Weir: राजस्थान प्रदेश के जिला भरतपुर अन्तर्गत आने वाले वैर विधानसभा के कस्बा भुसावर के प्रसिद्ध रसदार रसीले और स्वाद से भरपूर आम व अचार- मुरब्बा का नाम आते ही हर व्यक्ति के मुंह में पानी आ जाता है. कस्बा भुसावर के आम और अचार-मुरब्बा आज भी देश-विदेश में अपनी पहचान कायम किए हुए है. यहां का अचार विदेशों में भी चटकारे के साथ खाया जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और भूजल स्तर की गिरावट के चलते आम बागान पर गहरा असर हो रहा है, जिससे आधे से बागों में या तो पेड़ सुख गए हैं या फल न देने के कारण उखाड़ दिए गए हैं.


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अब तो हालात ये है कि भुसावर क्षेत्र का प्रसिद्ध टपका और लंगडा आम के विलुप्त होने के चलते इनके स्वाद को लोग तरस गए है. क्षेत्र का भूजल स्तर गिरने के साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण भुसावर में आम का फल मसलन कलमी, देसी टपका, केसर, लंगडा, चूसा, तोताफरी, लखनवी दशहरी आदि का फल पेड़ो के सुख जाने के कारण विलुप्त हो रहा है, जिससे किसान चिंतित है. अब हालात ये है कि अचार की मांग बढ़ने के चलते व्यापारियों को अन्यत्र से अचार के लिए कच्चा माल खरीदकर लाना पड़ रहा है, जिससे मंहगाई भी बढ़ रही है. 


जानकरों ने बताया कि उपखंड में करीब 40 से 50 प्रतिशत आम की बागवानी उजड़ चुकी है, जिसका असर यहां के अचार-मुरब्बा उद्योग पर पड़ा है जो उपखंड क्षेत्र के लोगों की जीविकोपार्जन का मुख्य स्त्रोत हुआ करता था. वहीं, कईयों ने अपना कारोबार बदल लिया है, जिससे यहां का व्यवसाय ठप हुआ है. 


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महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह को पसंद था भुसावर का आम 
जानकारों ने बताया कि लंबे अर्से से अचार-मुरब्बा बनाकर कस्बे के व्यापारी अन्यत्र बेचने जाते थे. महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह को अचार-मुरब्बा बहुत पसंद था, जो अर्दली को भेज कर प्रति सप्ताह भुसावर से ताजा आम और अचार-मुरब्बा मंगवाते थे. महाराजा विजेंद्रसिंह वर्ष 1945-46 में भुसावर पधारे, जिन्होंने यहां के व्यापारियों से भरतपुर में बाजार स्थापित करने की बात रखी और फिर भरतपुर में बाजार लगवाया. ग्राहकी कम देख भुसावर से गए व्यापारी उदास थे, जिसकी भनक महाराज को लगी तो उन्होंने सभी व्यापारियों का अचार-मुरब्बा खरीदकर प्रजा को बांट दिया. 


अकबर को पसंद था भुसावर का आम
बुजुर्गो ने बताया कि जहांगीर के पिता अकबर को भुसावर के आम इस कदर पसंद थे कि उन्होंने आमों के टुकड़ों को शहद में महफूज करने का हुक्म दिया था ताकि जब आम का मौसम जाए तो उसका मजा लिया जा सकें. जानकारों का मानना है कि शहद एक बेहतरीन रक्षक है. उसे इसका ज़ायका पसंद था. अकबारनामा में दर्ज है कि 1571 में एक बार अकबर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाते वक्त भुसावर होकर गुजरते समय वर्तमान बस स्टैंड पर स्थित इमली वाले स्थान पर रुके थे और उनके साथ उनकी फौज ने भी चौसा आम का स्वाद लिया था. 


राजहंस कलमी बाग भुसावर प्रबन्धक चंदराम गर्जर ने बताया कि सरकारी बाग सहित क्षेत्र में 3 हजार से अधिक आम के पेड़ लगे हुए है, सरकारी बाग में नए पौधा लगाकर किसानों को आम की पौध उपलब्ध कराई जाती है. आम की बागवानी का कम होने का मुख्य कारण है भू-जल स्तर का गिरावट, जलवायु परिवर्तन है. यहां का लंगड़ा, केसर, दशहरी, चौसा, बादामी, काला आदि आम की किस्म है. देशी आम के पेड़ के फल से केवल अचार और मुरब्बा तैयार होता है, जो इस वर्ष कम आया है. कोई समय मे यहां बागवानी आबाद हुआ करती थी, जो अब उजाड़ के कगार पर है यह चिंता का विषय है. 


Reporter- Devendra Singh


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