Rajasthan:आजादी के 75 बर्ष के बाद भी मूलभूत सुविधाओं को तरसे लोग, जानें बारां जिले का दर्द
बारां जिले के छबड़ा विधानसभा गांव में आजादी के 75 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिलना दूर का सपना बना हुआ है. जनप्रतिनिधि केवल वोट मांगने के समय ही दिखाई देते हैं ऐसे में ग्रामीण अपने भाग्य को कोसते नजर आते हैं.
Chabra News: बारां एक ओर सरकार शहरों में सौंदर्यीकरण के नाम पर पुराने निर्माण ध्वस्त कर नए निर्माण के नाम पर बड़ी धनराशि खर्च कर रही है तो वहीं इसके उलट बारां जिले के छीपाबड़ौद तहसील के हरनावदाशाहजी क्षेत्र में दूरदराज इलाकों में बसे कई गांवों के लोग आज भी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए अभावग्रस्त जीवनयापन कर रहे हैं. यहां आजादी के 75 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं का लाभ मिलना दूर का सपना बना हुआ है. सबसे बड़ी बात है कि बडे़ लोगों के नाम पर अधिकारी तो यहां तक पंहुच ही नहीं पाते और जनप्रतिनिधि केवल वोट मांगने के समय ही दिखाई देते हैं ऐसे में ग्रामीण अपने भाग्य को कोसते नजर आते हैं.
आज भी पिछड़ापन का दंश झेल रही
बारां जिले की अंतिम सीमा एवं मध्यप्रदेश बोर्डर पर पहाड़ियों के बीच बसे गोरधनपुरा सूरडीबह गांव में गूर्जर समाज के 25 घरों की बस्ती आज भी पिछड़ापन का दंश झेल रही है. यहां तक पंहुचने के लिए पथरीला रास्ता है तो वहीं अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ भी बराबर नहीं मिल रहा. लोगों का आवास की सुविधा भी नहीं मिली है जर्जर ओर मिटृटी के बनने टूटे फूटें मकानों में रहने को लोग मजबूर है.
17 किलोमीटर पथरीला व कच्चा रास्ता तय करना पड़ता
ग्रामीणों ने बताया कि यहां के लोगों के पास नाममात्र की खेती लायक जमीन है. पहाडी क्षैत्र पर पशुपालन के साथ दूध बेचकर व खेती बाड़ी से अपना परिवार का गुजारा चला रहे हैं. मोबाइल नेटवर्क भी नहीं मिलता. हरनावदाशाहजी से करीब 17 किलोमीटर दूर पहाड़ियों की घनी श्रृंखला के बीच बसे सहजनपुर ग्राम पंचायत के इस गांव तक पंहुचने के लिए करीब तीन चार किमी का पथरीला व चढाव उतार वाला कच्चा रास्ता तय करना पड़ता है जिसमें बरसाती नाले भी पार करने पड़ते है. यहां पर मोबाइल नेटवर्क भी पड़ोसी राज्य का कभी कभार मिलता है. ऐसे में सरकारी कर्मचारियों को कई बार ऑनलाइन काम करने में भी परेशानी आती है जबकि ग्रामीण ऊंचाई पर जाकर मोबाइल चलाते है.
गांव में सरकार ने उच्च प्राथमिक विद्यालय खोल रखा है जहां पर दो शिक्षक तैनात है लेकिन भवन की स्थिति काफी दयनीय है. वर्ष 1999 में राजीव गांधी पाठशाला से 2003 में प्राथमिक विद्यालय और फिर 2013 में उच्च प्राथमिक विद्यालय बनने से ग्रामीणों को शिक्षा का लाभ मिला लेकिन आठवीं बोर्ड परीक्षा के लिए केंद्र छीपाबड़ौद आने से आठवीं कक्षा की छात्रा परीक्षा देने से चूक गई क्योंकि परीक्षा केंद्र दूर पड़ने से अपने रिश्तेदार की मदद से बाइक द्वारा पिता ने पेपर दिलवाने भेजा. लेकिन एक दो पेपर देने के बाद बाइक चलाकर ले जाने वाला नही मिलने से वंचित रहना पड़ा. नतीजन इस बार फिर से आठवीं में पढाई करनी पड़ रही है. जिसमें एक साल खराब हो गया.
प्रधानाध्यापक उम्मेदसिंह हाडा ने बताया कि परीक्षा केंद्र हरनावदाशाहजी दे दिया जाए तो बच्चों के लिए सुविधा रहती है जबकि छीपाबड़ौद दूर भी पड़ता है और रास्ता ज्यादा दुर्गम पड़ता है.
आज भी पेयजल का स्त्रोत नहीं
गांव के 80 वर्षीय केशो गूर्जर,कंवर लाल व ईश्वर सिंह ने बताया कि गांव में सिंगल फेज बिजली तो मिल रही है लेकिन पेयजल के स्त्रोत नहीं होने से ग्रामीणों के सामने भारी समस्या है. ग्रामीण पहले दो तीन किलोमीटर दूर कुओं से पानी ढोकर लाते थे.स्कूल के पास कुछ साल पहले हैंडपंप लगने से राहत तो मिली लेकिन गरमी के दिनों तक यह भी हवा फेंकने लग जाता है ऐसे में फिर वही पानी ढोने की नौबत आ जाती है. पहाडी क्षेत्र होने से पानी की समस्या गंभीर रहती है. ग्रामीण बताते हैं कि मध्यप्रदेश बोर्डर नजदीक है. अंडेरी नदी की दह में पानी मिलने से गर्मियों में मवेशियों का काम चल जाता है लेकिन पशुपालकों को काफी परेशानी आती है.
चुनाव के दौरान प्रत्याशी जरुर आते
ग्रामीणों ने बताया कि पानी की समस्या झेल रहे गांव को सरकार की नई पेयजल योजना से भी नहीं जोड़ा गया. उन्होंने बताया कि आसपास गांवों में इसके लिए पाइप लाइन बिछ गई तथा अन्य काम चल रहे जबकि गांव तक योजना नहीं पंहुची जिसका ग्रामीणों को मलाल है. ग्रामीणों का आरोप है कि यहां तक चुनाव के दौरान विधानसभा तक के प्रत्याशी जरुर प्रचार करने व वोट मांगने पंहुचते है, उसके बाद कोई नहीं आकर सुध लेता है. अधिकारी के नाम पर शिक्षक ही यहां आ रहे हैं. ग्रामीणों की मांग है कि सरकार यदि गांव के निकट तालाब को गहरा करवाकर जल संरक्षण कर दे तो उससे मवेशियों व ग्रामीणों के लिए काफी सुविधा होगी.
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उल्लेखनीय है कि यहां पर पहाड़ियों की तलहटी में एक एनीकट तो सरकारी योजना में बना लेकिन निर्माण कार्य में की गई घटिया गुणवत्ता के कारण सारा पानी व्यर्थ बहकर चला जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि यहां पानी संरक्षण का भरपूर स्त्रोत होने के बावजूद ध्यान नहीं दिया गया और काम हुआ भी तो खानापूर्ति बनकर रह गया. ऐसे में जल संरक्षण के यहां पर्याप्त बंदोबस्त हो जाए तो ना केवल लोगों को सुविधा होगी बल्कि किसानी कार्य व पशुपालन करने वाले परिवारों को मदद भी मिलेगी.