Mandal, Bhilwara News: भीलवाड़ा जिले में शायद ही ऐसा कोई गांव होगा, जहां होली के त्योहार पर चंग की थाप पर नियमित 10 दिनों तक फाग के गीत गाए जाते हैं. राजस्थानी साहित्य कला गैर नृत्य जाता है. दाता कला सरपंच देवा लाल जाट ने बताया कि उनके गांव में विगत 400 से अधिक वर्षों से पारंपरिक और साहित्यिक प्रथा को जिंदा रखने का प्रयास किया जाता रहा है.


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ग्रामीणों की एकजुटता और सांस्कृतिक परंपरा को बचाने के उद्देश्य से ग्रामीण गांव चौपाल में होलिका दहन के 10 दिनों पूर्व से चंग की थाप पर फाग के गीत गाते हैं. यहां बिल्कुल वैसा होता है, जैसा मारवाड़ क्षेत्र में फाग महोत्सव मनाया जाता है.



गांव के बुजुर्ग और युवा एक साथ फाग के गीत गाते हैं और गैर नृत्य करते हैं. सपरंच जाट ने बताया कि ऐसे कार्यक्रम इसीलिए आयोजित किए जाते हैं ताकि आज के पाश्चात्य संस्कृति की होड़ में युवा अपनी संस्कृति को ना भूलें. गांव के बुजुर्गो की भावनाओं में खासा उत्साह देखा जाता है. गांव में ऐसे कई सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजित होते हैं.


ग्रामीणों का मानना है कि ऐसे आयोजनों से गांव में धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल बना रहता है. साथ ही गांव में खुशी के माहौल से लोगों तनाव जैसी बीमारियां नहीं पनपती हैं. अधिकांशत: लोगों की उम्र यहां दूसरे गांवों के लोगों से अधिक पाई जाती है. इसका सीधा कारण यहां के पारंपरिक और धार्मिक कार्यक्रमों में ग्रामीणों की लगातार भूमिका है.


ग्रामीणों का कहना है कि गांव में इन आयोजनों से धार्मिक और सांस्कृतिक के साथ हास्य और खुशी का माहौल बना रखता है. इस कारण यहां लोगों में मानसिक तनाव जैसी बीमारियां नहीं पनपती हैं. ग्रामीणों का ऐसे आयोजनों की ऐसी रुचि है कि वे दूर-दराज राज्यों में नौकरी और व्यापार को छोड़कर होली के 10 दिनों पहले से गांव चलकर आते हैं और पहले के कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. 


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