Rajasthan: चूरू की इस सीट पर फंसा BJP का पेंच! कांग्रेस भी चेहरा बदलने की तैयारी में
राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव है और पूरी तरह से तमाम पार्टिया चुनावी रण में उतर चुकी है वही जनता को अपने अपने तरीक़े से मुद्दों के साथ अब वादे करने का भी सिलसिला शुरू हो चुका है. रतनगढ़ को गीताप्रेस के संस्थापक भाईजी हनुमानप्रसाद पोद्दार की भूमि के नाम से जाना जा
Ratangarh Vidhansabha Seat: राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव है और पूरी तरह से तमाम पार्टिया चुनावी रण में उतर चुकी है वही जनता को अपने अपने तरीक़े से मुद्दों के साथ अब वादे करने का भी सिलसिला शुरू हो चुका है. रतनगढ़ को गीताप्रेस के संस्थापक भाईजी हनुमानप्रसाद पोद्दार की भूमि के नाम से जाना जाता है. रतनगढ़ की स्थापना बीकानेर रियासत के महाराज श्री सूरतसिंह द्वारा अपने पुत्र श्री रतनसिंह के नाम वर्ष 1798 में की गई. नये शहर की स्थापना हेतु कोलासर एवं राजिया नाम की दो छोटी ढाणियों को चुना गया.
विधानसभा - रतनगढ़
वोटर - 2,71,150/-
जातीय समीकरण - ब्राह्मण, जाट, ओबीसी , दलित, राजपूत व मुस्लिम
विधायक -अभिनेश महर्षि - ( बीजेपी)
रतनगढ़ का जातिय समिकरण
रतनगढ़ में पिछले नगर पालिका चुनाव में 35 वार्ड हुआ करते थे जो इस बार 45 किए जा चुके है. उपखंड क्षेत्र में ब्राह्मण, दलित, मूल ओबीसी, जाट, राजपूत व मुस्लिम व अन्य सभी जाती के लोग निवास करते है. रतनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में तीन नगरपालिका क्रमशः रतनगढ़, राजलदेसर व छापर है. इसके विधानसभा क्षेत्र में एक डीएसपी कार्यालय सहित तीन पुलिस थाने है.
रतनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में सुजानगढ तहसील की एक नगरपालिका व 14 पंचायतों के 80 हजार से भी अधिक मतदाता जुड़े होने के कारण रतनगढ़ की राजनीति में खासा प्रभाव है. रतनगढ़ विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण बाहुल्य होने के कारण भाजपा व कांग्रेस ब्राह्मण चेहरे पर ही दांव खेलती है. लेकिन जाट प्रत्याशी बागी होने होने पर कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ता है. चुनावों में मूल ओबीसी, एससी, अल्पसंख्यक व राजपूत मतदाता चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं. यहाँ पर लगातार 25वर्षो से कांग्रेस पार्टी अपना विधायक नही बना सकी है. जिसकी बड़ी वजह रही है अपनों के द्वारा ही बगावत करना.
2023 में क्या बन रहे हैं समिकरण
रतनगढ़ विधानसभा भाजपा की परंपरागत सीट रही है, यह भाजपा के लिए अभेद्य किला मानी जाती है. लेकिन इसबार विधानसभा चुनाव में बदलते समीकरण भाजपा के लिए चिंताजनक है. जिसका मुख्य कारण वर्तमान विधायक की क्षेत्र में लगातार निष्क्रियता जिसके चलते स्थानीय पंचायत व निकाय चुनावो में भाजपा को बड़ी हार का सामना करना पड़ा. परिणामस्वरूप पंचायत समिति व दो नगरपालिका में कांग्रेस का बोर्ड बना. इसके बाद भाजपा अंतर्कलह की शिकार होती जा रही है.
भाजपा के वर्तमान विधायक की कांग्रेस पृष्ठ भूमि होने के कारण व उनकी कार्यशैली नाराज होकर भाजपा का एक बड़ा खेमा टूटकर अलग हो गया है. नाराज मूल भाजपाइयों ने संगठित होकर विधायक के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है तथा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से टिकट बदलकर मूल भाजपा के व्यक्ति को टिकट देने की मांग की है . ऐसी स्थिति में पहली बार यहाँ करीब एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में अपनी दावेदारी जता रहे हैं.
इनके अलावा पिछले विधानसभा चुनाव में विधायक द्वारा जनता से किये वादों पर खरा नहीं उतरने पर ग्रामीण व शहरी क्षेत्र की जनता में नाराजगी व्याप्त है. जिसके कारण इस विधानसभा चुनाव में भाजपा बैकफुट पर दिखाई दे रही है. पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी अभिनेश महर्षि व कांग्रेस से भंवरलाल पुजारी मैदान में थे, लेकिन कांग्रेस बागी पूसाराम गोदारा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा, जिसके कारण कॉंग्रेस के समीकरण बिगड़ गए तथा इसका लाभ भाजपा उमीदवार को मिल गया. जिसके कारण भाजपा बड़े अंतराल से विजय रही.
