कब और कहां होंगे श्रीराधा के दर्शन?
क्या कलियुग में भी राधा-कृष्ण के दर्शन हो सकते हैं? अक्सर कृष्ण भक्तों के मन में ऐसे प्रश्न उठते हैं। लेकिन इसका उत्तर मिलता है ब्रज धाम में जाकर। यहीं पर राधा कुंड नाम का स्थान है जहां आप राधा जी के दर्शन कर सकते हैं। राधा जी स्वयं आकर भक्तों को दर्शन देती हैं। बस इसके लिए आपको राधा कुंड में खड़े होकर, राधा कृपा कटाक्ष स्रोत का पाठ करना होगा।
दिल्ली: क्या कलियुग में भी राधा-कृष्ण के दर्शन हो सकते हैं? अक्सर कृष्ण भक्तों के मन में ऐसे प्रश्न उठते हैं। लेकिन इसका उत्तर मिलता है ब्रज धाम में जाकर। यहीं पर राधा कुंड नाम का स्थान है जहां आप राधा जी के दर्शन कर सकते हैं। राधा जी स्वयं आकर भक्तों को दर्शन देती हैं। बस इसके लिए आपको राधा कुंड में खड़े होकर, राधा कृपा कटाक्ष स्रोत का पाठ करना होगा।
राधा कृपा कटाक्ष शिुव की रचना
श्री राधा जी की स्तुति श्री राधा कृपा कटाक्ष से की जाती है। इसे भगवान शिव ने राधा जी को प्रसन्न करने के लिये, पार्वती जी को सुनाया था। 4-4 पंक्तियों के 13 अंतरों और 2-2 पंक्तियों के 6 श्लोकों में राधा जी की स्तुति में, उनके श्रृंगार,रूप और करूणा का वर्णन है। इसमें उनसे प्रश्न कर्ता बार-बार पूछता है कि राधा रानी जी अपने भक्त पर कब कृपा करेंगी? वृंदावन और ब्रज के सभी मंदिरों में, इसी स्रोत से राधा-कृष्ण की आराधना की जाती है। कहते हैं कि पूर्णिमा, अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी को राधा कृपा कटाक्ष स्रोत के पाठ से सभी सांसारिक इच्छायें पूरी होती हैं। वहीं राधाकुंड के जल में खड़े होकर, 100 बार राधा कृपा कटाक्ष पढ़ने से राधा जी प्रसन्न होकर स्वयं दर्शन देने आती हैं। कहते हैं कि राधा जी ने अपने कंगन से यह कुंड खोदा था, तभी इसका नाम राधा कुंड पड़ा। राधा कुंड के बगल में ही श्रीकृष्ण कुंड है जो कृष्ण की तरह ही तीन जगह से टेढ़ा है।
राधा कृपा कटाक्ष स्रोत
मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी। व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले। वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां, सुविभ्रम ससम्भ्रम दृगन्तबाणपातनैः। निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥
तड़ित्सुवणचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्ङले। विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलोचने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥
मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमणि्ते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते। अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते, प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी। प्रशस्तमंदहास्यचूणपूणसौख्यसागरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोलते, लतागलास्यलोलनील लोचनावलोकने। ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे, त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिअति। सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण, प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले। करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्, समाजराजहंसवंश निक्वणातिग। विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारूचं कमे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ अनन्तकोटिविष्णुलोक नमपदमजाचिते, हिमादिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे। अपारसिदिवृदिदिग्ध -सत्पदांगुलीनखे, कदा करिष्यसीह मां कृपा -कटाक्ष भाजनम्॥ मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी, त्रिवेदभारतीयश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी। रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी, ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥ इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी, करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्। भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकमनाशनं, लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डलप्रवेशनम्॥