सरदारशहर के प्रिंसिपल का ऐसा जूनून, सैकड़ो मुस्लिम बेटियों को पहुंचाया शिक्षा के मंदिर
सरदारशहर, चुरू : सरदारशहर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अंजुमन विद्यालय, यह विद्यालय अभिभावकों की सोच बदलने में भी कामयाब हुआ है. अल्पसंख्यक मोहल्ले में स्थित यह विद्यालय आज गरीब तबके के लोगों में शिक्षा की अलख जगा रहा है, विद्यालय में 85 फ़ीसदी छात्र-छात्राएं मुस्लिम समुदाय से है, बाकी बचे छात्र-छात्राएं अति पिछड़े वर्ग से हैं.
सरदारशहर, चुरू : बदलते वक्त के साथ-साथ सरकारी स्कूलों की तस्वीरें भी अब बदलने लगी है. सरकारी स्कूल अब प्राइवेट स्कूलों को हर मामले में कड़ी चुनौती देते हुए नजर आ रहे हैं. वही सरदारशहर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अंजुमन की ना सिर्फ तस्वीर बदली है बल्कि यह विद्यालय अभिभावकों की सोच बदलने में भी कामयाब हुआ है. अल्पसंख्यक मोहल्ले में स्थित यह विद्यालय आज गरीब तबके के लोगों में शिक्षा की अलख जगा रहा है. इस विद्यालय के प्रधानाचार्य याकूब खान के प्रयास क्रांतिकारी साबित हुए हैं. इस विद्यालय के प्रधानाचार्य याकूब खान की कड़ी मेहनत आज रंग लाती दिखा रही है. यह याकूब खान की कड़ी मेहनत का ही परिणाम है कि 3 वर्ष पहले इस विद्यालय में महज डेढ़ सौ छात्राओं का नामांकन था जो बढ़कर 3 वर्ष बाद 634 के पार चला गया है. यह जिले का तो सबसे ज्यादा छात्राओं के नामांकन वाला विद्यालय है ही इसके अलावा राजस्थान में भी यह स्थान रखता है. वर्तमान में विद्यालय में 14 सौ से अधिक नामांकन हैं. जो इस विद्यालय के संघर्ष की कहानी बयां करता है.
रेत के धोरों के बीच हुई थी विद्यालय की स्थापना, तत्कालीन वित्त एवं नगर मंत्री चंदनमल बैद ने जब इस विद्यालय की 1983 में स्थापना की थी तब शायद ही किसी ने सोचा था कि यह विद्यालय आज जिले में सर्वाधिक बेटियों का नामांकन देने वाला विद्यालय बनेगा, तब यहां आस-पास बियबान जंगल और माटी के टीले थे. तब लोग इस विद्यालय पर हंसते थे कि आखिर इस जगह पर यह विद्यालय स्थापित कर क्या साबित करना चाहते हैं ? लेकिन वक्त बदला, हालात बदले, आज तस्वीर बदल रही है. विद्यालय के आसपास रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोग मजदूरी कर अपना जीवन व्यापन करने वाले आसपास के लोग अपने नौनिहालों को इस विद्यालय में दाखिला दिला कर अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर बनते हुए देख रहे हैं. शुरू शुरू में इस विद्यालय को काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन वर्तमान में विद्यालय ने नए आयाम स्थापित किए हैं. शिक्षा के क्षेत्र में खेल के क्षेत्र में विद्यालय के होनहार छात्र छात्रांए झंडे गाड़ रही हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद आरिफ भाटी और फारुख ज्यान मोहमद व्यापारी ने बताया की इस विद्यालय की सफलता इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अंजुमन अल्पसंख्यक समुदाय, अनुसूचित जाति, अति पिछड़ा वर्ग समुदाय में स्थित हैं. विद्यालय में 85 फ़ीसदी छात्र-छात्राएं अल्पसंख्यक समुदाय से है बाकी बचे छात्र-छात्राएं अति पिछड़े वर्ग से हैं. इन बच्चों को विद्यालय से जोड़ने के लिए प्राचार्य याकूब खान द्वारा अनेकों प्रकार के नए नवाचार किए गए तब जाकर यह तस्वीर बदली है और आज इतनी बड़ी तादाद में विद्यालय में छात्र-छात्राओं का नामांकन हो सका है.
3 साल पहले इस विद्यालय में आए प्राचार्य याकूब खान बताते हैं कि इस विद्यालय के आसपास रहने वाले अधिकांश लोग मजदूर वर्ग के हैं और यहां पर शिक्षा का भी बेहद अभाव था, ऐसे में हमने इन्हें विद्यालय से जोड़ने के लिए कई सारे नवाचार किए, जिनमें सबसे बड़ा नवाचार था "मेरा सपना अंजुमन मेरा विद्यालय" इस थीम से कार्यक्रम शुरू किया और अभिभावकों की बैठकों के माध्यम से सोशल मीडिया के माध्यम से यह समझाने की कोशिश की कि सरकार ने इस विद्यालय को हमें दिया है अब हमारी जिम्मेदारी है कि इस विद्यालय को हम अपना समझे. घर घर जाकर अभिभावकों को हमने समझाया तब जाकर यह बदलाव संभव हो सका है, आज इस विद्यालय में होने वाली अभिभावकों की बैठक में अधिकांश महिलाएं आती है.
