इस शख्स ने कबाड़ से बना दिया रॉक गार्डन, दुनियाभर से देखने आते हैं लोग

नेकचंद ने देश को एक ऐसी अनूठी संपत्ति दी जो विश्व भर को ये सोचने पर मजबूर करती है कि कोई चीज कबाड़ नहीं होती.

ज़ी न्यूज़ डेस्क Fri, 12 Jun 2020-6:25 pm,
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बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट का अनूठा नमूना

नेकचंद ने देखा कि सेक्टर-1 के जंगल में कुछ रचनात्मक किया जा सकता है, तो उन्होंने घास-फूस की एक झोपड़ी बनाकर वहां रहना शुरू किया. वह अपनी साइकिल से निकलते और शहरभर से तमाम तरह के कबाड़ लाकर एक अनूठी चीज बनाने में जुट जाते. उन्होंने गुपचुप जंगलात की जमीन पर धीरे-धीरे एक ऐसे बगीचे की नीव रखी, जो दुनिया में पहचान बना सका ‘रॉक गार्डन’.

 

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बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट का अनूठा नमूना

1956 में शुरू हुआ रॉक गार्डन का सफर तीन फेज पूरे कर चुका है. इसके कारण उन्हें अपनी नौकरी भी खोनी पड़ी थी. मगर बाद में सम्मान के साथ ही धन भी मिला.

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12 जून 2015 को शहर ने अपने उस रचनात्मक शख्स को खो दिया, जिसने 18 साल तक कबाड़ और पत्थरों के टुकड़े जमा करके जंगल में एक वंडरलैंड बनाया था.

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जब इसका पहला चरण पूरा हुआ तो प्रशासन को इसकी भनक लगी, इसे ढहाए जाने की तैयारी कर ली गई थी मगर शहर की जनता ने नेकचंद का साथ दिया तो तत्कालीन मुख्य प्रशासक एमएस रंधावा ने इसे कलात्मकता के साथ आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी.

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1965 में इसका पहला फेज तैयार हुआ और 1976 में यह आमजन के लिए खुल गया. 1983 में इसका दूसरा फेज भी बनकर तैयार हो गया. 1984 में नेकचंद सैनी को इस अनूठी रचनात्मकता के लिए पद्मश्री से नवाजा गया. 2003 में इसका तीसरा फेज तैयार हुआ. रॉक गार्डन देश-विदेश के सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है. 

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रॉक गार्डन असल में स्कल्पचर गार्डन है. यह बेकार पड़े पत्थरों, टॉयलेट सीट, टाइल्स, चूड़ियों, कांच और अन्य चीजों का एक खूबसूरत समागम है. 40 एकड़ में फैला यह गार्डन शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाता है.

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मैनमेड झील सुखना के साथ ही यह स्थित है. जिसकी खूबी कूड़ा, कर्कट, प्लास्टिक की बोतलें और अन्य कबाड़ का वेस्ट मैनेजमेंट का बेहतरीन नमूना है. रॉक गार्डन में देश विदेश के तमाम बड़ी शख्सियतें आ चुकी हैं. 

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2016 में जब फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने यह गार्डन देखने की इच्छा व्यक्त की तो उनके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे. हालांकि मोदी पंजाब भाजपा के संगठन प्रभारी रहने के दौरान भी यहां कई बार गए थे. इसके अंदर कलाकृतियों के साथ ही सुंदर झरने, नहर, झूले और प्राकृतिक वातावरण में रेस्टोरेंट, हाट-बाजार देखने को मिलता है.

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नेकचंद ने 1997 में नेकचंद फाउंडेशन बनाकर उसके माध्यम से इसका प्रबंधन किया, जिसमें चंडीगढ़ प्रशासन सहयोग देता है. नेकचंद 90 साल की उम्र में इसे देश को सौंपकर चले गए मगर उनकी यादें सदैव ताजा रहेंगी.

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