भाजपा किस पर खेलेगी दांव
वहीं भाजपा में इसबार पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा, भाजपा निवर्तमान जिलाध्यक्ष धर्मवीर पुजारी, पूर्व उपमुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा के पुत्र सुरेंद्र भाभड़ा, पूर्व पालिकाध्यक्ष शिवभगवान कम्मा, युवा नेता पवन सिंह राठौड़ सहित दर्जन भर भाजपाई अपनी दावेदारी जता रहे हैं. गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में लगातार तीन बार जीते हुए पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा का टिकट काटकर कांग्रेस को छोड़कर आये अभिनेश महर्षि को भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित किया था.
इस बार रतनगढ़ के विधानसभा चुनाव रोचक स्थिति में आ गया है. एक तरफ कांग्रेस गहलोत सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों व स्थानीय चुनावों में जनता से मिले समर्थन के अधार पर जीत का दावा कर रही है. वही दूसरी ओर अंतर्कलह से जूझती हुई भाजपा रतनगढ़ को अपनी परंपरागत सीट मानते हुए जीत का दावा कर रही है. दोनों प्रमुख पार्टियों में अंर्तकलह जगजाहिर है. ऐसे में भाजपा व कांग्रेस के लिए यह सीट निकालना प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी अगर ब्राह्मण को प्रत्याशी बनाती है तो जीत के आसार ज्यादा रहते हैं. कांग्रेस में लगातार हार का बड़ा कारण जाट मतदाताओं द्वारा अपने उम्मीदवार को खड़ा करना तथा कांग्रेस का जाट प्रत्याशी होने पर अन्य जातीय मतदाताओं का धुर्वीकरण हो जाना हार का बड़ा कारण है.
वहीं कांग्रेस में ब्राह्मण चेहरे के रूप में पिछली बार प्रत्याशी रहे भंवरलाल पुजारी अपनी सक्रियता व गहलोत गुट से होने पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं. वही पूर्व विधायक पंडित जयदेव प्रसाद इंदौरिया के पुत्र रमेशचंद्र इंदौरिया भी अपनी सशक्त दावेदारी जता रहे हैं.
कांग्रेस किस पर खेलेगी दांव
वहीं कांग्रेस में जाट चेहरे पर पिछली बार के बागी रहे पूसाराम गोदारा भी अपनी टिकट को लेकर कसमकस में है. पुसाराम गोदारा पर स्वजातीय लोगों को बढ़ावा देने के कारण अन्य जातियों के लोग उनसे दूरी बना कर रखते हैं. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में प्रधान प्रतिनिधि इन्द्राज खिचड़ का कद बढाकर जिलाध्यक्ष बनाये जाने पर क्षेत्र के लोग इनकी टिकट तय मान रहे हैं.
समस्यांए:
रतनगढ में मूलभूत सुविधाओं, जिसमें पानी बिजली व सड़क के अलावा शहर के मुख्य बाजारों में बरसाती पानी एकत्रित होना, जिससे व्यापारियों को हर वर्ष लाखों का नुकसान उठाना पड़ रहा है, वही दूसरी सबसे बड़ी समस्या थी परमाणा ताल जो आज भी शहर के लिए नासूर बना हुआ है. शहर के राजकीय चिकित्सालय के आगे बरसाती पानी एकत्रित रहने से मरीजों व परिजनों को तो परेशानी होती ही है, चिकित्सालय के बाहर की ओर बैठे व्यापरियों को भी 10 से 15 दिन तक लगातार दुकाने बन्द रखने पर मजबूर होना पड़ता है. यहां पर थोड़ी सी भी बरसात में पानी भरजानें के कारण रेलवे स्टेशन का मुख्य मार्ग, यही पर स्थित दो बड़े निजी विद्यालय व चिकित्सालय में आने वाले लोगो को परेशानी उठानी पड़ती है. वही शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में क्षतिग्रस्त सड़के परेशानी का सबब बनी हुई है, जिससे विधानसभा क्षेत्र के लोग परेशान हैं.
वहीं शहर को दो भागों में बांटने वाली रेलवे लाइन है रतनगढ रेलवे लाइन के उस तरफ और इस तरफ दो भागों में बंटा है जिसके लिए रेलवे गेट का फाटक दिन में अधिकतर समय बंद ही रहता है. इसके लिए यहां पर अंडरब्रिज भी बना हुआ है लेकिन बरसात के समय पानी भर जाने के कारण यह रास्ता बंद हो जाता है, जिससे वाहन या पैदल व्यक्ति भी नही निकल सकता, ओर से फाटक पर खड़े रहक़र खुलने का इंतजार करना पड़ता है. रतनगढ़ का चिकित्सालय जिला अस्पताल बन चुका है, लेकिन सुविधाओं का अभाव है तथा चिकित्सकों की भी कमी होने के कारण जनता को इसका लाभ नही मिल रहा है. यहां सरकार द्वारा कोई घोषणा होती है तो भाजपा के विधायक सोशल मीडिया के द्वारा स्वयं श्रेय लेते हैं, जो काम नही करवा पाते उसके लिए कांग्रेस सरकार को कोसते नजर आते हैं, जनता के काम करवाने में नाकाम होने पर सरकार हमारी नही होने का बोलकर पला झाड़ लेते है.
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