Bikaner: बीकानेर में हजारों मृत गायों की फोटो वायरल, लंपी स्किन से मौत का दावा !
राजस्थान में इन दिनों लंपी स्किन से हजारों गायों की मौत हो रही है. संयुक्त निदेशक पशुपालन, उपवन संरक्षक वन्य जीव बीकानेर के साथ जोडबीड़ स्थित मृत पशु डंपिग यार्ड का मौका देखा गया. इस दौरान करीब 1000 पशुओं की हड्डियां सूखने के लिए अलग अलग स्थानों पर छोड़ी गई हैं.
Bikaner: राजस्थान में इन दिनों लंपी स्किन से हजारों गायों की मौत हो रही है. इसी बीच बीकानेर की एक तस्वीर वायरल हो रही है. इस वायरल तस्वीर में दावा किया जा रहा है कि आसपास के इलाके की मृत गायें है. और इन गायों की मौत लंपी स्किन से हुई है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या इन गायों की वाकई लंपी स्किन से मौत हुई. क्या तस्वीरों में दिख रहें सभी मृत पशु गौवंश ही है. क्या ये सभी मृत पशु पास के ही एक दो गांवों के है. या इसकी सच्चाई कुछ और है. तस्वीर वायरल होने के बाद शासन प्रशासन हरकत में आया. बीकानेर नगर निगम ने मौका रिपोर्ट तैयार कराई.
क्या कहना है नगर निगम का
नगर निगम की ओर से हर साल मृत पशुओं के शवों को उठाने के लिए ठेका दिया जाता है. विगत 50 वर्षों से जिले के जोडबीड़ में मृत पशुओं के शवों का निस्तारण किया जाता है. लंपी बीमारी के चलते यहा प्रतिदिन जिले से 80 से 100 मृत पशुओं का निस्तारण यहां किया जा रहा है. जोडबीड एक गिद्ध संरक्षण क्षेत्र है और ऐसे में यहां मृत गायों को डालने पर वे गिद्घों के भोजन के रूप में खाद्य श्रृंखला का संतुलन बना रहें हैं.
संयुक्त निदेशक ने देखा डंपिंग यार्ड
संयुक्त निदेशक पशुपालन, उपवन संरक्षक वन्य जीव बीकानेर के साथ जोडबीड़ स्थित मृत पशु डंपिग यार्ड का मौका देखा गया. इस दौरान करीब 1000 पशुओं की हड्डियां सूखने के लिए अलग अलग स्थानों पर छोड़ी गई हैं. पशुओं की हड्डियों को सूखने में लगभग 1 महीने का समय लगता है. डंपिग यार्ड में गिद्धों और कुत्तों को जगह जगह घूमते देखा गया जो मृत पशुओं को खा कर अपनी भूख शांत कर रहें थे. ठेकेदारों का कहना है कि फिलहाल रामदेवरा और पूनासार मेले व पदयात्राओं के चलते श्रमिक कम हैं, इसलिए चमड़ा निकालने का काम धीमा पड़ गया है, इसलिए इस क्षेत्र में ज्यादा हड्डियां और पशुशव एकत्रित हो गए हैं.
गिद्ध हैं प्रकृति के सफाई कर्मी
जोड़बीड गिद्ध संरक्षण क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है, ऐसे में यहां पर मृत गौवंश के शवों का निस्तारण किया जा रहा है. जिससे गिद्ध इन्हें आहार के रूप में लेकर प्रकृति का संतुलन बनाए रखें. इसके अतिरिक्त गौशाला संचालक एवं आस पास के गावों के ग्रामवासी भी अपने मृत पशु यहां डालते हैं. यहां पर पड़े मृत पशुओं को गिद्ध, रेप्टर्स एवं कुत्ते अपना भोजन बनाते हैं, गिद्ध प्रकृति के सफाई कर्मीहैं और यह स्थल मिस्र के गिद्ध, हिमालयी ग्रिफॉन, यूरेशियन गिद्ध, सिनेरियस गिद्ध, पतले बाल वाले गिद्ध, गिद्ध, लंबे बाल वाले गिद्ध, सफेद पूंछ वाले गिद्ध और लाल सिर वाले गिद्ध के लिये विश्व प्रसिद्ध है.
प्रदेश में फैल रही लंपी बीमारी के कारण हजारों गौवंश अपनी जान गंवा चुके हैं. लंपी वाइरस के कहर के चलते गौपालकों और पशुपालकों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं. लंपी बीमारी के साथ एक और बड़ी समस्या है मृत गौवंश के शवों का निस्तारण. सरकारी रिकॉर्ड की बात करें तो अब तक ढाई हजार गायें मरी हैं, लेकिन हकीकत ये है कि हर रोज दो सौ गाय दम तोड़ रही है और आंकड़ा दस से बीस हजार तक पहुंच गया है. अकेले बीकानेर में हर रोज ढाई सौ से तीन सौ गाय जान गंवा रही हैं. ऐसे में शहर की गायों को नगर निगम द्वारा शहर से थोड़ी दूरी पर जंगल एरिया के डंपिंग यार्ड जोडबीड़ गिद्ध संरक्षण क्षेत्र में निस्तारित किया जा रहा है, जहां प्रकृति के सफाई कर्मी के तौर पर पहचाने जाने वाले गिद्ध उन्हें खा रहें हैं. ऐसे में बीहड़ क्षेत्र सुजानदेसर, करमिसर और नाल क्षेत्र में पशुओं को दफनाया जा रहा है.
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