Malpua The Sweet Chapati: अगर आप पुष्कर आए और मालपुएं नहीं खाएं तो क्या पुष्कर आए ? चाशनी से भरे मालपुओं के बारे में सोचते ही मुंह में पानी आना स्वाभाविक है. आमतौर पर सावन में खाए जाने वाले मालपुओं को राजस्थान में अजमेर के पुष्कर में पूरे साल भर बनाया और खाया जाता है. यहां आने वाले विदेश सैलानी मालपुओं को स्वीट चपाती कहते हैं. देसी सैलानी जब पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर में धोक लगाने आते हैं तो पुष्कर के ये चाशनी से लबरेज मालपुए खरीदकर ही अपने साथ जाते हैं. 


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250 साल से भी पुराना है पुष्कर का मालपुआ
पुष्कर में करीब कई सालों से से मालपुए बन रहे हैं. पहले ये महज पुष्कर के तीन चार दुकानों में पीढ़ियों से बनते आ रहे थे लेकिन अब लगभग हर जगह पुष्कर में आपको मालपुआ बनता दिख जाएगा. गरमा गरमा मालपुआ मुंह में जाते ही घुल जाता है और उसकी मिठास लंबे वक्त तक बनी रहती है.



हर दिन सैंकड़ों किलो मालपुआ खा जाते हैं लोग-पु्ष्कर आएं, मालपुएं खाएं, जो मुंह में घुल जाएं
पुष्कर में हरदिन सैंकड़ो किलो मालपुओं की बिक्री होती है. एक किलो में तकरीबन 26-30 मालपुए तोले जाते हैं. खासतौर पर कार्तिक मास, धार्मिक उत्सवों और पुष्कर मेला भरने पर एक दिन पर 1000 किलो मालपुए भी बिक जाते हैं. मालपुआ चूंकि रबड़ी और देशी घी बनता है ऐसे में इसको लंबे वक्त तक रखा जा सकता है और खाया जा सकता है. हलवाइयों के मुताबिक करीब 25 दिन तक मालपुआ खराब नहीं होता.



कैसे बनता है मुलायम मालपुआ
रबड़ी के मालपुओं को दूध और मैदा से बनाया जाता है. सबसे पहले दूध को उबालकर गाढ़ा किया जाता है, 10 किलो दूध को उबाल उबाल कर 4 किलो का कर दिया जाता है. अब दूध रबड़ी बन चुका होता है. इस रबड़ी में मैदा मिलाकर एक घोल बना लिया जाता है और इसी घोल में देशी गर्म घी डालकर जालीदार मालपुआ बनाया जाता है. अच्छी तरह से पक जाने के बाद मालपुआ अब चाशनी में डुब जाता है. चाशनी में केसर और इलायची पहले से डाली गयी होती है जो इस मालपुओं को मीठे के साथ ही एक अलग खुशबू भी देती है.