Chittorgarh News: अयोध्या मंदिर में 22 जनवरी को  प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है. इस प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर पूरे देश के रामभक्तों में उत्साह का माहोल नजर आ रहा. इसी क्रम में चित्तौड़गढ़ के प्राचीन दुर्ग में राणा कुंभा की ओर से निर्मित श्रीराम जानकी मंदिर में भी पूजा पाठ और अनुष्ठान कार्यक्रम चल रहे है.


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आठ पीढ़ी से श्रीराम जानकी मंदिर में प्रभु श्रीराम की सेवा कर रहे सेवादार परिवार के पुजारी चंद्रेश ने प्राचीन मंदिर की महत्ता को बताया. पूजारी  ने  बताया सन् 1448 में राणा कुम्भा ने अपने प्राचीन दुर्ग ने इस श्री राम जानकी मंदिर का निर्माण करवाया था. किले की सुरक्षा के लिए महाराणा कुम्भा ने सात दरवाजे बनाए थे, जिनमें से जो अंतिम दरवाजा था राम ढ्योढी इस दरवाजे को कहते है . 


कौन है महाराणा कुम्भा 
महाराणा कुम्भा को चित्तौड़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता भी कहा जाता हैं क्योंकि इन्होंने चित्तौड़ दुर्ग के कई सारे हिस्से  वर्तमान भाग का निर्माण कराया. मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया. 35 वर्ष की अल्पायु में उनके जरिए बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं.  वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं. उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है. 


कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी. ‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है.


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