Jahazpur : श्री चारभुजानाथ का 10 मंदिरों से आये बेवाण से मिलन, सभी को सरोवर में झुलाया गया, भक्तों की आंखे हुई नम
अक्सर चारभुजानाथ के बेवाण से अन्य 10 मन्दिरों से पंहुचे भगवान के बेवाण का मिलन अद्भुत होता है और इसे देखने वाले भक्तों की आंखे खुशी से नम हो जाती है.
Jahazpur : राजस्थान के भीलवाड़ा के एतिहासिक धार्मिक स्थल कोटड़ी मुख्यालय पर भगवान श्री चारभुजानाथ के जलझूलनी एकादशी महोत्सव पर मुख्य बाजार और मन्दिर प्रांगण, विशेष रोशनी से नहा गया. मेले में प्रशासन और पंचायत के अलावा चारभुजा मंदिर ट्रस्ट की तरफ से अच्छी सुविधा की गयी.
एतिहासिक मेले के पहले दिन, पदयात्रियों के कोटड़ी सड़क पर चहल-कदमी देखने को मिली. जिनके लिए जगह जगह पर लंगर लगाये गये थे. जिले में आने वाली बसों में भी सोमवार से ही भीड़ दिख रही है. जिसको लेकर पुलिस प्रशासन सतर्क रहा. इलाके में अच्छी बरसात और पिछले दो सालों से कोरोना महामारी के चलते मेले में पदयात्रा कर भक्त नहीं पंहुचे थे, लेकिन इस साल भक्तों की संख्या में बढ़ोतरी होने के चलते चाकचौबन्द व्यवस्थाएं की गयी है. वही धर्माऊ तालाब के लबालब होने के चलते भी पुलिस सतर्क रही.
जनवरी 2023 तक इन चार राशि वालों के कदम चूमेगी सफलता, होगा फायदा ही फायदा
मेले में मिठाई, जुत्ता, स्टेशनरी, मनिहारी, खिलौना समेत कई दुकानदारों की स्टॉल लगे. मेले की तैयारियों को लेकर उपखण्ड अधिकारी गोविन्द सिंह भीचर, तहसीलदार रामजी लाल गुर्जर, थाना प्रभारी खींवसर गुर्जर सहित सभी विभागीय अधिकारी ने मेले प्रांगण और जलझूलन महोत्सव स्थल का नियमित भृमण कर आवश्यक दिशा निर्देश दे रहे है. मेले में कानून व्यवस्था के लिए पुलिस ने अतिरिक्त पुलिस बल बुलाया गया है.
ग्यारह भगवान एतिहासिक मिलन
भगवान श्री चारभुजानाथ के जलझूलनी महोत्सव का नजारा उस समय काफी रोचक बन जाता है, जब ग्यारह मन्दिरों में विराजित भगवान की प्रतिमाएं अलग-अलग बेवाण में विराजमान होकर जलझूलन को निकलकर कस्बे के मुख्य बाजार स्थित चौकी के मन्दिर पर एक साथ मिलती हैं.
भगवान चारभुजानाथ के बड़े भाई चौकी के मन्दिर के चारभुजानाथ का मिलने का नजारा विशेष रहता है. भगवान श्रीचारभुजानाथ की निज प्रतिमा जलझूलनी के लिए विहार कर अपने निज धाम को छोड़ कर जैसे-जैसे आगे बढ़ते, तो रास्ते में पड़ने वाले मन्दिरों के साथ ही सभी बेवाण में मन्दिर में विराजित निज प्रतिमाओं में नृसिंहद्वारा से नृसिंह भगवान, डीडवानिया मन्दिर से भगवान राधा कृष्ण, वैष्णव मन्दिर से भगवान राम जानकी, महंत मन्दिर से भगवान रघुनाथ, आंवलीवाला मन्दिर से भगवान राधा कृष्ण, चौकी के मन्दिर से भगवान श्री चारभुजानाथ के बड़े भाई चारभुजानाथ, गढ़ में स्थित मन्दिर से भगवान लक्ष्मीनाथ, लढ़ा मोहल्ला के मन्दिर से भगवान राधा कृष्ण, अहीर मोहल्ला के भगवान रघुनाथजी और तोषनीवाल मोहल्ले से भगवान सत्यनारायण बेवाण में विराजमान हो कर जलझूलन को रवाना हो जाते है. सभी भगवान सरोवर पर एक-एक कर पानी में डुबकी के बाद सोनी घाट और शिवालय चौक पर सामूहिक आरती के बाद अपने निजधाम पर पंहुचते है.
Aaj Ka Rashifal : मेष को प्यार में मिलेगा धोखा, तुला बॉस से बहस ना करें
अक्सर चारभुजानाथ के बेवाण से अन्य 10 मन्दिरों से पंहुचे भगवान के बेवाण का मिलन अद्भुत होता है और इसे देखने वाले भक्तों की आंखे खुशी से नम हो जाती है. चौकी के मन्दिर से धीरे-धीरे बेवाण शाम ढ़लने के साथ ही सरोवर पर पंहुचते है, जहां एक-एक कर सभी भगवानों को सरोवर में झुलाया जाता है और आखिर में भगवान श्री चारभुजानाथ झूलते हैं.
इसके बाद घाट पर ही सभी की एकसाथ आरती करने के बाद वापस निजधाम की ओर प्रस्थान करते है. सभी भगवान की रेवाड़ियां शिवालय चौक में पंहुचकर अर्द्ध चन्द्राकार में खड़े हो कर सामूहिक आरती के बाद 11 में से 5 बेवाण में विराजित भगवान अपने निज धाम को रवाना हो जाते है लेकिन 6 बेवाण भजनों की सरीता के साथ चलते चोकी के मन्दिर पंहुचते है. जहां फिर से विदाई का नजारा रहता है.
बड़े और छोटे चारभुजानाथ एक साल के लिए बिछुड़ने वाले होते हैं ऐसे में दोनों बेवाण को मिलाया जाता है और मिलने के बाद सभी बेवाण वहां से निज मन्दिर में पंहुचते है. भगवान श्रीचारभुजानाथ को बड़ी संख्या में भक्तों की उपस्थिति में मन्दिर में प्रवेश कराया गया और मेला संपन्न हो गया.
भगवान को धारण होने वाला बागा हुआ तैयार
भगवान श्री चारभुजा नाथ के रेवाड़ी में विराजमान होने से पहले पुरानी मान्यता के अनुसार गांव के पटेल, कपड़ा लाकर मंदिर परिसर में ही दर्जी समाज के हाथों की सुई से भगवान को पहनाई जाने वाले बागा को तैयार करते हैं. दर्जी समाज में लाल टूल का बागा तैयार कर प्रभु के चरणों में अर्पित किया जाता है और उसी बागी को पहनकर भगवान जल झूलन को निकलते हैं.
रिपोर्टर- दिलशाद खान
भीलवाड़ा की खबरों के लिए क्लिक करें
राजस्थान का वो गांव जहां बेटी की इज्जत बचाने के लिए रातों-रात पसर गया सन्नाटा