Phalodi Vidhansabha Seat : जोधपुर से अलग होकर नया जिला बनने जा रहे फलोदी विधानसभा क्षेत्र में लंबे वक्त से विश्नोई समाज का दबदबा रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी फलोदी को जिला बनाने का मुद्दा बड़ा था, लेकिन तब नहीं बना. अब फलोदी नया जिला बनने जा रहा है, लिहाजा ऐसे में यह चुनाव फलोदी के लिए बेहद खास रहने वाला है.


खासियत


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1952 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां पर पहली बार में ही निर्दलीय ने जीत हासिल की थी. इसके बाद यहां अब तक हुए 15 विधानसभा चुनाव में तीन बार निर्दलीय, दो बार रामराज्य पार्टी, 6 बार कांग्रेस, एक बार जनता पार्टी और तीन बार भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की है. मौजूदा वक्त में यहां से भाजपा के पब्बाराम विश्नोई विधायक है. 


फलोदी जिला में जाएंगे ये तहसील


नए बनने जा रहे हैं फलोदी जिला में लोहावट, फलोदी, बाप, देचू, बापिणी, आऊं, सेतरावा, घंटियाली जाएंगे. जबकि अन्य 14 तहसील जोधपुर जिले में ही रहेंगी. वहीं शेरगढ़, ओसिया और भोपालगढ़ विधानसभा क्षेत्र ने भी फलोदी में जाने से इंकार कर दिया है. लिहाजा ऐसे में यह क्षेत्र भी जोधपुर जिले में ही रहेंगे.


फलोदी विधानसभा क्षेत्र का इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 1991


फलोदी के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से बद्रीनारायण चुनावी मैदान में उतरे थे, तो वहीं निर्दलीय के तौर पर हिम्मत सिंह ने ताल ठोकी. इस चुनाव में कांग्रेस के बद्रीनारायण के पक्ष में 1,723 वोट पड़े जबकि हिम्मत सिंह ने 13,232 वोटों के साथ बड़ी जीत दर्ज की और इसके साथ ही हिम्मत सिंह फलोदी के पहले विधायक चुने गए.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1957


1957 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से दोहरे सदस्य चुने गए. कांग्रेस को रामराज्य पार्टी और निर्दलीयों से टक्कर मिली. इस चुनाव में निर्दलीय के तौर पर किस्मत आजमा रहे गोपाल सिंह को 7,846 वोट मिले तो वहीं रामराज्य पार्टी के सूरजमल के पक्ष में 16,571 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ. इसके साथ ही सूरजमल की जीत हुई. वहीं आरक्षित वर्ग से केसरी सिंह ने रामराज्य पार्टी की ओर से ताल ठोकी और उन्हें भी 16,017 मतों से जीत हासिल हुई.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1962


1962 के विधानसभा चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही. इस सीट से कांग्रेस की ओर से लालाराम ने ताल ठोकी तो वहीं रामराज्य पार्टी की ओर से एक बार फिर सूरजमल चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में लालाराम की जीत हुई, जबकि सूरजमल 9,055 वोट पाकर भी चुनाव हार गए.


चौथा विधानसभा चुनाव 1967


इस चुनाव में फलोदी सीट एक बार फिर सामान्य वर्ग की हो गई. इस चुनाव में स्वराज पार्टी की ओर से बी सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं दीपचंद ने निर्दलीय के तौर पर तात ठोकी. हालांकि स्वराज पार्टी को हार का सामना करना पड़ा और निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई.


 



चौथा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मोहनलाल रानी को चुनावी मैदान में उतारा, जबकि स्वराज पार्टी की ओर से रामनारायण ने चुनौती पेश की. इस चुनाव में मोहनलाल छंगाणी की 14,344 मतों से जीत हुई, जबकि रामनारायण ने बेहद करीबी टक्कर देते दी और 13,574 वोट हासिल किए. इस चुनाव में मोहनलाल छंगाणी की जीत हुई.


पांचवा विधानसभा चुनाव 1977


इस चुनाव में जनता पार्टी की ओर से बालकृष्ण चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं कांग्रेस की ओर से पूनमचंद विश्नोई ने ताल ठोकी. हालांकि पूनमचंद विश्नोई को 21,061 मतों के बावजूद हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी के बालकृष्ण की जीत हुई.


