Rajasthan Election : भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी वाली पश्चिमी राजस्थान की वो सीट, जहां कांग्रेस को निर्दलीय से ज्यादा मिलती है चुनौती
Barmer Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान की बाड़मेर विधानसभा सीट पर पिछले 15 सालों से कांग्रेस के मेवाराम जैन का कब्जा है, 2018 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी उन्हें नहीं हरा पाए, पढ़ें इस सीट का पूरा इतिहास
Barmer Vidhansabha Seat : पश्चिमी राजस्थान की सबसे हॉट सीट यानी बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. जहां पिछले 15 सालों से भाजपा लगातार कांग्रेस का वर्चस्व तोड़ने में जुटी हुई है तो वहीं पिछले 71 सालों में कांग्रेस ने 7 बार अपना परचम लहराया है. साल 2018 में बाड़मेर विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला था. कांग्रेस ने अपने दो बार के विधायक रहे मेवाराम चौधरी पर विश्वास जताते हुए उन्हें फिर चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं सामने चुनौती देने के लिए भाजपा की ओर से सांसद रहे कर्नल सोनाराम चौधरी को प्रत्याशी बनाया गया था, जबकि निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. राहुल बामणिया भी मजबूत दावेदारी ठोक रहे थे, हालांकि इस चुनाव में मेवाराम चौधरी ने कर्नल सोनाराम चौधरी को रिकॉर्ड मतों से शिकस्त दी थी.
दिलचस्प तथ्य
बाड़मेर विधानसभा सीट 1951 से ही अस्तित्व में है, यहां अब तक हुए 15 विधानसभा चुनाव में से 7 बार कांग्रेस ने विजय पताका लहराया है, तो वहीं भाजपा को अब तक सिर्फ एक बार कामयाबी हाथ लगी है, जबकि रामराज्य परिषद और निर्दलीय ने दो बार चुनाव जीता है. वहीं एक बार लोकदल और जनता दल ने जीत हासिल की.
जातीय समीकरण
बाड़मेर विधानसभा सीट सामान्य कोटे की सीट है. यहां पर जाटों और मुस्लिमों का भी प्रभाव है. हालांकि यहां पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का वोट बैंक भी बड़ा असर रखता है.
2018 में क्या हुआ
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो चला था, कांग्रेस की ओर से मेवाराम जैन, भाजपा की ओर से कर्नल सोनाराम चौधरी और निर्दलीय के तौर पर डॉ राहुल बामणिया ताल ठोक रहे थे. तीनों ही नेताओं का अपना-अलग अलग वर्चस्व था. जहां मेवाराम जैन को जनता का नेता माना जाता है, तो वहीं कर्नल सोनाराम चौधरी के लिए कहा गया कि उन्होंने जिद करके बाड़मेर की टिकट ली, क्योंकि वह मेवाराम जैन को हराना चाहते थे, जबकि अनुसूचित जाति जनजाति मोर्चे ने राहुल बामणिया को अपना उम्मीदवार बनाया. तीनों नेताओं का मकसद साफ था कि जिला मुख्यालय जीतेंगे तो पूरे इलाके में उसका ठरका रहेगा. वहीं कहा जाता है कि कांग्रेस का वोट काटने के लिए 2018 के विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने भी अपनी पार्टी से एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था, ताकि कांग्रेस के अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके. हालांकि सारे समीकरण फेल हो गए और मेवाराम जैन लगातार तीसरी बार बाड़मेर सीट से विजयी हुए.
बाड़मेर विधानसभा का इतिहास
पहला विधानसभा चुनाव 1951
बाड़मेर की विधानसभा सीट 1951 से ही अस्तित्व में है. यहां तनसिंह ने राम राज्य परिषद के बैनर तले पहला चुनाव जीता था. तन सिंह के खाते में 8327 वोट आए थे, जबकि उनके विरोधी कांग्रेस उम्मीदवार वृद्धिचंद जैन को महज 6672 वोट मिले थे.
दूसरे विधानसभा चुनाव 1957
दूसरे विधानसभा चुनाव में भी तन सिंह ने रामराज्य परिषद के बैनर तले चुनाव लड़ा. उनको कांग्रेस की ओर से महिला उम्मीदवार रुकमणी देवी ने चुनौती दी. हालांकि रुकमणी देवी को भी हार का सामना करना पड़ा और तन सिंह ने पिछले चुनाव के मुकाबले बड़े अंतर से जीत हासिल की.
तीसरा विधानसभा चुनाव 1962
इस चुनाव में कांग्रेस ने वृद्धिचंद जैन को अपना उम्मीदवार बनाया. उनके सामने निर्दलीय उम्मीदवार उमेद सिंह ने चुनौती पेश की. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार उमेद सिंह विजय हुए उमेद सिंह को 13254 वोट मिले तो वही वृद्धि चंद को 11936 वोटों से संतुष्ट होना पड़ा.
चौथा विधानसभा चुनाव 1967
हालांकि 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर वृद्धि चंद जैन पर भरोसा जताया और उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में वृद्धि चंद जैन ने एक बड़े मार्जिन 16408 से जीत हासिल करते हुए मौजूदा विधायक उमेद सिंह को शिकस्त दी.
