नई दिल्ली : अपने 65 साल के इतिहास में 200 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बारह पंच-वर्षीय और छह सालाना योजनाएं शुरू करने वाला भारत का योजना आयोग अब खुद इतिहास में सिमटने जा रहा है। सरकार ने इसे खत्म करने की धोषणा कर दी है और इसकी जगह पर नए साल से एक नई आधुनिक संस्था के गठन की योजना है।


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योजना आयोग के रूप में चर्चित यह संस्थान मार्च 1950 में एक साधारण सरकारी प्रस्ताव के जरिए गठित की गयी। इसने कई राजनीति एवं आर्थिक उतार-चढ़ाव देखे तथा कई बार विवादों का केंद्र भी रही। गरीबी के आकलन, खुद की इमारत में शौचालय मरम्मत पर मोटे खर्च व पिछले उपाध्यक्ष की विदेश यात्राओं के खर्च को लेकर इससे जुड़ी कुछ ऐसी चर्चाएं हैं जो आने वाले समय में भी याद की जा सकती हैं। राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर भारी टकराव के साथ 2014 में हुए आम चुनाव के निर्याणक जनादेश ने मानों योजना आयोग की भूमिका की आखिरी इबारत लिख दी।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल अगस्त में अपने पहले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में घोषणा की कि आयोग की जगह पर नए संस्थान का गठन किया जाएगा। ऐसी अटकलें हैं कि नए संस्थान के नाम और ढांचे का खुलासा अगले महीने गणतंत्र दिवस को पर किया जा सकता है। संसद भवन से कुछ ही इमारतों के फासले पर खड़े योजना भवन में इस समय सारा काम प्रस्तावित नए संस्थान की स्थापना के परामर्श और प्रक्रियाओं के इर्द-गिर्द घूम रहा है जिसे सरकार ‘सहयोगपूर्ण संघवाद’ के प्रतीक और अधिक व्यावहारिक एवं समसामयिक आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त निकाय के रूप में खड़ा करना चाहती है।