Chola dynasty: तमिल फिल्म पोन्नियिन सेलवन या PS-1 ने 30 सितंबर को रिलीज होने के बाद से दुनिया भर में लगभग 250 करोड़ रुपये की कमाई की है. यह फिल्म चोल वंश पर आधारित है, जिसमें 10वीं शताब्दी के साम्राज्य के बारे में नए सिरे से दिखाया गया है. चोल वंश साम्राज्य का केंद्र तमिलनाडु था. इसके बारे में सबसे पहले लेखक कल्कि कृष्णमूर्ति ने 1950 के दशक की शुरुआत में एक साप्ताहिक पत्रिका में लिखा था. इसके बाद इसे 'पोन्नियिन सेलवन' नामक उपन्यास में संकलित किया गया, जिस पर यह फिल्म बनी है. इसका दूसरा भाग 2023 में रिलीज होने वाला है.


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राजा विजयलय ने रखी नींव


चोल साम्राज्य अभी के तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था. इन्होंने 9वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान राज किया था. राजवंश की स्थापना राजा विजयलय ने की थी. विजयालय ने एक ऐसे राजवंश की नींव रखी, जिसने लंबे समय तक दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से पर शासन किया. चोल वंश की सबसे बड़ी उपलब्धी इसकी नौसैनिक शक्ति थी, जो मलेशिया और इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीपों तक जाने में सक्षम थी. इस साम्राज्य का ऐसा वर्चस्व था कि बंगाल की खाड़ी कुछ समय के लिए 'चोल झील' कहलाने लगी थी.


नौसैनिक अभियान


द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, चोलों के व्यापारी समूहों के साथ मजबूत संबंध थे. उनके सहयोग से ही चोलों ने प्रभावशाली नौसैनिक अभियान चलाए. चोलों द्वारा निर्मित तंजावुर का भव्य बृहदेश्वर मंदिर उस काल में भारत की सबसे बड़ी इमारत थी. इसके अतिरिक्त, प्रसिद्ध कांस्य नटराज की मूर्तियों सहित चोल राजाओं और रानियों द्वारा कलाकृतियों और मूर्तियों को कमीशन किया गया था. इससे पहले राष्ट्रकूटों ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कैलासनाथ मंदिर का निर्माण किया था.


नरसंहार


भले ही चोलों ने भारतीय इतिहास में एक नए युग की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उनके शासन की बेहतर तस्वीर के लिए उनकी उपलब्धियों और विफलताओं दोनों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.
जब 1044 में चोल राजा राजधिराज सत्ता में आए तो वे पांडियन और केरल के राजाओं को वश में करने में सक्षम थे. चोल शासकों ने कई शहरों को लूटा और ब्राह्मणों और बच्चों समेत कई लोगों का नरसंहार किया.


अनुराधापुर को किया नष्ट


चोलों ने श्रीलंका के शासकों की प्राचीन राजधानी अनुराधापुर को नष्ट कर दिया. वे चोल इतिहास में इन्हें काला दाग कहते हैं. इस अवधि के राजनीतिक माहौल के साथ चोलों के लिए ऐसी हिंसा अद्वितीय नहीं थी. 



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