ऋषि पंचमी पर शाही स्नान के साथ लक्खी मेले की शुरुआत
जिले में स्थित तीर्थराज मचकुंड पर प्रतिवर्ष देवछठ के मौके पर लगने वाले लक्खी मेले की शुरुआत ऋषि पंचमी पर शाही स्नान के साथ हुई.सभी तीर्थो का भांजा कहे जाने वाले मचकुंड सरोवर पर ग्वालियर,मुरेना,अयोध्या,वृन्दावन,मथुरा एवं अन्य जिलो से आये हुए संतो के शाही स्नान के बाद ही श्रद्धालुओं ने सरोवर म
धौलपुर: जिले में स्थित तीर्थराज मचकुंड पर प्रतिवर्ष देवछठ के मौके पर लगने वाले लक्खी मेले की शुरुआत ऋषि पंचमी पर शाही स्नान के साथ हुई.सभी तीर्थो का भांजा कहे जाने वाले मचकुंड सरोवर पर ग्वालियर,मुरेना,अयोध्या,वृन्दावन,मथुरा एवं अन्य जिलो से आये हुए संतो के शाही स्नान के बाद ही श्रद्धालुओं ने सरोवर में डुबकी लगाईं.
मचकुंड पर ही की पूजा अर्चना
ऋषि पंचमी पर महिलाओं व बालिकाओं ने विशेष पूजा अर्चना की मचकुंड में स्नान करके वही सप्त ऋषि की कथा उनके द्वारा सुनी गई एवम पूजा अर्चना की तथा वहां मौजूद ब्राह्मण को दान दक्षिणा भोजन आदि सैकड़ों की संख्या में महिलाओं द्वारा कराया गया. ऋषि पंचमी से देवछठ तक चलने वाले इस मेले की शुरुआत करते हुए ग्वालियर, मुरैना, अयोध्या, वृन्दावन, मथुरा एवं अन्य जिलों से आए हुए संतों की सवारियां बैंड-बाजों के साथ मंगल भारती मंदिर से शुरू होकर मचकुंड सरोवर पहुंची. जहां संतों ने सरोवर में शाही स्नान किया. शाही स्नान के बाद संतो ने तीर्थराज मचकुण्ड की पूजा-अर्चना कर दो दिन तक चलने वाले तीर्थराज मचकुंड मेला का शुभारम्भ किया.
एतिहासिक तीर्थराज मचकुंड मेला में उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के आस-पास के क्षेत्रो के लाखो की तादाद में श्रद्धालु सरोवर में डुबकी लगाने पहुंचते हैं क्योकि मुचकुंद महाराज को सभी तीर्थो का भांजा कहा जाता है सरोवर में देवछठ वाले दिन स्नान करने से पुण्य लाभ मिलता है.छठ तक चलने वाले इस मेले मे राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों से लाखो की संख्या में श्रद्धालु सरोवर मे स्नान करेने यहां पहुंचते हैं.
मेले में आते हैं नवविवाहित जोड़े
प्रति वर्ष ऋषि पंचमी से देवछठ तक लगने वाले तीर्थराज मचकुंड के लक्खी मेले कि मान्यता है कि देवासुर संग्राम के बाद जब राक्षस कालयवन के अत्याचार बढ़ने लगे. तब लीलाधर श्री कृष्ण ने कालयवन को युद्ध के लिए ललकारा. जिस युद्ध में लीलाधर को भी हार का मुह देखना पडा था. तब लीलाधर ने छल से मचकुंड महाराज के जरिए कालयवन का वध कराया था, जिसके बाद कालयवन के अत्याचारों से पीड़ित ब्रजवासियों में ख़ुशी कि लहर दौड़ गई, जिसके बाद से ही आज तक मचकुंड महाराज कि तपोभूमि मचकुंड में सभी लोग देवछठ के मौके स्नान करते आ रहे हैं.
मान्यता हैं कि यहां नवविवाहित जोड़ो के सहरे की कलंगी को सरोवर में विसर्जित कर उनके जीवन की मंगलकामना की जाती है. मेले में हजारो की संख्या में नवविवाहित जोड़े आते हैं.नवविवाहित जोड़ो के परिवारीजन मचकुण्ड सरोवर में स्नान और पूजा के बाद मोहरी को मचकुंड में प्रवाहित करते हैं
Reporter- Bhanu Singh