छठा विधानसभा चुनाव 1980


1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में इंदिरा गांधी को लेकर मतभेद हो गया. कांग्रेस (आई) की ओर से पूनमचंद विश्नोई ने ताल ठोकी. वहीं उनके करीबी प्रतिद्वंदी मोहनलाल बने जो कि निर्दलीय के तौर पर चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में पूनमचंद विश्नोई की जीत हुई.


सातवां विधानसभा चुनाव 1985


यह चुनाव एक बार फिर मोहनलाल वर्सेस पूनमचंद विश्नोई का था. इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार पूनमचंद विश्नोई को 41,600 वोट मिले. निर्दलीय के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे मोहनलाल को 45188 वोट मिले. इसके साथ ही मोहनलाल की जीत हुई.


आठवां विधानसभा चुनाव 1990


कांग्रेस का विश्वास पूनमचंद विश्नोई पर मजबूत हो चुका था. पूनमचंद विश्नोई ने कांग्रेस के टिकट पर एक बार चुनावी रण में उतरने का फैसला किया. चुनाव में जनता दल की ओर से शेर सिंह चुनावी मैदान में थे. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो पूनमचंद विश्नोई की विधायक पद पर वापसी हुई और 52,861 वोटों के साथ राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


9वां विधानसभा चुनाव 1993


विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस ने पूनमचंद विश्नोई को उतारा तो वहीं भाजपा ने महिला उम्मीदवार के रूप में पुष्पा देवी को जंग में भेजा. पुष्पा देवी ने इस चुनाव में पूनमचंद विश्नोई को कड़ी टक्कर दी, लेकिन हार गई. पूनमचंद विश्नोई 54,569 वोटों से एक बार फिर चुनाव जीतकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे.



10वां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में पूनमचंद विश्नोई ने फलोदी की जगह भीनमाल से चुनाव लड़ा. जबकि कांग्रेस ने फलोदी में अख़े मोहम्मद को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि इस बार बीजेपी की ओर से रामनारायण के रूप में एक विश्नोई उम्मीदवार उतारा गया. कांग्रेस के समीकरण बिगड़ गए और भाजपा उम्मीदवार रामनारायण विश्नोई की 58,659 वोटों के साथ जीत हुई.


12वां विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने रामनारायण विश्नोई को एक बार फिर टिकट दिया. जबकि उनके करीबी प्रतिद्वंदी प्रकाश चंद छंगाणी रहे. इस चुनाव में प्रकाश चंद को 43,146 वोट मिले तो वहीं रामनारायण विश्नोई को 48,525 वोट मिले और इसके साथ ही राम नारायण विश्नोई दूसरी बात फलोदी से चुनकर विधानसभा पहुंचे.


13वां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां नए चेहरे को लेकर सामने आई. बीजेपी ने पब्बाराम विश्नोई को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं कांग्रेस ओमप्रकाश जोशी को चुनावी मैदान में लेकर आई. इस चुनाव में पब्बाराम विश्नोई के पक्ष में 44,452 वोट पड़े तो वहीं ओम प्रकाश जोशी 51,300 वोटों के साथ जीत हासिल की. इसके साथ ही जोशी ने 10 साल का कांग्रेस का सूखा भी मिटाया.


14वां विधानसभा चुनाव 2013


2013 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर पब्बाराम चौधरी और ओम जोशी आमने-सामने थे. चुनाव में ओम प्रकाश जोशी के पक्ष में 50,294 वोट पड़े लेकिन इसके बावजूद चुनाव हार गए और 84,465 वोटों के साथ पब्बाराम विश्नोई फलोदी के विधायक चुने गए.


15वां विधानसभा चुनाव 2018


2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ओम प्रकाश जोशी की जगह महेश कुमार को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं बीजेपी ने एक बार फिर पब्बाराम विश्नोई पर विश्वास जताया. इस चुनाव में महेश कुमार जोशी को 51,998 वोटों के साथ हार का सामना करना पड़ा तो वहीं पब्बाराम चौधरी 60,735 मतों के साथ चुनाव जीते और दूसरी बार राजस्थान विधानसभा पहुंचे.


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