Bassi Vidhansabha Seat: बस्सी की एसटी की रिजर्व सीट इन दिनों अच्छी खासी चर्चा में है. बस्सी सीट से इस बार कांग्रेस ने रिटायर्ड आईपीएस लक्ष्मण मीणा व भाजपा ने आईएएस रिटायर्ड चंद्रभान मीणा को मैदान में उतारा है. दोनों प्रमुख दलों ने आईएएस व आईपीएस को आमने सामने उतारा. दोनों आपस मे रिश्तेदार भी है. आसपास गांवों में दोनों की अच्छी खासी रिश्तेदारियां है. साथ दोनों के गांव भी आसपास में है. इसका चुनावों में अच्छा खासा असर होता दिखेगा. जैसे-जैसे चुनावों की तारीख नजदीया करीब आएंगी वैसे ही दोनों प्रत्यासी अपने अपने रिश्तेदारों व मिलने वाला को मनाने व रिझाने की कोशिश करेंगे. क्षेत्र में मुकाबला बड़ा ही रोचक होने वाला दिखाई दे रहा है. आखिर अब बस्सी की जनता दोनों में किसके सिर पर जीत का सेहरा बांधेगी यह तो चुनाव रिजल्ट के बाद ही तय हो पायेगा.


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जानकारी के अनुसार तूंगा क्षेत्र के सिया का बास चंद्रमोहन का गांव है. वहीं जयराम का बास लक्ष्मण मीणा का है. लक्ष्मण मीणा वीआरएस लेकर 2009 में राजनीति में उतरे थे वही चंद्रमोहन 2014 में रिटायर हुए थे जिसके बाद राजे सरकार में उन्हें 2015-19 तक सूचना आयुक्त बनाया गया. चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा ज्वॉइन भी करवाई गई थी. चंद्रमोहन- 1980 व लक्ष्मण 1982 बैच के अधिकारी रहे है. जालोर में 1988-90 तक चंद्रमोहन कलेक्टर रहे थे तब वहा लक्ष्मण एसपी थे. उसके बाद बीकानेर में 2000- से 02 तक डीसी रहे थे.


एसटी रिजर्व बस्सी की सीट अच्छी खासी सियासत के चर्चे मे है दोनों प्रत्यासी नौकरशाही में साथ रहे और अब राजनैति मे चर्चा का विषय बना हुआ है. यह पहला मौका होगा जब दोनों प्रमुख दलों से पूर्व आईएएस-आईपीएस आमने सामने उतारे है. दोनों आपस में रिस्तेदार भी हैं. दोनों के गांव आस-पास हैं. में लक्ष्मण बड़े हैं लेकिन दोनों ही स्कूल व कॉलेज मे साथ पढ़े हैं.


वोटर्स का मिजाज अलग रहा, पार्टी से ज्यादा निर्दलीयों पर रहा भरोसा


बस्सी के मतदाताओं का मिजाज सियासी दलों के भी समझ से बाहर है. माना जाता है कि यहाँ के वोटर अपना उम्मीदवार खुद चुनते हैं. पिछले तीन चुनावों का यही ट्रैक है. 2008 व 2013 में यहाँ से निर्दलीय अंजू धानका जीतीं, पिछला चुनाव लक्ष्मण भी निर्दलीय के तौर पर ही जीते. पिछले चुनाव को छोड़ दें तो 2008 व 2003 में यहां भाजपा व कांग्रेस निकटतम प्रतिद्वंद्वी भी नहीं रह सके. दूसरे नंबर पर भी निर्दलीय प्रत्याशी रहे. इससे पहले 1993 से 2003 तक कन्हैयालाल भाजपा के टिकट पर जीते. हालांकि 1990 में उनकी इस सीट पर एंट्री निर्दलीय जीतने से ही हुई थी. उससे पहले दो चुनाव में यहां से कांग्रेस के जगदीश तिवारी विधायक चुने गए.


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