Bangladesh Constitution: शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से बांग्लादेश तेजी के साथ बर्बादी की राह पर चल रहा है. अब खबर आ रही है कि बांग्लादेश के संविधान से 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' जैसे शब्द हटाने की सिफरिश की गई है. इसके अलावा बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान को भी 'राष्ट्रपिता' कहने पर आपत्ति जताई जा रही है.
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Bangladesh Constitution: भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश भी अब बिल्कुल पाकिस्तान की राह पर चल पड़ा है. बांग्लादेश के शीर्ष कानूनी अधिकारी ने संविधान से 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' शब्दों को हटाने का प्रस्ताव दिया है, साथ ही संविधान से बाहर के तरीकों से शासन परिवर्तन के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान भी किया है. नागरिकों के एक समूह द्वारा दाखिल रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में अपने बयान में अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने बुधवार को संविधान के चार सिद्धांतों में से दो 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' को हटाने की मांग की. इसके पीछे देश की आबादी 90 फीसद मुस्लिम होना बताया जा रहा है.
रिट याचिका में शेख हसीना की अवामी लीग सरकार की तरफ से 2011 में किए गए संविधान के 15वें संशोधन की वैधता को चुनौती दी गई थी. जिसमें बांग्लादेश के संस्थापक माने जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान को ‘राष्ट्रपिता’ कहे जाने के संबंध में भी बदलाव करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के निर्विवाद नेता थे लेकिन अवामी लीग ने पार्टी के हित में उनका राजनीतिकरण किया. उन्होंने कहा कि शेख मुजीब के योगदान का सम्मान करना महत्वपूर्ण है लेकिन इसे कानून द्वारा लागू करना विभाजन पैदा करता है.
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हाई कोर्ट की दो जजों (फराह महबूब और देबाशीष रॉय चौधरी) वाली बेंच ने अंतरिम सरकार से इस मामले पर अपना रुख बताने को कहा था. अटॉर्नी जनरल ने अपने कार्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए सरकार के रुख का रुख पेश करते हुए कहा,'कुल मिलाकर, हम नहीं चाहते कि (HC) नियम को खत्म किया जाए.' असदुज्जमां ने अदालत को बताया कि अंतरिम सरकार संविधान में 15वें संशोधन को काफी हद तक असंवैधानिक घोषित करना चाहती थी, जिसमें केवल चुनिंदा प्रावधान ही बरकरार रखे गए. उन्होंने खास तौर पर कार्यवाहक सरकार प्रणाली की बहाली और संविधान में जनमत संग्रह के प्रावधान की मांग की.
15वें संशोधन को संसद में शेख हसीना की सरकार के समय बहुमत के बल पर पास किया गया था. जिसमें संविधान में कई प्रावधानों को बहाल किया गया और कुछ को खत्म भी किया गया. संशोधनों में धर्मनिरपेक्षता की बहाली, चुनाव की निगरानी के लिए कार्यवाहक सरकार सिस्टम को खत्म करना, संविधान से अलग तरीकों से राज्य की सत्ता संभालना और शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता के रूप में नामित करना शामिल था.
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बता दें कि 5 अगस्त को बांग्लादेश से अवामी लीग की सरकार गिर गई थी. प्रधानमंत्री शेख हसीना को मुश्किल परिस्थितियों से भागकर हिंदुस्तान आना पड़ा था. उनकी यह सरकार कोटा सुधार आंदोलन के चलते गिरी थी. कोटे में सुधार की मांग कर रहे छात्रों का यह आंदोलन लंबे समय से चल रहा था और कई बार उग्र भी हुआ था, जिसके नतीजे में बहुत सो लोगों की जान भी चली गई थी. आखिर में 5 अगस्त को आंदोलनकारी छात्रों ने प्रधानमंत्री हाउस पर चढ़ाई कर दी. कहा जा रहा है कि अगर शेख हसीना वहां से भागने में कुछ मिनट देरी कर देतीं तो उनके लिए कोई बुरी खबर हो सकती थी. सरकार गिरने के तीन दिन बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में पदभार ग्रहण किया.
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