जब भूखे बच्चे खाना मांगते हैं, तो एक गरीब मां की आत्मा मर जाती है
किसी मां के लिए उसके बच्चों की खुशी से बड़ी कोई चीज नहीं होती. जब एक मां अपने बच्चे को अपने हाथ से खाना खिलाती है, तो उसका पेट खुद ही भर जाता है. लेकिन अगर मां के पास बच्चे को खिलाने के लिए एक दाना भी नहीं हो तो, सोचिएं क्या गुजरती होगी, उसके दिल पर.
Sujangarh : राजस्थान के चूरू के सुजानगढ़ विधानसभा में बीदासर के वार्ड नंबर 19 में रहने वाले रामलाल करीब 7 सालों से टीबी की बीमारी जूझ रहे हैं. सरकारी और प्राइवेट सब जगह दिखा दिया जो कुछ जमा पूंजी थी सब लगा दी. लेकिन इलाज का कोई फायदा नहीं हुआ.
रामलाल की पत्नी बताती हैं कि परिवार के पास अब कुछ नहीं बचा है. बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास पैसे नहीं है. पड़ोसी अगर खाने को कुछ दे देते हैं तो फिर कुछ खा लेते हैं नहीं तो बच्चे भी भूखे ही सोते हैं. सरकारी मदद के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिलता है.
रामलाल की बड़ी बेटी गुस्से और आखों में आंसू लेकर बताती है कि मैं भी और मेरे भाई बहन भी पढ़ना चाहते हैं लेकिन पेन कॉपी लाने के लिए पैसे तक नहीं है. क्या करें ? पापा 7 साल से बीमार हैं. मां के पास आय का कोई जरिया नहीं है. हम पढ़कर कुछ करना चाहते हैं लेकिन कुछ नहीं कर पा रहे.
रामलाल के परिवार में चार लड़कियां और एक लड़का है. सबसे बड़ी लड़की करीब 11 साल की है और सबसे छोटा लड़का 3 साल का है. रामलाल के टूटे फूटे मकान में लाइट और पानी की कोई इंतेजाम नहीं है. परिवार के पास बीपीएल कार्ड भी है लेकिन राशन नहीं मिलता है.
रामलाल की पत्नी का कहना है कि जब राशन दुकान जाते हैं तो वहां ये कह कर भगा दिया जाता है कि आपका राशन कार्ड बंद हो गया. पांचों बच्चे जब भूख से तड़पते हैं कुछ खाने को मांगते हैं तो मेरी आत्मा मर जाती है. अब बस इंतजार है किसी फरिश्ते का जो परिवार को इस मुफलसी के दर्द से बचाए. उम्मीद है कि वो जल्दी आएगा...
रिपोर्टर - गोपाल कंवर
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