Sadulpur Churu Vidhansabha Seat: शेखावाटी क्षेत्र के चुरू जिले की सादुलपुर विधानसभा सीट सबसे हॉट सीट में से एक है. यहां से मौजूदा वक्त में ओलंपिक खिलाड़ी कृष्णा पूनिया विधायक है तो वहीं इस सीट पर 1993 के बाद से कोई भी नेता विधायकी रिपीट नहीं कर पाया है, लिहाजा ऐसे में 2023 का विधानसभा चुनाव एक बार फिर बेहद दिलचस्प हो चला है.


खासियत


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सादुलपुर विधानसभा सीट पर पिछले 15 सालों से त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है, यहां भाजपा और कांग्रेस को बसपा से कड़ी चुनौती मिल रही है, तो वहीं बसपा यहां भाजपा और कांग्रेस को हार का स्वाद भी चखा चुकी है. इस सीट से सबसे ज्यादा जीत का रिकॉर्ड कांग्रेस के इंदर सिंह पुनिया के नाम है. इंदर सिंह पूनिया 1985 से 1998 तक लगातार तीन बार विधायक रहे. वहीं 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही यहां हर बार विधायक बदलता रहा है, यानी यहां की जनता हर बार नए चेहरे को जीताती आई है.


जातीय समीकरण


सादुलपुर विधानसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो इस सीट पर जाट मतदाताओं का दबदबा रहा है, लेकिन जीत और हार एससी मतदाता ही तय करते हैं, क्योंकि अक्सर दोनों प्रमुख पार्टियों की ओर से जाट उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरते हैं ऐसे में जाट वोट बंट जाता है ऐसे में यहां दलित वर्ग ही किंग मेकर की भूमिका में होती है. इसके अलावा सादुलपुर में वैश्य, गोस्वामी, खाती, स्वामी और कालबेलिया समुदाय के भी मतदाता है.


2023 का विधानसभा चुनाव


इस सीट से कांग्रेस एक बार फिर कृष्णा पूनिया को चुनावी मैदान में उतार सकती है, साथ ही कुलदीप पुनिया भी एक मजबूत दावेदार हैं. तो वहीं 2014 में चूरू लोकसभा से चुनाव लड़ चुके है. प्रताप पूनिया भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे हैं. हालांकि प्रताप पुनिया काफी समय से क्षेत्र में सक्रिय नहीं है. बता दें कि सादुलपुर में कांग्रेस पार्टी में पर्यवेक्षक के समक्ष अभी 9 आवेदन आये थे, जिनमे से कृष्णा पुनिया को छोड़कर बाकी सभी आवेदको ने कुलदीप पुनिया के नाम पर सहमत है. ऐसे में अगर कुलदीप पुनिया को सादुलपुर से टिकट दिया जाता है तो वहीं चर्चाएं हैं कि कृष्णा पूनिया को चुरू से राजेंद्र राठोड़ के खिलाफ भी चुनाव लड़वाया जा सकता है.


वहीं बीजेपी चूरू से मौजूदा सांसद राहुल कस्वां को कृष्णा पूनिया के खिलाफ चुनावी जंग में उतार सकती है, वहीं चर्चाएं पैरा ओलंपिक खिलाड़ी देवेंद्र झांझरिया को लेकर भी है अगर भाजपा देवेंद्र झांझरिया को सादुलपुर से टिकट देती है तो यहां खिलाड़ी बनाम खिलाड़ी चुनाव देखने को मिल सकता है. हालांकि देवेंद्र झांझरिया को लोकसभा चुनाव का टिकट भी दिए जाने की चर्चाएं हैं, ऐसे में राहुल कस्वां या देवेंद्र झांझरिया में से किसी एक को विधानसभा का टिकट मिल सकता है. दूसरी ओर बसपा से एक बार फिर मनोज न्यांगली चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबला को त्रिकोणीय बना सकती है.


सादुलपुर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास


पहला विधानसभा चुनाव 1962


सदलपुर विधानसभा क्षेत्र का गठन 1962 में हुआ. इससे पहले यह क्षेत्र चूरू विधानसभा के अंतर्गत आता था. इस सीट पर हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रावत राम को अपना उम्मीदवार बनाया तो कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से हेतराम उम्मीदवार बने. इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी के हेतराम को 8,950 मत मिले तो वहीं रावत राम को 12,502 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ और उसके साथ इस सीट पर रावत राम की जीत हुई. आपको बता दें कि पहले विधानसभा चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थी.


दूसरा विधानसभा चुनाव 1967


1967 के विधानसभा चुनाव में यह सीट अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित से सामान्य सीट हो गई, लिहाजा आज ऐसे में कांग्रेस समेत अन्य सभी दलों ने अपने उम्मीदवार भी बदले. कांग्रेस ने जहां शीशराम पूनिया को टिकट दिया तो वहीं एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी से चुनौती मिली. इस चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को 10,620 मत हासिल हुई तो वहीं शीशराम 18,385 मतों के साथ जितने में कामयाब हुए.


तीसरा विधानसभा चुनाव 1972


1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राम सिंह राव को टिकट दिया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर उनको सबसे कड़ी टक्कर नंदलाल से मिली. नंदलाल को सादुलपुर की 18,053 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ. तो वहीं राम सिंह राव 24,732 मत पाने में कामयाब हुए उसके साथ ही कांग्रेस ने यहां से जीत की हैट्रिक लगाई.