पांचवा और छठा विधानसभा चुनाव 1972 और 1977
1967 के विधानसभा चुनाव में बड़े अंतर से जीत हासिल करने वाले कांग्रेस के वृद्धि चंद जैन ने 1972 और 1977 में भी बड़े मार्जिन से जीत हासिल करते हुए उमेद सिंह को चुनाव हराया.
सातवा विधानसभा चुनाव 1980
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के देवदत्त तिवारी के सामने भाजपा के रतनलाल उम्मीदवार थे, इस चुनाव में देवदत्त तिवारी ने जीत हासिल की. उन्हें 23320 मत मिले तो वहीं भाजपा के रतनलाल को 15682 वोट मिले.
आठवां विधानसभा चुनाव 1985
ये विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प रहा इस चुनाव में कांग्रेस को लंबे अंतराल के बाद हार का मुंह देखना पड़ा कांग्रेस की ओर से रिखबदास जैन उम्मीदवार थे तो वहीं उन्हें सामने लोकदल की ओर से गंगाराम चौधरी ने चुनौती दी. गंगाराम चौधरी ने 3416 मतों के अंतर से जीत हासिल की.
नवां विधानसभा चुनाव 1990
मौजूदा लोक दल से विधायक गंगाराम चौधरी ने इस चुनाव में जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोकी तो वहीं कांग्रेस की ओर से हेमाराम चौधरी ने ताल ठोकी जनता दल के गंगाराम को 34371 वोट मिले तो वही हेमाराम चौधरी को महेश 21363 वोट मिले.
दसवां विधानसभा चुनाव 1993
1993 के विधानसभा चुनाव में गंगाराम चौधरी एक बार फिर चुनावी मैदान में थे उनके सामने एक बार फिर कांग्रेस के मजबूत सिपाही रहे वृद्धि चंद जैन ने ताल ठोकी. हालांकि इस बार गंगाराम चौधरी ना तो लोक दल के उम्मीदवार थे और ना ही जनता दल के उम्मीदवार थे, गंगाराम चौधरी ने इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ा और तकरीबन 3000 मतों से जीत हासिल की.
ग्यारहवां विधानसभा चुनाव 1998
1998 के विधानसभा चुनाव में वृद्धि चंद जैन को एक बार फिर कामयाबी हासिल हुई और उन्होंने रिकॉर्ड मतों से भाजपा के उम्मीदवार तगाराम चौधरी को शिकस्त दी. इस चुनाव में वृद्धि चंद जैन ने 35611 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, ये रिकॉर्ड आज तक कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं तोड़ पाया है.
बारहवां विधानसभा चुनाव 2003
2003 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए इतिहास रचने वाला चुनाव रहा. इस चुनाव में ना सिर्फ भाजपा ने प्रदेश की सत्ता हासिल की, बल्कि बाड़मेर विधानसभा सीट पर पहली बार खाता खोला. इस चुनाव में भाजपा की ओर से उम्मीदवार तागाराम चौधरी के पक्ष में 65770 वोट पड़े तो वहीं वृद्धि चंद जैन के समर्थन में 35257 वोट डले.
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13वां 14वां और 15वां विधानसभा चुनाव 2008, 2013 और 2018
2003 में भाजपा के जीत के बाद 2008 में कांग्रेस उम्मीदवार मेवाराम जैन ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की, जबकि भाजपा उम्मीदवार मृदू रेखा चौधरी को हार का सामना करना पड़ा. वहीं साल 2013 में कांग्रेस विधायक मेवाराम जैन ने जीत हासिल की और भाजपा की उम्मीदवार डॉ प्रियंका चौधरी को शिकस्त दी. इसके बाद साल 2018 में भी मेवाराम चौधरी एक बार फिर विजयी हुए. उन्होंने भाजपा उम्मीदवार और उस वक्त के मौजूदा सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी को करारी शिकस्त दी.
सबसे बड़ी जीत और हार
बाड़मेर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा और सबसे बड़ी जीत वृद्धि चंद जैन ने 1998 में दर्ज की थी, उन्होंने भाजपा उम्मीदवार तगाराम चौधरी को 33,611 मतों से हराया था. वहीं सबसे छोटी हार का सामना भी वृद्धि चंद जैन को ही करना पड़ा था. 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार वृद्धि चंद जैन को निर्दलीय उम्मीदवार उमेद सिंह ने 1318 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी, यह इस सीट पर सबसे छोटे अंतर की जीत थी.
खासियत
सबसे ज्यादा बड़ी जीत और सबसे छोटी हार का रिकार्ड अपने नाम करने वाले वृद्धि चंद जैन बाड़मेर विधानसभा सीट से सबसे ज्यादा बार विधायक चुने गए. वह कुल चार बार बाड़मेर सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे, जबकि तीन बार गंगाराम चौधरी विधायक रहे. सबसे बड़ी खास बात यह रही कि गंगाराम चौधरी ने हर बार अलग-अलग दलों से चुनाव लड़कर जीत हासिल की, तो वहीं वृद्धि चंद जैन हमेशा कांग्रेस के टिकट से ही चुनाव लड़कर जीते.
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