Bhilwara News: भीलवाड़ा जिले के सबसे बड़े महात्मा गांधी चिकित्सालय में सामने आए चिकित्सकों के इलाज के नाम पर भ्रष्टाचार के खेल के मामले में जांच कमेटी अब तक भी अपनी रिपोर्ट पेश नहीं कर पाई है. वजह है दोषी डॉक्टर को बचाने की कोशिश. दरअसल जांच कमेटी में ही शामिल डॉक्टर दिनेश बेरवा पर रिश्वत के आरोपी डॉक्टर महेश बैरवा को बचाने के लिए पीड़ित को धमकी देने के आरोप लग रहे हैं.


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पीड़ित के शिकायतकर्ता बेटे यश कुमार ने जी मीडिया से खास बातचीत के दौरान कहा कि करीब एक सप्ताह का वक्त बीत जाने के बावजूद अब तक भी दोषी डॉक्टर महेश बेरवा के खिलाफ एक्शन नहीं लिया गया है. आपको बता दे की भीलवाड़ा जिले के सबसे बड़े महात्मा गांधी चिकित्सालय में ऑर्थोपेडिक डॉक्टर महेश बेरवा द्वारा दलालों के जरिए रिश्वतखोरी का रैकेट चलाया जा रहा है. पीड़ित मुरलीधर सिंधी जिनका 4 सितंबर को मांडलगढ़ में हादसा हुआ उन्हें एमजी अस्पताल लाया गया तो भामाशाह में नहीं होने का फायदा उठाकर डॉक्टर महेश बैरवा ने उन्हें एक दलाल के नंबर दिए यह नंबर एमजी हॉस्पिटल की सरकारी पर्ची के ऊपर लिखकर दिए गए थे. 



जब पीड़ित का बेटा यश कुमार सिंधी नंबर पर फोन कर दलाल से मिलने पहुंचा तो दलाल ने उसे 18 और 28 हजार रुपए की प्लेट एमजी हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर तक पहुंचाने की बात कही. ना पैसे की कोई रसीद दी जा रही थी ना ही समान परिजनों को दिया जा रहा था. शंका के आधार पर जब उसने पैसे देने से इनकार कर दिया तो डॉक्टर बैरवा ने ऑपरेशन करने से ही इनकार कर दिया और धमकी दी कि यदि मेरे बताएं दलाल से सामान नहीं खरीदा तो तेरे बाप को पैरों पर कौन खड़ा करता है में देख लूंगा. 



धमकी देने के बाद जब पीड़ित के बेटे ने संसद दामोदर अग्रवाल से डॉक्टर को फोन करवाया तो खानापूर्ति के नाम पर ऑपरेशन कर पीड़ित को डॉक्टर महेश बैरवा ने ऐसा दर्द दिया कि अब वह इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर है. इस पूरे घटनाक्रम की लिखित में मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल डॉक्टर वर्षा सिंह और एमजी हॉस्पिटल के पीएमओ डॉक्टर अरुण गौड़ को शिकायत करने के बावजूद अब तक भी दोषी डॉक्टर महेश बेरवा के खिलाफ एक्शन नहीं लिया गया है. 



बताया जा रहा है की महेश बेरवा खुद को डिप्टी सीएम प्रेमचंद बेरवा का रिश्तेदार बताकर हॉस्पिटल में अपनी धाक जमाता है शायद यही वजह है कि चिकित्सा विभाग उसके खिलाफ कार्रवाई करने से कतरा रहा है और जांच कमेटी में शामिल डॉक्टरों द्वारा ही पीड़ित को समझौते का दबाव बनाकर धमकियां दी जा रही है.



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