चौथा विधानसभा चुनाव 1977


1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए रहा आसान नहीं थी, कांग्रेस ने सादुलपुर से इंदर सिंह पूनिया को टिकट दिया तो वहीं दीपचंद निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे. वहीं जनता पार्टी की ओर से जय नारायण ने ताल ठोकी. इस त्रिकोणीय संघर्ष में कांग्रेस को सिर्फ 50,158 मत हासिल हुए जबकि निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे दीपचंद को 17,513 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ. वहीं 18,272 मतों के साथ जनता पार्टी के जय नारायण की जीत हुई और उसके साथ ही कांग्रेस का विजय रथ रुक गया.


पांचवा विधानसभा चुनाव 1980


1980 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला रोचक होने जा रहा था. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने देवकीनंदन जैन को टिकट दिया तो वहीं निर्दलीय के तौर पर नंदलाल और दीपचंद मैदान में थे. इस चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी और  देवकीनंदन महज 15% मत हासिल कर सके, जबकि निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे नंदलाल को 20,0378 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ तो वहीं 25,064 मतों के साथ निर्दलीय उम्मीदवार दीपचंद की जीत हुई. उन्हें सादुलपुर की 43% जनता का समर्थन हासिल हुआ.


छठा विधानसभा चुनाव 1985


1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से इंदर सिंह को ही टिकट दिया तो दीपचंद एक बार फिर निर्दलीय ही चुनावी मैदान में थे. इस चुनाव में दीपचंद को 24,610 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ तो वहीं इंदर सिंह दीपचंद को पटखनी देने में कामयाब हुए और उन्हें 32,214 मत हासिल हुए.


सातवां विधानसभा चुनाव 1990


1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का विश्वास इंदर सिंह पर कायम रहा तो वहीं राम सिंह से उन्हें कड़ी टक्कर मिली. हालांकि इंदर सिंह राम सिंह को तकरीबन 6000 मतों से शिकस्त देने में कामयाब हुए और उन्हें 31,630 मत मिले और उसके साथ ही इंदर सिंह पुनिया की एक बार फिर जीत हुई.


आठवां विधानसभा चुनाव 1993


1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से एक बार फिर इंदर सिंह पुनिया ही चुनावी मैदान में ताल ठोकने उतरे तो बीजेपी ने महिला प्रत्याशी के तौर पर कमला को चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में इंदर सिंह जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब हुए और उन्हें 36,934 वोट मिले और उसके साथ ही लगातार तीन बार जीत हासिल करने वाले इंदर सिंह सादुलपुर के पहले विधायक बने.



9वां विधानसभा चुनाव 1998


1998 के विधानसभा चुनाव में सादुलपुर की सियासी तस्वीर बदलने वाली थी. इस चुनाव में कांग्रेस ने इंदर सिंह पुनिया पर ही भरोसा कायम रहा तो वहीं निर्दलीय के तौर पर नंदलाल मैदान में थे. वहीं भाजपा ने राम सिंह को टिकट दिया. इस चुनाव में भाजपा का दांव सफल रहा और राम सिंह 37,153 मत से विजय हुए जबकि इस चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के इंदर सिंह 29,470 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे. वहीं नंदलाल 32,862 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे. हालांकि 1998 में कांग्रेस प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रही और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने.


 उपचुनाव 2000


साल 2000 में हुए उप चुनाव में कांग्रेस के टिकट से विधायक रह चुके इंदर सिंह पूनिया निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं नंदलाल पूनिया ने भी निर्दलीय ही ताल ठोका. इस चुनाव में नंदलाल पूनिया की जीत हुई और उन्हें 41,285 मत हासिल हुए.


दसवां विधानसभा चुनाव 2003


2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नंदलाल पूनिया को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी ने एक बार फिर कमला पर दांव खेलने का ठाना. इस चुनाव में कमला को 29,977 मत हासिल हुई तो वहीं कांग्रेस के नंदलाल पूनिया 33,101 मतों के साथ विजय हुए.


11वां विधानसभा चुनाव 2008


2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर कमला कस्वां कोई टिकट दिया तो वहीं बसपा की ओर से वीरेंद्र सिंह मजबूत दावेदारी जताने उतारे. इस चुनाव में बसपा ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया. चुनावी नतीजे आए तो भाजपा की कमला कस्वां जीतने में कामयाब हुई और उन्हें 47,244 मत हासिल हुए जबकि बसपा के वीरेंद्र सिंह 40,649 मतों के साथ दूसरा स्थान पर रहे.


12वां विधानसभा चुनाव 2013


2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कृष्णा पूनिया को टिकट दिया तो बसपा ने उम्मीदवार बदला और मनोज कुमार को टिकट दिया तो वहीं बीजेपी ने फिर से कमला कस्वां पर ही भरोसा जताया. इस चुनाव में बीजेपी की कमला कस्वां मोदी लहर पर सवार थी, लेकिन उसके बावजूद उन्हें हार का सामना करना पड़ा और बसपा के मनोज कुमार 59,624 मतों से जीतने में कामयाब हुए.


13वां विधानसभा चुनाव 2018


2018 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला फिर से त्रिकोणीय था, इस चुनाव में कांग्रेस ने ओलंपिक प्लेयर कृष्णा पूनिया को टिकट दिया तो वहीं बसपा की ओर से एक बार फिर मनोज कुमार न्यांगली चुनावी मैदान में उतरे. वहीं भाजपा ने राम सिंह कस्वां को टिकट दिया. इस चुनाव में 18000 मतों के अंतर से कृष्णा पूनिया 70,020 मत पाने में कामयाब हुई और उसके साथ ही उनकी जीत हुई, जबकि बसपा के मनोज दूसरे और भाजपा के राम सिंह कस्वां तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें क्रमशः 29% और 28% मत हासिल हुए.