Bhilwara News: इतिहास की पुस्तकों से मिली पूर्वजों की जानकारी, तो... सुध लेने मांडल पहुंचा कच्छवाहा वंश का कुनबा
Bhilwara News: भीलवाड़ा जिले में जयपुर एरिया के करीब 40 गांवों में बसे महाराव खंगारजी कच्छवाहा के वंशज दिवाली के दूसरे दिन मांडल पहुंचे. मांडल आकर राव कच्छवाहा की 32 खंभों की छतरी के समीप बनी तीन छतरियों में से बीच वाली छतरी के बारे में जानकारी ली.
Bhilwara News: राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में जयपुर एरिया के करीब 40 गांवों में बसे महाराव खंगारजी कच्छवाहा के वंशज दिवाली के दूसरे दिन मांडल पहुंचे. जितेंद्र सिंह खंगारोत ने बताया कि राजपूत वंशजों की ऐतिहासिक पुस्तकों में मेवाड़ क्षेत्र के मांडल में उनके पूर्वजों की जानकारी मिली. मांडल आकर राव कच्छवाहा की 32 खंभों की छतरी के समीप बनी तीन छतरियों में से बीच वाली छतरी के बारे में जानकारी ली.
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इस पर छतरी महाराव खंगारजी कच्छवाहा की होना सामने आया. इसके बाद जयपुर क्षेत्र के करीब 40 गांवों में बसे उनके वंशज मांडल मेजा रोड स्थित छतरी स्थल पहुंचे. छतरी की साफ-सफाई कर पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए हवन-पूजन किया. अब हर साल भाई-दूज पर एकत्र होकर आयोजन रखने की घोषणा की. महाराव खंगारजी कच्छवाहा के वंशज जितेंद्र सिंह ने बताया कि महाराव खंगार आमेर नरेश पृथ्वीराज के पोते और महाराव जगमाल के बेटे थे.
आमेर नरेश पृथ्वीराज मेवाड़ में महाराणा सांगा के बहनोई थे. खानवा युद्ध में महाराणा सांगा के साथ लड़े थे. महाराणा सांगा ने महाराव जगमाल को मांडल की जागीरी दी थी. जो उनके बाद उनके बेटे महाराव खंगार को मिली. एक बार महाराव खंगार एवं राव जगनाथ कच्छवाहा मांडल में रात्रि विश्राम कर रहे थे. तब दुश्मनों ने आक्रमण कर दिया. राव जगनाथ कच्छवाहा और महाराव खंगार कच्छवाहा सैनिकों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए.
वीरगति स्थल पर राव जगनाथ कच्छवाहा की छतरी (32 खंभों) और महाराव खंगार (12 खंभों) की छतरी का निर्माण करवाया गया. यहां कई छतरियां धरोहर बन चुकी हैं. जयपुर से आए ओम शिव प्रताप सिंह खंगारोत महेशवास, गिरिराज सिंह खंगारोत रोजड़ी, भूपेंद्र सिंह खंगारोत हिरनोदा, नरपत सिंह खंगारोत ढिंढा, कालू सिंह खंगारोत रोजड़ी, वीरेन सिंह खंगारोत ढिंढा, जितेंद्र बजरंग सिंह खंगारोत भगवतपुरा, अरविंद सिंह खंगारोत रोजड़ी, घणादित्य सिंह खंगारोत प्रतापपुरा शामिल रहे.
महावीर सिंह खंगारोत प्रतापपुरा, प्रेम सिंह खंगारोत माल्यावास, जितेंद्र सिंह खंगारोत हिरनोदा, जितेंद्र अर्जुन सिंह खंगारोत भगवतपुरा, हिमांशु प्रताप सिंह खंगारोत पाडली, महिपाल सिंह खंगारोत उदयपुरिया, योगेंद्र सिंह खंगारोत उदयपुरिया, नरेंद्र सिंह खंगारोत उदयपुरिया, ओमपाल सिंह खंगारोत रोजड़ी, विक्रम सिंह खंगारोत रोजड़ी, राजेंद्र सिंह खंगारोत रोजड़ी, रघुवीर सिंह खंगारोत रोजड़ी, शंभू सिंह खंगारोत भगवतपुरा, जयदीप सिंह खंगारोत भगवतपुरा, लाखन सिंह खंगारोत रोजड़ी भी शामिल रहे.
साथ ही सूर्यप्रताप सिंह खंगारोत रोजड़ी, भगवान सिंह खंगारोत रोजड़ी, पूरण सिंह खंगारोत जयसिंहपुरा, दिलीप सिंह खंगारोत झरना, भंवर सिंह खंगारोत खिरिया, अजय सिंह खंगारोत गहलोता, ऋषभ सिंह खंगारोत गहलोता, राजेंद्र सिंह खंगारोत गहलोता, विजय सिंह खंगारोत गहलोता, गजराज सिंह खंगारोत गहलोता, सुरेंद्र सिंह खंगारोत गहलोता, करण सिंह खंगारोत गणपतया खेड़ा, वीरेंदर सिंह खंगारोत गदड़ी ने पूर्वजों के स्थल पर हवन किया.