Makrana Vidhansabha Seat : सफेद मार्बल के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध मकराना की सियासत बेहद दिलचस्प रही है. इस सीट के पहले नागौर और अब डीडवाना-कुचामन जिले में आने से 2023 के विधानसभा चुनाव बेहद ही खास रहने वाले है. यह चुनाव इसलिए भी खास हो सकता है क्योंकि यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है. हालांकि हर चुनाव में इस सीट पर ध्रुवीकरण की सियासत होती आई है और हर बार अलग चेहरा विधानसभा पहुंचता है.


खासियत


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मकराना विधानसभा सीट पर अब तक कई बार बेहद ही रोमांचक मुकाबला देखने को मिल चुके हैं. 1993 और 1990 में यहां चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिला था. वहीं इस सीट पर अब तक कोई भी उम्मीदवार लगाता दो बार जीतने में कामयाब नहीं रहा है. हालांकि पार्टियों ने कई बार अपने उम्मीदवारों को रिपीट किया लेकिन इसके बावजूद मकराना की जनता ने हर बार अलग प्रत्याशी को चुनाव जिताया.


2023 का विधानसभा चुनाव


2023 के विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है. यहां से मौजूदा वक्त में भाजपा के रुपाराम विधायक है तो वहीं कांग्रेस के टिकट पर पिछले दो बार से लगातार जाकिर हुसैन गैसावत चुनाव हार रहे हैं, लिहाजा ऐसे में कांग्रेस इस बार नया चेहरा ला सकती है. वहीं 2013 से 2018 के बीच भाजपा के टिकट पर विधायक रह चुके श्री राम भी ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी श्री राम को टिकट देती है या रुपाराम को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतारती है. वहीं हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी मौके की तलाश में है.


मकराना विधानसभा चुनाव का इतिहास


पहला चुनाव 1967


1967 के पहले विधानसभा चुनाव में मकराना से कांग्रेस ने जी मुस्तफा को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं स्वराज पार्टी की ओर से वी. सिंह ने ताल ठोकी. वहीं आर. लाल ने निर्दलीय मैदान में उतरकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया. इस चुनाव में जहां निर्दलीय उम्मीदवार और आर लाल के पक्ष में 10,290 मतदाताओं ने वोट किया तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार जी मुस्तफा को 13,188 लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ. जबकि सबसे अधिक 37% वोटों के साथ 15,105 मतदाताओं ने स्वराज पार्टी के वी. सिंह को अपना समर्थन देकर जिताया. इसके साथ ही वी सिंह मकराना के पहले विधायक चुने गए.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में स्वराज पार्टी ने अपना उम्मीदवार बदला और मोइनुद्दीन को टिकट देकर चुनावी जंग में भेजा तो वहीं कांग्रेस ने गौरी पूनिया पर दांव खेला. इस चुनाव में स्वराज पार्टी के मोइनुद्दीन को 12,493 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस के पुनिया को 19,593 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इसके साथ ही गौरी पूनिया की जीत हुई.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1977


1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार फिर बदला और गौरी पुनिया की जगह अब्दुल अजीज को टिकट दिया. इस चुनाव में उन्हें जनता पार्टी के कल्याण सिंह से चुनौती मिली. जनता ने कल्याण सिंह का 24,409 मत दिए तो वहीं कांग्रेस के अब्दुल अजीज को 28,529 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ और उसके साथ ही अब्दुल अजीज यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहे और राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


चौथा विधानसभा चुनाव 1980


1980 में कांग्रेस भारी गुटबाजी से जूझ रही थी. यही वजह रही कि इस चुनाव में कांग्रेस के दो धड़ो ने ताल ठोकी. कांग्रेस (आई) ने अब्दुल रहमान चौधरी को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस (यू) ने अब्दुल अजीज को चुनावी मैदान में उतारा. यह चुनाव बेहद रोमांचक रहा और बेहद ही कांटे की टक्कर वाला भी रहा. चुनाव में अब्दुल अजीज को 18,148 वोट मिले तो वहीं बेहद कम अंतर के साथ 18,181 वोटों के साथ अब्दुल रहमान की जीत हुई और वह विधानसभा पहुंचे.


पांचवा विधानसभा चुनाव 1985


1985 के विधानसभा चुनाव में अब्दुल अज़ीज लोक दल पार्टी के उम्मीदवार बने तो वहीं कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार उतारते हुए गौरी को टिकट दिया. इस चुनाव में अब्दुल अजीज की एक बार फिर जीत हुई और उन्हें 39,996 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस का दांव सफल हुआ और गौरी को महज 29,154 मतदाताओं का ही समर्थन प्राप्त हो सका.


