भारत के सियासी दलों में पदयात्रा और रथयात्रा का खासा क्रेज रहा है. अगर पदयात्रा की बात करें तो युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पदयात्रा को कौन भूल सकता है. अगर रथयात्रा की बात करें तो राम मंदिर आंदोलन के संदर्भ में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को कैसे भुलाया जा सकता है. इन यात्राओं से सियासी दलों या शख्सियतों को कितना फायदा मिला वो बहस का मुद्दा हो सकता है. इन सबके बीच बात करेंगे केंद्र सरकार की प्रस्तावित भारत संकल्प यात्रा की जिसके संबंध में चुनाव आयोग का चाबुक चला है. अब यहां सवाल यह है कि इसे लेकर सियासत क्यों शुरू हो गई. केंद्र सरकार ने इस संबंध में क्या कहा और इसका बीजेपी के पन्ना प्रमुख से क्या लेना देना है.


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क्या है भारत संकल्प यात्रा


केंद्र सरकार ने पिछले 9 साल के लेखा जोखा को जनता के बीच ले जाने के लिए भारत संकल्प यात्रा निकालने का फैसला किया है,इसके लिए केंद्र सरकार के अधिकारियों को रथ प्रभारी नियुक्त करने का निर्देश दिया.इसके लिए अलग अलग मंत्रालयों को पत्र भी भेजा गया है. जब इसकी जानकारी विपक्ष को हुई तो हल्ला हंगामा शुरू हुआ. विपक्ष ने कहा कि इसके जरिए पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की जाएगी. विपक्ष की इस शिकायत के बाद चुनाव आयोग कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को पत्र लिखा. लेटर में यह लिखा गया कि जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं वहां पहले से ही आदर्श आचार संहिता लागू है, लिहाजा संकल्प यात्रा को पांच दिसंबर 2023 तक इस तरह की गतिविधि नहीं होनी चाहिए.


कांग्रेस को थी आपत्ति

कांग्रेस की आपत्ति इस बात पर है कि बीजेपी नौकरशाही का राजनीतिकरण कर रही है. सरकारी मशीनरी का पूर्ण रूप से दुरुपयोग है. यही नहीं इसके जरिए केंद्रीय सिविल सेवा आचरण नियम का भी उल्लंघन है, इसमें स्पष्ट किया गया है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक गतिविधि का हिस्सा नहीं होगा. कांग्रेस की इन आपत्तियों को चुनाव आयोग ने संज्ञान में तो लिया है लेकिन इसका पन्ना प्रमुख से क्या वास्ता है.


क्या है पन्ना प्रमुख कार्यक्रम

अगर आप बीजेपी के पन्ना प्रमुखों की बात करें तो इसके जरिए पार्टी ने सीधे तौर पर जनता से जुड़ने का मौका मिला. पन्ना प्रमुखों के जरिए जमीनी स्तर पर बीजेपी ने अपने संगठन को मजबूत भी किया. 


क्या कहते हैं जानकार

अब अगर आप केंद्र सरकार की संकल्प यात्रा की करें तो हर एक सरकार की कोशिश होती है कि जिन योजनाओं को अमल में लाया जा रहा है उन्हें जनता के बीच मजबूती के साथ ले जाया जाए. इसमें आखिर किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए. जो भी राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज रहे हैं उन्होंने अपनी योजनाओं को जनता के बीच पहुंचाने की कोशिश की है. क्या किसी सरकारी योजना के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी प्राइवेट संस्थान का शख्स करेगा. जाहिर सी बात है कि सरकारी स्कीम के बारे में प्राइवेट शख्स क्यों बताए. दरअसल कांग्रेस को इस बात से आपत्ति है कि केंद्रीय योजनाओं के चुनावी राज्यों में प्रचार-प्रसार का अर्थ यह होगा कि बीजेपी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेगी.