Chittorgarh: चित्तौड़गढ़ जिला कारागृह में पिछले 25 दिनों सिलसिलेवार तरीके से अलग अलग तलाशी के दौरान 5 मोबाइल मिलने से जेल प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है. पांच दिन पहले ही जेल की बैरक नंबर 4 में तलाशी के दौरान चार्जिंग पर लगा एक मोबाइल फोन बरामद किया गया. वहीं एक बंदी की तलाशी में उसके पास सिम कार्ड मिला.


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काफी टाइट सिक्योरिटी के बावजूद बंदियों के पास मोबाइल फोन मिलने से कहीं ना कही जेल की सुरक्षा में तैनात कर्मचारियों की मिली भगत का अंदेशा नजर नजर आता है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए जी मीडिया की टीम ने चित्तौड़गढ़ जिला कारागृह की सुरक्षा व्यवस्थाओं का जायजा लिया. इस दौरान जेल डिप्टी एसपी रमाकांत शर्मा और जेलर अशोक पारीक से की गई बातचीत में ऐसे कई लूप होल मिले, जिससे जेल की सुरक्षा में आसानी से सेंध लगाई जा सकती हैं.


जेल में बंद बंदियों के पास मोबाइल फोन मिला काफी खतरनाक साबित हो सकता है. मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर कुख्यात आरोपी, पीड़ित या गवाहों को धमका सकता है, केस को प्रभावित कर सकता है, या जेल के बाहर अपने पूरे गिरोह को ऑपरेट कर सकता है.


नहीं थम रहा मोबाइल मिलने का सिलसिला


चित्तौड़गढ़ जिला कारागृह में मोबाइल फोन मिलने का सिलसिला थम नहीं रहा. बैरक की तलाशी में तो कभी बंदियों के व कभी चार्जिंग पर लगे मोबाइल मिल रहे है.
गत 20 दिनों के भीतर जिला कारागृह में 5 मोबाइल फोन मिलना वाकई चिंता का विषय है. जेल में बंदियों तकमोबाइल फोन आखिर कौन पहुंचा रहा है? जेल के अधिकारी व कर्मचारी सवालों के घेरे में है.


हालांकि जेल प्रबंधन की ओर से मामलें में चार बार रिपोर्ट दर्ज करवाई गई. लेकिन अब तक न तो पुलिस एक भी मामले से पर्दा उठा सकी, और ना ही जेल प्रशासन अपनी पड़ताल में कुछ पता लगा सका कि आखिर इतनी टाइट सिक्योरिटी के बावजूद जेल में मोबाइल किस तरह पहुंचे.


सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल


जेल के भीतर बंदियों तक मोबाइल फोन पहुंचने से जेल की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे है. तो वहीं जेल कर्मी भी मिली भगत की आशंका के घेरे में है. सबसे पहले ये जानना जरूरी होगा कि जेल की सुरक्षा के लिए किस हद की सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध करवाई गई है.


जेल की पड़ताल में पता चला कि लगभग 150 बाई 150 मीटर क्षेत्रफल में फैला कारागृह चारों तरफ से कई फीट ऊंची सुरक्षा दीवारों से घिरा हुआ है. जेल के गेट पर बाहरी सुरक्षा व्यवस्था आरएसी के भरोसे है. जबकि जेल स्टॉफ में 30 प्रहरी और 4 मुख्य प्रहरी लगा रखे है. जो सतत हर एक्टिविटी पर नजर रखते है.


जेल के अंदर की बात करें तो यहां कुल 10 बैरक है. बैरक के क्षेत्रफल के हिसाब से उनमें रखे जाने वाले बंदियों की संख्या तय होती हैं. बंदियों से उनके परिजनों की मुलाकात का समय सप्ताह में चार दिन मंगल, बुध व शुक्र शनिवार रखा गया है. इन दिनों सुबह 11 से दोपहर 1 बजे व दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक तय किया गया है.


जेल के 10 बैरक सहित गेट, हॉल, चौक, मुलाकात स्थल, मेन हॉल व मुख्य हॉल में 25 सीटीटीवी कैमरे लगे है, जो 24 घंटे जेल में हो रही हर गतिविधि पर नजर रखते हैं. परिजनों की मुलाकात का समय हो, या जेल में किसी संदिग्ध गतिविधि आशंका. जेल अधिकारियों की ओर से तुरंत बंदियों की जांच की बात कही जाती है.


वहीं जेल में खाने पीने सहित अन्य सामग्री पहुंचाने के दौरान भी हाईटेक उपकरणों से सामग्री की जांच होती हैं. इसके अलावा बंदियों की परिजनों या उनके वकीलों से बात करने के लिए जेल में 5 पिक्स यानी लैंडलाइन फोन की व्यवस्था है. पिक्स में बंदी की ओर से परिजनों या वकील के पहले से फिक्स किए नंम्बर पर ही बात की जा सकती है, जो पहले से नोट कराए गए हो. इन नंबरों को जेल प्रशासन की ओर से अच्छे से वेरिफिकेशन करने के बाद पिक्स से जोड़ा जाता है. ये नम्बर टेक्निकली इस कदर सेट होते है कि बंदी चाह कर भी इन नंबरों के अलावा किसी दूसरे नम्बर पर बात नहीं कर सकता.


बंदियों की संख्या 577, क्षमता से ज्यादा 


नियमानुसार 388 बंदियों की क्षमता वाले जिला कारागृह में फिलहाल बंदियों की संख्या 577 है. जो कि क्षमता से कई ज्यादा है. सजायाफ्ता कैदियों को छोड़ कर चित्तौड़गढ़ के आपराधिक मामलों व निम्बाहेड़ा, बेगूं, कपासन सब जेल के संगीन मामलों में संलिप्त विचाराधीन बंदियों को भी जिला कारागृह में रखा जाता हैं. जिला कारागृह के अधिकारियों का दावा है कि परिजनों के अलावा स्टॉफ को भी तलाशी देकर ही जेल के भीतर जाने की अनुमति मिलती है. ऐसे में संभावना ही नहीं बचती की अंदर मोबाइल फोन या कोई वस्तु पहुंचाई जा सके.


जबकि सच्चाई यह है कि इतनी कड़ी सुरक्षा का दावा किए जाने के बावजूद सिलसिलेवार तरीके से मोबाइल बंदियों के पास पहुंचाए जा रहे है. सुरक्षा में सेंध को लेकर जब ज़ी मीडिया ने सवाल खड़े किए तो जेल अधिकारियों की ओर से इसके पीछे कुछ और ही वजह बताई गई. जिला कारागृह डिप्टी एसपी रमाकांत शर्मा ने बताया कि नियमानुसार जेल की सुरक्षा दीवार की ऊंचाई 16 फीट से ऊंची नहीं की जा सकती है. ऐसे में जेल की चार दिवारी के पास किसी तरह की किसी निजी सरकारी भवन, इमारत, या आम रास्ता नहीं होना चाहिए.


चित्तौड़गढ़ जिला कारागृह की स्थिति ठीक इसके उलट है, जिसमे जेल के मुख्य गेट की दीवार से शहर की मुख्य सड़क की दूरी 15 से 20 मीटर है. इसी तरह जेल की सुरक्षा दीवार के दाहिनी तरह 10 से 15 मीटर की दूरी पर एक ट्रांसपोर्ट कार्यालय और बाई तरफ कुछ ही मीटर की दूरी पर सरकारी भवन की इमारत मौजूद है.
वहीं जेल के पिछले हिस्से में एक सामुदायिक भवन का निर्माण करवाया दिया गया तो वहीं यहां आम रास्ता होने के साथ 15 ऑपन बंदियों के क्वाटर्स मौजूद है.


डिप्टी एसपी रमाकांत शर्मा के अनुसार कार्मिकों की कमी की समस्या के चलते जेल की दीवारों के चारों तरफ कार्मिकों की नियुक्ति संभव नही. जिसके चलते पूरी संभावना बनती है कि जेल के चारों तरफ आम लोगों की गतिविधियों और आम रास्ते की मौजूदगी तथा जेल की कम ऊंचाई वाली दीवार से नजदीक सड़क से गुजरता कोई भी व्यक्ति मोबाइल फोन या अन्य सामग्री का छोटा पैकेट फैंक कर बड़ी ही आसानी से दीवार के पार पहुंचा सकता है.


जेल अधिकारियों की ओर से चार दीवारों के पास से गुजर रही सड़कों और छोटी दीवारों की वजह से बंदियों तक मोबाइल फोन पहुंच रहे है. ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता कि जिला कारागृह में इसी तरह बार-बार मोबाइल फोन मिलनी की घटनाएं होती रहेगी? क्या यूं ही इसी तरह जेल में बंद होने के बावजूद आपराधिक मामलों में विचाराधीन बंदी आसानी से मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर अपना रसूख और जेल से बाहरी दुनिया से अपने साथियों से कनेक्टिविटी बना कर आपराधिक साजिशों का जाल बुनने का काम करते रहेंगे? या फिर इस पूरे प्रकरण की गहराई से जांच करवा कर बंदियों से मिलीभगत करने वालों जिम्मेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सिस्टम को सुधारने की दिशा में एक बेहतर नजीर पेश की जाएगी.


रिपोर्टर- ओमप्रकाश भट्ट


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