Bharatpur News:भरतपुर के केवलादेव नेशनल राष्ट्रीय उद्यान में दुनिया भर के सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी आते हैं.आर्द्र भूमि (वेटलैंड) की वजह से दुनिया भर की सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान आते हैं. 


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केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के इसी वेट लैंड (आर्द्र भूमि) की वजह से भरतपुर की दुनिया भर में पहचान है, लेकिन बीते 22 साल से इस घना(केवलादेव नेशनल पार्क) को पांचना बांध और नदियों का उचित व पूरा पानी नहीं मिल पा रहा है. इसी का नतीजा है कि जिस वेटलैण्ड (आर्द्र भूमि) की वजह से घना (केवला देव नेशनल पार्क) की बर्ड सेंचुरी की पहचान है, अब वो आर्द्र भूमि सिमटने लगी है. 


बीते ढ़ाई दशक में घना की आर्द्र भूमि 11 वर्ग किलोमीटर से सिमटकर करीब 8 वर्ग किलोमीटर रह गई है.अगर समय रहते घना को पांचना बांध का नियमित पानी नहीं मिला तो धीरे-धीरे यहां की आर्द्र भूमि वुडलैंड में तब्दील हो जाएगी, जिससे इस विश्व विरासत की न केवल पहचान पर संकट खड़ा हो जाएगा, बल्कि पक्षी भी मुंह मोड़ लेंगे.


मानस सिंह डीएफओ केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर.डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि घना 28.73 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इसको वेटलैंड (आर्द्र भूमि) के रूप में विकसित किया गया था. फिलहाल घना में 6 मुख्य ब्लॉक हैं, जिनका आर्द्र भूमि के रूप में रखरखाव किया जाता है. 



पहले घना में गंभीरी नदी और पांचना बांध से पानी आता था लेकिन बीते 22 साल से कभी भी घना को उसके हिस्से का पूरा पानी नहीं मिला. यहां तक कि वर्ष 2012 के बाद तो पांचना का पानी मिलना पूरी तरह बंद हो गया.


मानस सिंह डीएफओ केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर
वर्ष 1986 के शोध से स्पष्ट हुआ था कि घना के कुल क्षेत्र में से करीब 11 वर्ग किमी वेटलैंड क्षेत्र था,लेकिन लंबे समय से पर्याप्त पानी नहीं मिलने की वजह से अब उद्यान का कदंब कुंज, एफ 1 और एफ 2 ब्लॉक पूरी तरह से सूख गए हैं. 


कभी ये ब्लॉक वेटलैंड थे लेकिन अब वुडलैंड बनकर रह गए हैं. इससे घना का वेटलैंड का करीब 11 वर्ग किमी क्षेत्र करीब 8 वर्ग किमी तक सिमट गया है. ये सब पानी की कमी की वजह से हुआ है. इसी का प्रभाव है कि कई प्रजाति के पक्षी यहां आना कम या बिलकुल बंद हो गए हैं. वेटलैंड को बचाए रखने के लिए पांचना बांध का पानी बहुत जरूरी है.


विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (घना) बीते तीन दशक में ग्लोबल वार्मिंग और मौसम के बदलाव के कई हालातों से गुजरा है. दुनियाभर में जिस उद्यान को वेटलैंड के लिए पहचाना जाता है, उसके क्षेत्रफल में भी कमी आई है. 



घना पानी की कमी के दंश को भी करीब दो दशक से झेल रहा है. ऐसे में अब करीब 36 साल बाद फिर से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की आवश्यकता, वेटलैंड की स्थिति पर शोध किया जाएगा.


घना के निदेशक मानस सिंह ने बताया कि 1986 में घना पर शोध हुआ था, जिससे पता चला था कि घना के लिए 550 एमसीएफटी (मिलियन क्यूबिक फीट) पानी की आवश्यकता होती है. उसके बाद अभी तक पानी की जरूरत व अन्य पहलुओं पर दोबारा घना में शोध नहीं हुआ. अब फिर से घना में पानी की जरूरत व अन्य पहलुओं पर शोध करने के लिए प्रपोजल तैयार कर मुख्यालय को भेजा गया है. मुख्यालय की अनुमति मिलते ही शोध शुरू कर दिया जाएगा.


घट गया वेटलैंड क्षेत्र : वर्ष 1986 के शोध के आंकड़ों के अनुसार घना में करीब 11 वर्ग किमी वेटलैंड क्षेत्र था, लेकिन अब उद्यान के कदंब कुंज, एफ 1 और एफ 2 ब्लॉक पूरी तरह से सूख गए हैं. कभी ये ब्लॉक वेटलैंड थे, लेकिन अब वुडलैंड बनकर रह गए हैं. 


घना का वेटलैंड का करीब 11 वर्ग किमी क्षेत्र, करीब 8 वर्ग किमी तक कम होकर रह गया है. ये सब पानी की कमी की वजह से हुआ है. इसी का प्रभाव है कि कई प्रजाति के पक्षियों का यहां आना कम या बिलकुल बंद हो गया है.


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