छठा विधानसभा चुनाव 1990


1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से बिरदा राम चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं जनता दल ने मग सिंह को चुनावी मैदान में उतारा जबकि दो निर्दलीय उम्मीदवार भंवरलाल बोरावर और अब्दुल रहमान ने इस चुनाव को चतुष्कोणीय बना दिया. इस चुनाव में जनता दल के मग सिंह को 16,934 वोट मिले तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल रहमान को 19,669 वोट प्राप्त हुए जबकि दूसरे निर्दलीय उम्मीदवार भंवरलाल बोरावर को 21,684 वोट मिले. इस बेहद ही रोमांचक मुकाबले में कांग्रेस के बिरदा राम 22,570 वोटों के साथ जीते.


सातवां विधानसभा चुनाव 1993


1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से अब्दुल अजीज को ही टिकट दिया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर रुपाराम चुनावी मैदान में उतरे जबकि बीजेपी ने शिवदान सिंह को टिकट दिया. इस चुनाव में भंवरलाल एक बार फिर चुनावी मैदान में कूद पड़े और मुकाबले को फिर से चतुष्कोणीय बना दिया. इस चुनाव में कांग्रेस के अब्दुल अजीज 25,459 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे तो वहीं निर्दलीय उम्मीदवार रुपाराम की 30,400 मतों के साथ जीत हुई. जबकि बीजेपी उम्मीदवार शैतान सिंह और निर्दलीय उम्मीदवार भंवरलाल तीसरे और चौथे स्थान पर रहे. हालांकि इनका वोट प्रतिशत 20 फ़ीसदी से ज़्यादा रहा.



आठवां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से अब्दुल अजीज को ही टिकट दिया, जबकि पिछले चुनाव में निर्दलीय के तौर पर ताल ठोकने वाले रुपाराम अबकी बार बीजेपी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में 24,912 मतदाताओं का साथ मिला तो वहीं अब्दुल अजीज को 44,863 वोट मिले. इसके साथ ही अब्दुल 1995 के बाद 1988 में एक बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए. वहीं रुपाराम को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा.


नवा विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने रूपा राम की जगह भंवर लाल राजपुरोहित को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं निर्दलीय के तौर पर श्री राम ने ताल ठोकी. जबकि कांग्रेस ने अब्दुल रहमान चौधरी पर भरोसा जताते हुए उन्हें टिकट दिया. यह चुनाव बेहद ही कांटे की टक्कर भरा रहा. इस चुनाव में बीजेपी के टिकट पर पिछला चुनाव लड़ चुके रुपाराम ने निर्दलीय ही ताल ठोकी. हालांकि उनकी जमानत जब्त हो गई और उन्हें सिर्फ 897 वोट मिले. जबकि कांग्रेस उम्मीदवार अब्दुल रहमान चौधरी को 40,972 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ. जबकि वहीं निर्दलीय के तौर पर ताल ठोकने वाले श्री राम को 42,160 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इस चुनाव के हीरो बीजेपी उम्मीदवार भंवर लाल राजपुरोहित साबित हुए और उन्हें 45,014 मतदाताओं का साथ मिला और इसके साथ ही पहला बीजेपी उम्मीदवार विधायक बनके मकराना से राजस्थान विधानसभा पहुंचा.


दसवां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भंवर लाल राजपुरोहित का टिकट काट दिया और उनकी जगह श्री राम को टिकट दिया. जबकि कांग्रेस ने जाकिर हुसैन गेसावत को चुनावी मैदान में उतारा. इस क्षेत्र में पिछले 18 साल से विधायकी से दूर कांग्रेस को जीत मिली और उम्मीदवार जाकिर हुसैन विजयी हुए. बीजेपी उम्मीदवार श्रीराम को 33,151 मतों के बावजूद हार का सामना करना पड़ा. जाकिर हुसैन को 42,906 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया और विधायक चुना.


11वां विधानसभा चुनाव 2013


2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से श्री राम को ही चुनावी मैदान में उतारा जबकि कांग्रेस की ओर से एक बार फिर जाकिर हुसैन गेसावत चुनावी मैदान में ताल ठोकने उतरे यानी मुकाबला फिर से जाकिर हुसैन वर्सेस श्रीराम था. इस चुनाव में श्रीराम की 74,274 वोटों से जीत हुई जबकि जाकिर हुसैन को 33,151 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ और इसके साथ ही जाकिर हुसैन गेसावत को शिकस्त मिली. 


12वां विधानसभा चुनाव 2018


2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पिछले चुनाव में जीत मिलने के बावजूद रणनीति बदली और अपने पुराने उम्मीदवार रहे रुपाराम को आगे करते हुए चुनावी जंग में भेजा जबकि कांग्रेस ने फिर से जाकिर हुसैन को अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में जाकिर हुसैन और रुपाराम के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली. इसके साथ ही रुपाराम 87,201 मतों के साथ चुनाव जीतने में कामयाब हुए तो कांग्रेस के जाकिर हुसैन को 85,413 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ और इसी के साथ ही इस चुनाव में कांग्रेस के जाकिर हुसैन को फिर हार का सामना करना पड़ा और रुपाराम मकराना विधायक के रुप में राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


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