भरतपुरः राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हर वर्ग को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं प्रदेश में लागू की हैं. उन योजनाओं को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी ब्यूरोक्रेसी को दी है, लेकिन भरतपुर में मुख्यमंत्री अशोल गहलोत की महत्वपूर्ण योजनाओं के साथ अब कलेक्टर आलोक रंजन नया एक्सप्रीमेन्ट कर रहे हैं. जिसकी एक बानगी यह है कि कलेक्टर आलोक रंजन ने पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर कलेक्ट्रेट परिसर में राजीविका के तहत एक महिला स्वयं सहायता समूह को कैंटीन खोलकर स्वरोजगार की इजाजत दे दी.


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जिसके बाद यह स्व सहायता समूह और उसकी संचालक महिला यहां कैंटीन में चाय ,समोसे,कचौड़ी नाश्ता के लिए बेचने लगी. जिससे उसको आमदनी होने लगी. लेकिन 6 माह बीतने के बाद ही अब भरतपुर कलेक्टर आलोक रंजन ने इसी कैंटीन परिसर में नई इंदिरा रसोई भी एक एनजीओ को संचालन के लिये आवंटित कर दी.


एक ही परिसर में इंदिरा रसोई खोलने से पहले से कैंटीन चला रही महिला को खासी परेशानी होने लगी, पहले तो जहां वह नाश्ता बनाती है, वहां से हटाकर उसको कैंटीन के काउंटर में बिठा दिया. कैंटीन के पोस्टर्स के ऊपर ही इंदिरा रसोई के पोस्टर लगा दिए. अब जो लोग कैंटीन में नास्ता करते थे, उनको यह गफलत हो गई कि यह कैंटीन है या इंदिरा रसोई ?


कैंटीन संचालक जिस महिला स्व सहायता समूह को पहले मुख्यमंत्री के निर्देश पर राजीविका के तहत रोजगार दिया था, अब उसका रोजगार छीनने की तैयारी हो रही है. बड़ी बात यह है कि पीड़ित महिला अपनी शिकायत लेकर जब अफसरों के पास पहुंची तो उसे चुप करा दिया कि अब केंटीन के साथ इंदिरा रसोई भी एक साथ चलेगी. बेबस महिला अब दबी जुबान में यह कहती है कि इसमें क्या खेल हुआ है वह बता नही सकती बड़े साहब लोग चाहते है.


ऐसा नही है कि जिस एनजीओ को कलेक्ट्रेट परिसर में इंदिरा रसोई का काम दिया गया है वह एनजीओ पहले से 4 प्रमुख स्थानों पर इंदिरा रसोई और 2 प्रमुख जगह आश्रय स्थल चला रही है, अब आनन-फानन में उसी एनजीओ को फिर से चयनित कर किसी एक को रोजगार छीनकर दूसरे को देना जिला कलक्टर का नया प्रयोग है।


कलेक्टर आलोक रंजन खुद कहते हैं कि इसमें कुछ गलत नही है. कैंटीन और रसोई एक साथ चलने चाहिये यह प्रयोग हमने किया है. इसको अन्य जगह भी लागू करेंगे. ऐसे में सवाल यह है कि जिस मुख्यमंत्री इंदिरा रसोई योजना को सीएम अशोक गहलोत अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताते हैं. उसको लागू करने पर जोर दे रहे हैं. उस स्कीम के साथ अगर इस तरह के प्रयोग ब्यूरोक्रेसी के अफसर करने लगेंगे तो क्या होगा?


गौरतलब है कि भरतपुर शहर में वर्तमान में 25 इंदिरा रसोई संचालित है, इनको संचालन के लिये जो चयन की प्रक्रिया वह कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित कमेटी द्वारा की जाती है. अब उस चयन प्रक्रिया और प्रादर्शिता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. कलेक्टर आलोक रंजन खुद भले ही अपनी पीठ खुद थपथपा लें, लेकिन व्यक्ति विशेष या किसी संस्था विशेष को फायदा पहुचने के लिए यह करना कितना सही है यह तो जनता सब समझती है.


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