Jahazpur, Bhilwara News: शाहपुरा के कोटडी उपखंड क्षेत्र के हाजीवास गांव में धनतेरस पर्व पर आज महिलाओं ने भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी के प्रतीक के रूप में पीली मिट्टी घर लाने की परंपरा निभाई. इसे लक्ष्मी के रूप में मानते हुए घर और पूजा स्थान पर लिपा गया, जिससे लक्ष्मी का वास माना जाता है.


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धनतेरस के अवसर पर मेवाड़ में सोना-चांदी के जेवरात खरीदने की परंपरा के साथ ही, अल सुबह पीली मिट्टी की पूजा कर उसे घर लाने का रिवाज है. इसे घर पर लाने से संपन्नता का वास होता है. हाजीवास निवासी श्यामा देवी पारीक ने बताया कि माना जाता है कि जितनी अधिक मिट्टी लाएंगे, उतनी ही अधिक समृद्धि घर में होगी. 



कस्बे के पास पीली मिट्टी की एक छोटी खदान है, जहां से महिलाएं पूजा-अर्चना करके पीली मिट्टी लाती हैं. आज धनतेरस पर महिलाएं सुबह-सुबह ही पीली मिट्टी लेने के लिए गईं. खदान पर चारों ओर मिट्टी निकालने वालों की भीड़ दिखाई दी और महिलाएं अपने परिजनों के साथ गईं. 



खदान पर पहुंचने से पहले, महिलाओं ने वहां दीपक और अगरबत्ती लगाकर पूजा की और फिर मिट्टी निकाली. रास्ते में कुम्हारिया बावजी के पास इस मिट्टी से स्वास्तिक बनाकर वहां भी पूजा की गई. इसके बाद, यह मिट्टी घर लाने के लिए तैयार की गई. घर पहुंचने पर इसे पूजा करने से पूर्व पूजा स्थल पर लीपा जाएगा. 



वहीं, मिट्टी के दीपक से जहां दीपावली का पर्व रोशन होता है. वहीं मिट्टी का दीपक अपने आप में सांस्कृतिक विरासत के तौर पर देखा जाता है. हिंदू धर्म में दीपक जलाने का महत्व है और यह दीपक किन-किन चरणों से गुजरकर मिट्टी से बनता है. 



दीपक बनाने वाले हीरा लाल प्रजापति ने बताया कि मिट्टी का दीपक बनाने की प्रक्रिया मूलतः 5 चरणों में होती है. पहले चरण में कंकड़ रहित मिट्टी का चयन खेतों से किया जाता है. दूसरे चरण में मिट्टी को गीला करके 2 से 3 दिन तक रखा जाता है. फिर गूंथकर मिट्टी को नरम कर लिया जाता है. 



तीसरे चरण में, मिट्टी चक्री पर रखकर दीपक को आकार देने का काम किया जाता है. चौथे चरण में इन्हें धूप में सुखाने के लिए रखा जाता है. इसके बाद पांचवें और अंतिम चरण में, तेज आग वाली भट्टी में इसे गर्म किया जाता है, तब जाकर दीपक बनकर तैयार होता है. दीपावली नजदीक है दीपक ,धुपदान, करवा, कलश बनाकर तैयार हैं लेकिन अभी तक ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं.