भीलवाड़ा में शिक्षकों ने बदली स्कूल की तस्वीर, जिद और जुनून से सरकारी स्कूल का चेहरा बदला
भीलवाड़ा जिले में कोटड़ी उपखंड क्षेत्र के गेहूंली ग्राम पंचायत के ऊकारपुरा गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक आजाद कुमार ने तीन के अपने इस कार्यकाल में विद्यालय की सुरत ही बदल कर रख दी. आज इनकी चर्चा पूरे इलाके में हो रही है.
Bhilwara News: राजस्थान में एक प्रसिद्ध कहाबत है....दस कुएं के बराबर होती है एक बावड़ी, दस बावड़ी के बराबर होता है एक सरोवर और दस सरोवर के समान एक पुत्र होता है और दस पुत्रों के समान एक वृक्ष होता है. पर्यावरण के संतुलन में वृक्षों का महान योगदान है और इसी योगदान के बारे में ये बात मत्स्य पुराण में कही गई है. ये बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी की पहले थी.
कोरोना महामारी के इस दौर में पर्यावरण संरक्षण का महत्व प्रकृति ने सभी को स्वत: ही समझा दिया है. जिन सांसों को हम ऑक्सीजन सिलेंडर के रूप में प्रकृति से ही उधार ले रहे हैं, उन सांसों को बचाने के लिए अब भी इस पर्यावरण को संरक्षित नहीं किया गया तो फिर इन सांसों को प्राणवायु कोई नहीं दे पाएगा. इसलिए जरूरी है कि हम जहां हैं उसी जगह को पर्यावरण के अनुकूल बना दें, कुछ यही प्रयास किया है गांव के एक शिक्षक ने.
3 साल में विद्यालय को किया चमन
ये जब प्रधानाध्यापक बन कर पहली बार विद्यालय पहुंचे तो यहां पूरी तरह उजड़ा हुआ था. यहां ना तो एक पौधा था और ना ही कोई पानी की व्यवस्था. जिससे हरियाली करने की बात सोची जा सके. लेकिन, इन्होंने अपने प्रयासों से आज इस विद्यालय को हरा भरा व चमन कर दिया है. भीलवाड़ा जिले में कोटड़ी उपखंड क्षेत्र के गेहूंली ग्राम पंचायत के ऊकारपुरा गांव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक आजाद कुमार ने बताया कि इस विद्यालय की स्थिति सूखे से कम नहीं थी, वहां आज 200 से अधिक पेड़-पौधे व हरा भरा गार्डन है. पेड़ पौधों में नीम, केला, पीपल, शीशम, ओलोस्टोलिया व अन्य प्रजातियों के कई पौधे हैं. आयुर्वेदिक में तुलसी, गिलॉय, एलोविरा, ढाक, मीठा नीम, सेजल जैसे पेड़-पौधे हैं.
आधा किलोमीटर दूर बाल्टी के पानी से पौधे की सिंचाई
प्रधानाध्यापक आजाद ने कहा कि गर्मियों में पौधों की सिंचाई के लिए स्कूल से आधा किलो मीटर दूर पानी की टंकी से हाथों में बाल्टी लेकर पौधों की सिंचाई करते थे, जैसे जैसे पौधे की संख्या बढ़ती गई, तो पानी के ट्रैक्टरों से पिलाते थे, प्रधानाध्यापक आजाद के इस पर्यावरण के प्रति इस जज्बे को देखकर सरपंच भुपेंद्र सिंह व ग्रामीणों पर्यावरण की सेवा में हाथ बढाए. लॉकडाउन के दौरान जब स्कूल बंद रहे तब एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब स्कूल जाकर पेड़-पौधों की देखभाल ना की हो. अब उसी का नतीजा है कि इस स्कूल की सराहना हर कोई करता है. वे विद्यार्थियों और ग्रामीणों को भी पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करते हैं.
विद्यालय की बदली सुरत
प्रधानाध्यापक आजाद कुमार ने तीन के अपने इस कार्यकाल में विद्यालय की सुरत ही बदल कर रख दी, जब आजाद विद्यालय में में आये तो उस समय विद्यालय की हालत जर्जर थी, स्कूल की जर्जर हालत को देखते हुए गेहूंली सरपंच भुपेंद्र सिंह को अवगत करवाया, सरपंच ने प्रधानाध्यापक आजाद के पर्यावरण के प्रति लगाव व बच्चों की पढ़ाई व खेलकूद को देखते हुए, विद्यालय में खेल सामग्री उपलब्ध करवाई, साथ ही ग्रामीण की मदद से विद्यालय भवन की मरम्मत करवाते हुए रंग रोबन करवाया, साथ ही विद्यालय की चार दिवारी को सही करते हुए, उबड़ खाबड़ जगह को सही कराते हुए समतल कर सीसी आ निर्माण करवाया. अब विद्यालय छोटा लघु उद्यान लग रहा, जो ग्रामीण के लिए एक सेल्फ पॉइंट बन गया.