राजस्थान को ऊँट व रेत की छवि से इतर देखने की ज़रूरत है, इसे किसी शासक ने नहीं लोक ने समृद्ध किया
Rajasthan foundation day : आज 30 मार्च को राजस्थान दिवस है. बाड़मेर जैसलमेर के रेगिस्तान से लेकर अरावली की पहाड़ियां और हाड़ौती का समृद्ध क्षेत्र राजस्थान है. राजस्थान को न एक तस्वीर में परिभाषित किया जा सकता और न ही एक भाषा में.
भूपेंद्र सिंह इंद्रौई, बाड़मेर : मनोविज्ञान की बात है कि कहीं परदेश में आदमी अपनी जगह का आदमी ढूँढता है. लोकगीत उसको घर की याद दिलाते हैं. कोई अपनी भाषा बोलता दिख पड़े तो उसे बतलाने के जतन करता है. यही वजह है कि राजस्थानी, राजस्थान के बाहर कहीं भी चला जाए लेकिन भीतर से राजस्थान को बाहर नहीं निकाल पाता है. राजस्थानियों में क्षेत्रीयता आनुवांशिकता में है.
जब भी कहीं पानी की कमी से जूझती रेत की जगह का ज़िक्र होता है तो बाहरी लोगों के मस्तिष्क में राजस्थान का चित्र उभर आता है. हाँ! राजस्थान के एक क्षेत्र में पानी की कमी को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. पश्चिम के लोगों नें अपनी जीवटता से कई अकालों को मात दी है. फिर भी राजस्थान सिर्फ़ रेत तक सीमित नहीं है. एक तरफ़ रेगिस्तान है तो दूसरी तरफ़ अरावली की पहाड़ियाँ है. राजस्थान की अरावली का पानी कई नदियों के सहारे बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में जा गिरता है. देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने के लिए सबसे ज़्यादा खानें हमारे राज्य में हैं. कई फसलों का उत्पादन केवल राजस्थान में होता है. हालांकि देश के भूभाग का सबसे बड़ा हिस्सा राजस्थान में आता है.
राजस्थान राजाओं नहीं, उदार लोगों का क्षेत्र है. इसको किसी शासक नें नहीं यहाँ के लोक नें समृद्ध किया है. लोक जिसमें गीत, संगीत, साहित्य और विशाल श्रुत परम्परा बसती है. इतनी पीड़ाओं के बावजूद भी यहाँ का लोक, कला का सरंक्षण करता आया है. शायद! कला ही यहाँ के जीवन को प्रेरित करती आई हो. यहाँ की धरती नें वीरों के साथ-साथ साधू व संत भी जने हैं. यहाँ की प्रगतिशील बोद्धिकता के इतिहास का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि पाँच सौ वर्ष पहले ही रामदेवजी, जाम्भोजी, संत पीपा, पाबूजी जैसे कई समाजसेवी हुए जिन्होंने पशु अधिकार व छुआछत जैसे विमर्श को सामाजिक दृष्टि में लाने पर कार्य किया.
उत्तर में कोणा से लेकर दक्षिण में बोरकुंडा व पश्चिम के कटरा से लेकर पूर्व के सिलाना तक यात्रा करें तो पाएंगे की राजस्थान संस्कृतियों का विशाल गृह है जिसके हर बीस किलोमीटर में बोली बदल जाती है. यही वज़ह है कि राजस्थान को ऊँट व रेत की छवि से इतर देखने की ज़रूरत है. मारवाड़ी, मेवाड़ी, मेवाती, ढूंढाड़ी,मालवी, वागड़ी, बागड़ी, हाड़ौती, शेखावाटी राजस्थानी भाषा की प्रमुख बोलियाँ हैं जिनका अपना मौखिक व लिखित साहित्य है. इन बोलियों की भी अपनी उपबोलियाँ है. शोध करें तो पाएंगे कि राजस्थान का अध्ययन वृहत स्तर पर ही किया जा सकता है.
आज राजस्थान दिवस है. 30 मार्च 1949 को आज़ाद भारत में इसकी रियासतों का गठन हुआ व आज के राजस्थान नें आकार लिया. हालाँकि इसका सांस्कृतिक व राजनितिक इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है. राजस्थान का राजस्थान नाम से उसकी संस्कृति, लोक, कला व साहित्य का भान नामुमकिन है. कोई भी तब ही जान पाएगा जब वो यहाँ आकर बसे, इस मिट्टी के रंग देखे, यहाँ का पानी पीए. कोई बिन पानी पीए कैसे किसी जगह को जान पाए.
राजस्थान दिवस की शुभकामनाएँ! जय राजस्थान!