Rajasthan: `म्हारी छोरियां छोरो से कम है के`, घोड़ी पर बैठा कर निकाली लाडो की बिंदोरी!
बेटियों को भी बेटों के समान समझा जाने लगा हैं. जो देश व समाज के लिए अभिनव पहल हैं. ऐसा ही बेटा बेटी समानता का सन्देश वाल्मीकि परिवार ने देने का प्रयास किया है.
Alwar News: बेटियों को भी बेटों के समान समझा जाने लगा हैं. जो देश व समाज के लिए अभिनव पहल हैं. ऐसा ही बेटा बेटी समानता का सन्देश वाल्मीकि परिवार ने देने का प्रयास किया है. जिसमें बेटी रेखा को घोड़ी पर बैठाकर गाजे बाजे के साथ बिंदोरी निकाली गई.
किशनगढ़बास नगरपालिका के क्षेत्र में किले मोहल्ले स्थित एक वाल्मीकि परिवार ने रुढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हुए बेटी की शादी की रस्मों को वैसे ही निभाया, जैसे बेटों की निभाई जाती है. दुल्हन के पिता ने घोड़ी पर बिठाकर बिंदोरी निकाली और बेटे-बेटी एक समान हैं, का संदेश दिया, किशनगढ़बास नगरपालिका के क्षेत्र में किले मोहल्ले स्थित रहने वाले देशराज वाल्मीकि और भाई रविन्द्र वाल्मीकि के परिवार ने समाज की रूढ़िवादी परंपरा को त्यागते हुए बेटी रेखा की गुरुवार को होने वाली शादी से पहले उसके सारे रस्म-रिवाज लड़कों की भांति किए. बेटी रेखा के पिता देशराज वाल्मीकि और भाई रविन्द्र वाल्मीकि ने बताया कि वर्तमान में बेटियों के प्रति समाज में जागृति आई हैं.
अब बेटियों को भी बेटों के समान समझा जाने लगा हैं. जो देश व समाज के लिए अभिनव पहल हैं. ऐसा ही बेटा बेटी समानता का सन्देश वाल्मीकि परिवार ने दिया, जिसमें बेटी रेखा को घोड़ी पर बैठाकर गाजे बाजे के साथ बिंदोरी निकाली. परिवार जनों ने बताया कि बिटिया की बिंदोरी निकालने का एक मात्र उद्देश्य समाज में बेटा-बेटी के भेद को मिटाकर समानता का सन्देश देना हैं. बिंदोरी में रेखा की सहेलियों, भाई बहनों, परिवार जनों सहित रिश्तेदारों ने नाच गा कर खुशियां मनाई. रेखा की माता कल्लो देवी ने बताया कि समाज के बदलते परिवेश और शिक्षा के विकास के कारण अब रुढ़िवादी परंपराओं को जनता धीरे-धीरे मिटाने लगी है. जहां पहले बेटियों को समाज में बोझ समझा जाता था, वहीं अब शिक्षा और जागरुकता की वजह से जनता की सोच में बदलाव देखने को मिल रहा है.
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