हनुमान बेनीवाल के खिलाफ क्यों खड़े हो रहे है हरीश चौधरी, गहलोत से नाराजगी की ये है वजह
Harish choudhary and Hanuman Beniwal : राजस्थान में बाड़मेर जिले की बायतू विधानसभा से विधायक हरीश चौधरी इन दिनों राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल के खिलाफ धीरे धीरे मोर्चा खोलते नजर आ रहे है. इसके लिए अशोक गहलोत पर भी आरोप लगाए है.
Rajasthan News : हरीश चौधरी ने बिना नाम लिए आरोप लगाया है कि बाड़मेर में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा जो तीसरी पार्टी सक्रिय है. वो अशोक गहलोत की प्रायोजित पार्टी है. ये भी कहा कि गहलोत साहब कांग्रेस पार्टी के है. अगर सपोर्ट करना है तो हम लोगों को करें, कांग्रेस पार्टी को करें. यहां तक आरोप लगाया कि जब तक हम लड़ते नहीं है तब तक उनको नींद नहीं आती है. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर हरीश चौधरी अशोक गहलोत और हनुमान बेनीवाल पर आक्रामक क्यों है. पहले ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर राज्य सरकार को घेरा और अब आरएलपी के बहाने वो सवाल क्यों खड़े कर रहे है.
दरअसल 2018 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने बाड़मेर जिले में अच्छे खासे वोट बटोरे थे. उनकी अपनी सीट बायतू में आरएलपी दूसरे नंबर पर रही थी. 2018 में हरीश चौधरी को यहां पर 57,703 वोट मिले थे तो वहीं आरएलपी के उम्मेदाराम को 43,900 वोट मिले थे. इसके अलावा शिव विधानसभा सीट पर आरएलपी के ऊदाराम मेघवाल ने 50 हजार से ज्यादा वोट पाकर बीजेपी कांग्रेस दोनों पार्टियों को सीधे तौर पर चुनौती दी थी. इसके अलावा पंचायती राज के चुनावों में भी आरएलपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था. विशेष तौर से बायतू में पार्टी काफी एक्टिव है.
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ऐसे में हरीश चौधऱी के लिए 2023 का विधानसभा चुनाव हो, या 2024 का लोकसभा चुनाव हो. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी उनके सियासी सफर में चुनौती बनकर उभर सकती है.
उपचुनावों में आरएलपी की भूमिका
पिछले कुछ समय में राजस्थान में जिन सीटों पर उपचुनाव हुए है वहां पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने काफी मजबूती से चुनाव लड़ा. सरदारशहर, सुजानगढ़ और वल्लभनगर सीटों पर 40 हजार से ज्यादा वोट बटोरने में पार्टी कामयाब रही. हाल ही में हुए सरदारशहर उपचुनाव में तो बेनीवाल करीब डेढ़ सप्ताह तक यहीं डेरा डाले रहे. छोटी पार्टी और कम संसाधन होने के बावजूद वो हेलिकॉप्टर से चुनाव प्रचार करते नजर आए. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सीटों पर आरएलपी की मजबूती से कांग्रेस को ही फायदा हुआ. और उपचुनाव जीतने से अशोक गहलोत की स्थिति मजबूत बनी रही.