्म करने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि किताबें सामूहिक कोशिश का नतीजा हैं.


(एजेंसी इनपुट के साथ)