Lumpy skin: राजस्थान के गावों में जहां गायें बैठती है उसे गवाड़/गवाड़ी कहते है. यही शब्द मारवाड़ में लोगों की पारिवारिक स्थिति का प्रतीक होता है. भली गवाड़ी है, गवाड़ी टूट गई. या गवाड़ी में दम नहीं है जैसे शब्दों के जरिए ही लोगों के घर परिवार की स्थिति का आंकलन होता रहा है. लेकिन गायों के बिना गवाड़ी की कल्पना करना संभव नहीं है.


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लंपी स्किन की बीमारी मारवाड़ के बाद अब शेखावाटी और मेवाड़ समेत दूसरे इलाकों में पांव पसार रही है. मौत के सरकारी आंकड़ों का डेथ मीटर भी 7 हजार से ज्यादा गायों की मौत बता रहा है. और करीब 1 लाख से ज्यादा गायें मौत और जिंदगी के बीच की जंग लड़ रही है. घावों में तब्दील हुई गांठों से खून और मवाद निकल रहा है. हालात गायों के बदन से चमड़ी को नोच रहे है. पीड़ा इतनी कि गायों के आंखों से आंसू नहीं थम रहे है. रोम रोम में उठी घावों की जलन ने चारा पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया है.


विपक्ष की खामोशी पर सवाल


गाय की जिंदगी को चुनावी नारों से लेकर घोषणापत्र के वादों में शामिल करने वाली बीजेपी खामोश है. ग्रामीण इलाकों की जो ओरण सावन के इस महीने में हरा भरा चारा चर रही गायों, उनके गले में बंधी घंटियों और चरवाहो की आपसी गप्पों की रौनक में होनी चाहिए थी. वहां आज मृत गौवंश के ढ़ेर लगे है. लेकिन बीजेपी एकाध बयान को छोड़कर पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है. बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया हाल ही में पश्चिमी राजस्थान का दौरा कर आए है. यहां उन्हौने 2023 के विधानसभा चुनावों को लेकर संगठनात्मक बैठकें ली.


बीजेपी विपक्ष में है. लिहाजा उसे शासन और प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए जिस स्तर की लड़ाई लड़नी चाहिए थी. वो लड़ती हुई नहीं दिखाई दे रही.


सक्रिय नहीं है सांसद और मंत्री कैलाश चौधरी


बाड़मेर जैसलमेर सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री कैलाश चौधरी भी इस मामले में अभी तक सक्रिय नहीं दिख रहे है. ये बीमारी क्या है. इसके फैलने और रोकथाम पर जांच के लिए केंद्र सरकार की एक टीम इलाके का दौरा करने पहुंची. इस मामले में कैलाश चौधरीन ने कहा कि जांच के बाद केंद्र सरकार यथासंभव प्रयास करेगी. लेकिन न तो सांसद इस संकटकाल में जमीनी स्तर पर एक्टिव है. और न ही वो राज्य सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब रहे है.


कहां है गौपालन मंत्री प्रमोद जैन भाया


लंपी स्किन ने सबसे ज्यादा गौवंश पर कहर ढ़ाया है. पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया ने हाल ही में अधिकारियों के साथ इस मामले में समीक्षा बैठक की थी. लेकिन गौपालन मंत्री प्रमोद जैन भाया इस पूरी पिक्चर से आउट है. वो न तो प्रभावित इलाकों का दौरा कर रहे है. और न ही बीमारी की रोकथाम को लेकर विभागीय शासन तंत्र को सक्रिय कर रहे है.


सरकार को क्या करना चाहिए


प्रदेश के करीब एक दर्जन जिले ऐसे है. जहां इन दिनों लंपी स्किन के खिलाफ वैसी ही लड़ाई की जरुरत है. जैसी कोरोना काल में लड़ी गई थी. ग्रामीण स्तर पर अभियान चलाना होगा. सिर्फ पशुपालन विभाग के भरोसे रहने की बजाय पूरी सरकारी मशीनरी को झौंकने की जरुरत हो. कमान ग्राम पंचायत स्तर के प्रशासन के पास हो. जिसकी ब्लॉक और जिला स्तर पर मॉनिटरिंग और मार्गदर्शन हो. जिस पर गौपालन मंत्री और पशुपालन मंत्री पूरी तरह से नजर बनाए रखें.


ग्राम सेवक, पटवारी, प्रधानाचार्य की भूमिका


गांव के स्तर पर कोई भी सरकारी मिशन तब तक कामयाब नहीं हो सकता. जब ग्रामसेवक और पटवारी को उसमें शामिल न किया जाए. इसके अलावा सरकारी शिक्षकों को भी साथ लिया जाए. जो गांव देहात को लोगों को इस बीमारी के खिलाफ लोगों को जागरुक करें. रोकथाम के उपाय बताएं. पटवारी और ग्रामसेवक ग्रामीण गांव में बीमार पशुओं की स्थिति, उनके उपचार, बीमारी की रोकथाम के उपायों को सुनिश्चित करें. और उसकी रिपोर्ट ब्लॉक स्तर पर अधिकारियों को दी जाए. जिला स्तर पर कलेक्टर ब्लॉक स्तर के अधिकारियों के जरिए एक एक गांव पर नजर रखें और ताजा हालातों के बारे में राज्य सरकारों को अवगत कराते रहें.


चिंताजनक क्यों है हालात


लंपी स्किन से बीमार एक पशु कई पशुओं को संक्रमित करता है. मक्खी और मच्छर संक्रमण फैलाने की सबसे बड़ी वजह बन रहे है. ग्रामीण इलाकों में युद्ध स्तर पर गायों के बाड़ों और गौशालाओं में नियमित रुप से फ्लोराइड सोडियम के छिड़काव की जरुरत है. ताकि मच्छरों को पनपने से रोका जा सके. 


संक्रमित गाय के संपर्क में आया पशु अगले 5 सप्ताह यानि 35 दिनों में कभी भी बीमार हो सकती है. इसलिए बीमार गायों के संपर्क में आई अन्य गायों को भी यथासंभव क्वारेंटाइन किये जाने की जरुरत है. ताकि बीमारी को और विकराल होने से रोक सकें. और सबसे जरुरी है इन सब तथ्यों के बारे में आम लोगों को जागरुक करने की जरुरत है.


बीमार गाय को इलाज सबसे जरुरी


हाल ही में पश्चिमी राजस्थान में बाड़मेर जैसलमेर के इलाकों में जब प्रशासन की टीमों ने सर्वे किया. तो करीब करीब 70 प्रतिशत गायें संक्रमित निकली. ये संक्रमण भी कोरोना की लहर जैसा हो गया है. अब इसे रोकना उतना आसान नहीं रहा है. ऐसे में सबसे बड़ी जरुरत इस बात की है कि जो गायें बीमार पड़ गई है. उनको इलाज मिले. जरुरी दवाएं गांव-ढ़ाणी स्तर पर मिलनी सुनिश्चित हो.


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