Independence Day Special: देश की आजादी की लड़ाई में देश के हजारों वीर सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर किए और हमें स्वाधीनता दिवस मनाने का सुनहरा पल दिया. जब आजादी का यह महोत्सव जहन में आता है, तो शरीर के रोम-रोम खड़े हो जाते हैं. अंग्रेजों से लंबी लड़ाई के बाद देश आजाद हुआ और 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के लाल किले पर पहला तिरंगा झंडा फहराया गया. उस समय देशवासियों के लिए इससे बड़ा खुशी का कोई पल नहीं था, लेकिन उस तिरंगे झंडे के कपड़े का निर्माण कहां हुआ था यह बहुत कम लोग ही जानते होंगे. 


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दौसा के आलूदा गांव में बना था तिरंगे का कपड़ा
जानकारी के अनुसार, लाल किले पर फहराया गया पहले तिरंगे झंडे का कपड़ा दौसा के आलूदा गांव में बना था और उसको गांव के बुनकर चौथमल माहवर ने अपने हाथों से तैयार किया था. इसके बाद उस कपड़े को यहां से ले जाया गया और उस पर झंडे के कोड के मुताबिक तिरंगा तैयार किया गया और फिर उसे लाल किले पर लहराया गया था. 



चौथमल माहवर ने हाथों से बुना था तिरंगे का कपड़ा
हालांकि बताया यह भी जाता है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से चार जगह से झंडे के पकड़े गए थे और उनसे चार अलग-अलग झंडे तैयार किए गए थे. अब उनमें से कौन से कपड़े का झंडा लाल किले पर लहराया गया यह तो ठीक से साफ नहीं है, लेकिन बताया यही जाता है कि दौसा के आलूदा गांव से बुनकर चौथमल माहवर द्वारा जो कपड़ा अपने हाथों से बुना था, उस कपड़े का तिरंगा बनाकर लाल किले पर लहराया गया था और आजादी का पर्व मनाया गया था.



दौसा जिले के लिए गर्व की बात
भले ही बुनकर चौथमल माहवर अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन वह आलूदा गांव को ही नहीं बल्कि पूरे दौसा जिले के साथ-साथ राजस्थान को भी गौरवान्वित कर गए. जब-जब देश की आजादी का पर्व मनाया जाता है, तो बुनकर चौथमल माहवर को याद जरूर किया जाता है. दौसा क्षेत्रीय खादी समिति के मंत्री अनिल शर्मा की मानें, तो उस समय खादी ही स्वरोजगार का माध्यम होता था और दौसा में 1967 में स्थापित हुई क्षेत्रीय खादी समिति द्वारा भी झंडे के कपड़े का यहां निर्माण किया जाता है और फिर उस कपड़े को तिरंगे की प्रोसेसिंग के लिए मुंबई भेजा जाता है, जहां से तिरंगे का निर्माण होकर ISI मार्क के साथ क्षेत्रीय खादी समिति दौसा द्वारा मांग के अनुरूप सप्लाई किए जाते हैं. 



रिपोर्टर- लक्ष्मी अवतार शर्मा


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