Badi Sadri: सनातन धर्म की परंपराओं को छोड़ने से भारत बीमार हुआ उक्त बात भागवत कथा धर्म ज्ञान के मौके पर पंडित राधेश्याम सुखवाल ने कही. उनके द्वारा बताया गया कि सनातन हिंदू परंपराओं एवं मान्यताओं को आधुनिकता के नाम पर बढ़ावा देने तथा उनको त्यागने के कारण वर्तमान भारत की अधिकांश जनसंख्या बीमार है. गरुड़ पुराण के सूतक निवारण पर चर्चा करते हुए गौ भक्त पंडित राधेश्याम सुखवाल ने बताया कि सनातन हिंदू परंपराओं में सूतक का विशेष महत्व था. इसकी पूर्ण पालना करने से घर परिवार और समाज में शुद्धता और पवित्रता का वातावरण बनता था.


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जिससे अनेक बीमारियों से इंसान बचा हुआ था. मृतक सूतक 11 दिन, जन्म सूतक 5 से 21 दिन और चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का सूतक 12 से 16 घंटे का होता है. इस दौरान अन्न जल ग्रहण करना अनेक बीमारियों को आमंत्रण देना होता है. अशुद्धता से बचने के लिए हमारे पूर्वज तैयार अनाज में दाब रखकर सुरक्षित रखते थे. वर्तमान वैज्ञानिक ने डॉब को अत्यधिक पॉजिटिव ऊर्जा वाला पादप बताया है. इसी प्रकार जन्म और मृत्यु सूतक में उस परिवार का अन्न जल ग्रहण करने से 1 वर्ष के पास पुण्य नष्ट होने का विधान इसलिए बताया है ताकि आमजन अनेक बीमारियों से बच सके.


आदिकाल में इसकी पूर्ण मान्यता थी और इसका परिणाम था कि संपूर्ण भारत वर्ष में औषधालय कम और गुरुकुल अधिक नजर आते थे. वर्तमान समय में हर गली मोहल्ले में एक औषधालय बना है. शिक्षा के लिए विद्यार्थियों को विदेशों में जाना पड़ रहा है. सनातन परंपराओं की पुनर्स्थापना के लिए प्रारंभ की गई गौगायत्री आध्यात्मिक शक्ति कलश पदयात्रा एक सौ 11वां दिन डूंगला में खाकलदेव जी के मंदिर पर आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए पंडित सुखवाल ने उक्त विचार प्रकट किए. सभा में नगर एवं आसपास के अनेक महिला पुरुषों ने भाग लिया एवं सत्संग को और अधिक दिन तक यहीं पर करने का आग्रह ग्राम वासियों द्वारा किया गया.


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सत्संग प्रतिदिन अलग-अलग स्थानों पर दोपहर 4 से 6 और रात्रि 8 से 10 बजे तक होता है.सत्संग आयोजन में ठाकुर अर्जुन सिंह, उदय राम सुथार,किशन पुजारी, मोहनलाल तेली सहित ग्राम अमरपुरा निवासी महिला मंडलों का विशेष योगदान एवं भागीदारी की जा रही है.


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