इसके अलावा बेटियों मैं आत्मविश्वास जगाने के लिए एक और विद्यालय ने मुहिम चलाई "तुम बोलोगे मुंह खोलोगे तब जमाना बदलेगा" विद्यालय की इस मुहिम का अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है, इस नवाचार के माध्यम से विद्यालय में नई-नई गतिविधियां करवाई जाती है जिसका परिणाम यह है कि आज इस विद्यालय की बेटियों का अलग ही आत्मविश्वास, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी, साथ ही साथ इस विद्यालय के बेटियों के नामांकन में भी बढ़ोतरी हुई है.
विद्यालय में भामाशाहो ने भी दिया बढ़-चढ़कर सहयोग इस विद्यालय को बेहतरीन बनाने में यहां के भामाशाहो ने भी बड़ा सहयोग दिया है. वार्ड पार्षद मुंशी साह भाटी बताते हैं कि इस विद्यालय में एक करोड़ से ज्यादा का विकास कार्य हुआ है यह राशि जन सहभागिता और भामाशाहो के सहयोग से हुआ हैं. जिसका श्रेय यहां के प्रधानाचार्य याकूब खान को जाता है उन्हीं के प्रयासों से यहां भामाशाह आगे आए है और अपना बढ़-चढ़कर अपना सहयोग दे रहे हैं.
विद्यालय की विशेषताएं
1. गत 3 वर्षों में 14 सौ से अधिक नामांकन,
2. नामांकन में छात्राओं के नामांकन में बढ़ोतरी, वर्तमान में 634 छात्राएं
3. विद्यालय में सीसीटीवी कैमरे,
4. स्मार्ट क्लास से पढ़ाई
5. हर महीने अभिभावकों की बैठक, बैठकों में अधिकांश रूप से महिलाएं अभिभावक लेती हैं हिस्सा
6. स्टाफ की कमी के चलते 10 शिक्षक जन सहयोग से कार्यरत
7. विद्यालय के छात्र-छात्राओं का बोर्ड के परीक्षा परिणामों में शानदार प्रदर्शन
8. गत वर्ष कक्षा बारहवीं की 19 छात्रों में से 17 छात्राओं को गार्गी पुरस्कार
9. विधायक में राज्य सरकार द्वारा चलने वाले हॉस्टल में 100 से अधिक छात्राएं रह रही है.
सामाजिक कार्यकर्ता मास्टर उमरदीन सैयद ने बताया कि इस इस विद्यालय की स्थापना के साथ ही में इस विद्यालय से जुड़ा हुआ हूं. इस विद्यालय को बढ़ता देख बेहद खुशी होती है. वर्तमान में विद्यालय जिले में प्रेरणा का स्त्रोत है. 1983 में विद्यालय की नीव पड़ी और 1984 में चार कमरे बनाकर पांचवी तक इस विद्यालय को शुरू किया गया. तब इस विद्यालय के आस पास कोई घर नहीं था और ना ही पानी था और ना ही बिजली, लेकिन धीरे-धीरे विकास का क्रम चलता रहा.1987 में विद्यालय पांचवी से बढ़कर आठवीं तक हो गया जिसके बाद 1989 में यह विद्यालय दसवीं तक कर दिया गया इसके बाद 2000 में इस विद्यालय को 12वीं तक कर दिया गया, वहीं 2001 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री भंवरलाल मेघवाल ने इस विद्यालय विज्ञान वर्ग भी शुरू कर दिया. जैसे ही इस विद्यालय में विज्ञान वर्ग शुरू हुआ इस विद्यालय की काया पलट गई. आज यह विद्यालय जिले की बेहतरीन सरकारी विद्यालयों में शुमार किया जाता है.
विद्यालय की चुनौतियां - वर्तमान में विद्यालय में 700 नामांकन के आधार पर स्टाफ लगाया हुआ है . जिनमें भी 10 पद रिक्त हैं. जबकि पिछले 3 वर्षों में विद्यालय में छात्र-छात्राओं का नामांकन बढ़कर सोलह सौ के पार जा चुका है, इसलिए शिक्षकों की कमी विद्यालय को खल रही है. इसके अलावा छात्र छात्राओं को बैठने के लिए भी कमरे कम है. ऐसे में विद्यालय में और अधिक शिक्षक दिए जाएं साथ ही साथ जो पद रिक्त हैं उनको भी भरा जाए और नए भवनों का निर्माण करवाया जाए. निश्चित रूप से राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अंजुमन ना सिर्फ बड़े-बड़े प्राइवेट विद्यालय को हर लिहाज से कड़ी चुनौती दे रहा है, बल्कि शिक्षा की अलख अल्पसंख्यक समुदाय व कच्ची बस्ती के लोगों में जगाने का बड़ा काम भी कर रहा है . यह विद्यालय आज राजस्थान में अपनी एक अलग पहचान बनाने की ओर अग्रसर है. वाकई में विद्यालय के प्रधानाचार्य याकूब खान और स्थानीय भामाशाहो के प्रयास काबिले तारीफ है.